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कविता

आगे दिन जाड़ के

डोकरी दाई बइठे बिहना ले, गोरसी ल पोटार के
झांपी ले निकार कमरा डेढ़ी, आगे दिन जाड़ के
खटिया ले उठई ह, सजा कस लागत हे
तरिया के पानी ह, रहि-रहि डरहुवावत हे
कथरी अउ ओढ़ना ह, गाब सुहावत हे
एक लोटा ल चाहा ल बबा, अकेल्ला ढरकावत हे
खटिया म ढलगे नोनी देखत हे, मुहूं ल उघार के
झांपी ले निकार कमरा डेढ़ी, आगे दिन जाड़ के
गली खोर म जगा-जगा, बरत हे भुर्री
बियारा मं जगाए हे, धान के खरही
जिहा अंकलहा ह फांदे हे, मुंदरहा ले दंउरी
जिहां उलान बाटी खेलत हे, लइका कोरी-कोरी
दाना ल खावत हे, धंवरा बइला ह पैरा ल टार के
झांपी ले निकार कमरा डेढ़ी, आगे दिन जाड़ के
बड़े फजर ले भुखऊ ह, बासी ल सोरियावत हे
पताल के चटनी संग, बासी अब्बड़ सुहावत हे
कोदई के भात ह, एक कंवरा ऊपराहा खवावत हे
पाके बोइर ल देख के, चैती के मुंहू पंछावत हे
डारा मं बइठे बेंदरा झड़कत हे, बीही ल कोठार के
झांपी ले निकार कमरा डेढ़ी, आगे दिन जाड़ के
यशपाल जंघेल किसनहा
तेन्दूभांठा गण्डई