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व्यंग्य

आंजत-आंजत कानी होगे!

‘जिहां तक नाक के सोझ म देखे के बात हे त इहां के मनखे तो वइसे घलोक नाक के सोझ म नई देख सकय। काबर ते इहां जम्मो चिक्कन-चांदन सड़क मन म कोन मेर जझरंगा भरका होही, गङ्ढा होही तेकर तो ठिकानच नइ राहय त भला बपरा ह अंधमुंदा या सोझ देखत कइसे रेंग सकथे? फेर ये बात बड़ा तााुब लागथे के इहां के सड़क मन नवा बने के चारेच दिन बाद एकेदरी कइसे खदखदा जाथे ते।’
पहिली ए बात समझ म नई आ पावत रहिसे के कोनों सुग्घर नारी परानी ह अपन आंखी के सुन्दरई बढ़ाए खातिर काजर आंजत-आंजत कानी कइसे हो सकथे। अइसन उजबक हाना बनइया मन ऊपर रिस घलोक लाग जावय। फेर जबले राजधानी रायपुर के सड़क मनला हेमामालिनी के गाल सहीं चिक्कन बनाए के घेरी-बेरी उदिम करत देखे हावंव, तबले ये हाना ह थोक-बहुत समझ म आए बर धरीसे। अब लागथे के कोनों ल जादा सुग्घर बनाना ह घलोक ककरो बर जी के काल हो जाथे।
अब इहां के गौरवपथ के हाल ल देख लेवव न। पहिली एकर खातिर के झन के दुवार अऊ दुकान मनला टोरे-फोरे गिस, तेकर बाद कतका अकन चऊंक-चौराहा मन के सुघरई ल टोर के वोला तिरियाए गिस अऊ जब अतको म एखर मन के सउंख नई बुताइस त जतका महापुरुष मन के बड़े-बड़े मूर्ति जम्मो चऊंक म खड़े रिहिसे ते मनला अवइया-जवइया मन देखे झन पावयं कहिके कोंटा-सोंटा म ठढ़िया दिए हें। हां, सही ए अब ये देस ल या इहां के रहवइया मनला अइसन महापुरुष मनला देखे जाने या वोकर द्वारा स्थापित करे गे चरित्र के का जरूरत हे? अरे भई वो मनला आदर्श मानके इहां के जनता उंकरे रद्दा म रेंगहीं त फेर ये देस के भ्रष्ट नेता अउ अधिकारी मन के पूजा-पाठ अउ चरन वंदना तंत्र के चोला छोड़ा पाही? एकरे सेती इहां के इतिहास ले अइसन जम्मो मनखे के चिनहा ल मिटाए जावत हे जेन ह कोनो भी मनखे ल सत् के मारग म रेंगके के रद्दा बताथे।
अब तो गौरवपथ म नचकाहरिन मनके, गम्मतहिन मन के, कमईलिन मन के, खरतहिन मन के, रकम-रकम के मूर्ति लगाए जावत हे। तेमा लोगन रस्ता रेंगत उनला देखत राहंय, अउ एक दूसर के गाड़ी म झपा-झपा के मरत राहंय। तभे तो फांफा मिरगा बरोबर बाढ़त ये देस के जनसंख्या ह कम हो सकही। अरे भई जब मनखे सीधा अपन रस्ता ल देखही त एक्सीडेंट कइसे होही, अउ जब एक्सीडेंट नइ होहीं त जनसंख्या म नियंत्रण कइसे होही। इही पाय के जम्मो सड़क म परिवार नियोजन के मोहनी-मुस्कान बगरत हे। ऐला अइसे रखेगे हे कोनो मनखे नाक के सोझ म देखे मत सकय।
जिहां तक नाक के सोझ म देखे के बात हे त इहां के मनखे तो वइसने घलोक नाक के सोझ म नई देख सकय। काबर ते इहां जम्मो चिक्कन-चांदन सड़क मन म कोन मेर जझरंगा भरका होही, गङ्ढा होही तेकर तो ठिकानच नइ राहय त भला बपरा ह अंधमुंदा या सोझ देखत कइसे रेंग सकथे? फेर ये बात बड़ा तााुब लागथे के इहां के सड़क मन नवा बने के चारेच दिन बाद एकेदरी कइसे खदखदा जाथे ते। सरकार एकर खातिर करोड़ों रुपिया खरचा करथे। एके ठन सड़क ल तीन-तीन, चार-चार ठेकादार मन तीर बनवाथे, फेर जब देखबे ते जइसे के तइसे। कभू कभार तो लागथे के ये पिछड़ा प्रदेश के पिछड़ा राजधानी म रहइया मनखे मनला चिक्कन सड़क म रेंगे-फिरे के टकर नइ परे हे। एकरे सेती सड़क के नवा बनते रात के अंधियार म उन गैती रापा लेके वोला कोड़ डारथे तइसे लागथे। अउ हमन सरकार ऊपर फोकट के आरोप लगावत रहिथन के ठेकादार मन संग मिलीभगत करके घटिया सड़क बनावत हे कहिके! भला एमा सरकार बपरी के का दोस हे?
बरसात के आए ले ए सहर के मनखे मन कतका अतलंग करहीं। सड़क मन म जगा-जगा तरिया-डबरी बरोबर गङ्ढा बनाहीं अउ मार चार महीना के बिपतियाए गरमी ल जुड़वाए खातिर वोमा चिभोरा मारहीं। अरे भई तुमन ल चिभोरा मार के नहाए के अतेक सऊंख हे त तीर म बोहावत खारून या फेर कोनो जुन्ना तरिया काबर नई चले जावव। रोज नवा-नवा तरिया काबर बनाथव? इहां के सड़क मनला बने तरिया-डबरी म नान-नान लइका मन के कूदई-फंदई ह तो बनेच लगथे, फेर जब बड़े-बड़े मनखे मनला घलोक टोंटा भर पानी म उतर के नहावत देखबे त बड़ अचरज लागथे। सबले जादा अचरज तो तब लागथे जब ये नवा तरिया-डबरी मन म मोटर कार के संगे-संग बड़े-बड़े टरक मन घलोक चिभोरा मारे बर धर लेथें। भले भीड़भाड़ वाले सड़क ह चार दिन बर जाम हो जाय फेर ये मोटर गाड़ी मन डबरी मन म कूदे फांदे ल नई छोड़यं।

सुशील भोले
41191, डॉ. बघेल गली
संजय नगर, टिकरापारा, रायपुर