Categories
व्यंग्य

आतंकवादी खड़ुवा

पाकिस्तान मा चार झन आतंकवादी मन गोठियात रहंय। पहला- ‘अरे भोकवा गतर के। अभी हिन्दुस्तान म हमला करे बर अफगानिस्तान अऊ पाकिस्तान ले घलो जादा बढ़िया माहौल हावय।’ दूसरा- ‘कइसे?’ तीसरा- ‘हत रे बैजड़हा! तोला कोन हमर भीर मा भरती कर दीस रे? ओतको ला नई जानस? अरे! भारत के नेता मन मा अभी फकत बड़बोलापन हावय। हमर ले लड़े के कूबत नई हे। उन तो आपस मा लड़त हावयं। हम सब आतंकवादी एकजुट हावन, अऊ ओ मन? ओ मन जतेक पारटी, जतके नेता, ओतके गुट, ओतके विचार। हमन बारूद के बम फोरथन त ओमन बयान के फुलझरी चलाथें।’ चौथा- ‘अऊ देख। आतंकवाद के खिलाफ उहां, अमेरिका कस कोनो कड़ा कानून नईए। अमेरिका के कानून ला देख के हमर जीव थर्राथे। फेर भारत के पिलपिल हा नेता मन ला ‘वोट बैंक’ के भूत हर जम्हेड़ के धरे हे। उन उल्टा, पहिली के पोटा कान्हून ला तको खतम कर दीन। उहां के जासूसी विभाग मन मा कोनो तालमेल हावय? नई हे काबर? ओमन ला तो विरोधी पारटी के जासूसी मा भिडाय रथे, तब फुरसत रहय हमर निगरानी बर तब? हां झुलुप संवारे बर डरेस चमकाय बर, ऊंकर करा समय च समय हे।’
दूसरा- ‘फेर मुम्बई वाले मन तो अन्ते कोती ले अवइया मन ला भगवारत हे, सुने हंव। हमू मन तो अन्ते के आन। हमन ला ओमन छोड़हीं?’ चौथा- ‘अरे तैं भारत के इतिहास ला नई पढ़े हस बेटा। ऊहां के मन आपस मा तो पोठ कटथे-मरथे। फेर बिदेसी दुसमन मन के सुवागत करे बर एक गोड़ मा ठाढे रथे। तक्षशिला के राजा आम्भी, जयचंद, मीरजाफर जइसे मन के, ऊंहा कभू कमीं नई रहय।’ पहिली- ‘ऊंहा तै कुछु करे ले- बम फोर ले, गोली चला ले, नंगरा नाच ले।’ तीसरा- ‘एक तो पुलिस अपन जुनहा हथियार के बल मा हमला पकड़ नई सकय। पकड़ डारही त बिना सजा के बोचक जाबो। सजा हो जाही, त अमल नई होवय। हमर संगवारी अफजल के का उखाड़ सकत हे ओमन?’ चौथा- ‘ऊपर ले मानवाधिकार वाले हई हे। नक्सलाईट मन ला, अऊ हमन ला ऊंखर ले बहुत सहारा हे। हमन एक हजार कतल कर देबो तभो ऊंखर मानवता हर सूते रथे। अऊ कहूं हमन के कान घलो ला कानून हर अईंठ दीही, तब ऊंखर इंसानियत हर झकना के के जाग जाथे।’

दूसरा- ‘वा भई! त तो खुड़वा खेले बर बढ़िया ग्राउन्ड हे भारत मा। महूं चलिहंव यार।’ तीसरा- शाबास। सुन हमन हमला करइया हन, एकर बर एक ठन बिदेसी संस्था हर पहिलीच ले भारत ला दे डारे हे। तभो ले ऊंहां के मन, चद्दर तान के, रजई ओढ़ के सूते हें। जब हम हमला कर लेबो, तब ओमन जागहीं। अपन सिपाही-अफसर मन ला शहीद होय बर भेजहीं, रेड अलर्ट घोषित करहीं, सुरक्षा कड़ा करहीं। एती हमन छू।’ चौथा- ‘जेहाद मा हमर जान यदि बांच गे, तब हम हीरो बन जाबो, देस मा हमर मान होही। अऊ यदि लड़त-लड़त कहूं कुरबान हो गेन, त सीधा जन्नत जाबो, इनाम मा खबसूरत हूर पाबो।’ दूसरा- ‘अऊ कहूं भारत सरकार हर हमर खिलाफ, हमर सरकार ला सबूत दे दिही तब?’ तीसरा- ‘तब? तब काय करही हमर? ओ हर सबूत देवत हे के, दाऊद हर पाकिस्तान मा हावय। का हमर सरकार हर ये सच ला माने बर तियार हे?’ चौथा- ‘ठेंगा रे बाबू, ठेंगा।’ दूसरा (खुस होके)- ‘ईमान से? मजा आही यार। कब जाबो हिन्दुस्तान? हाथ खजुआत हे।’ पहिला- ‘जाबो बिरादरी जाबो। धीरज तो धर।’

इही आतंकवादी मन एक दिन भारत मां जोरदरहा हमला कर दीन। देस हाल गे। प्रधानमंत्री के सचिव हर ‘देस के नाम संदेस’ वाले कागज ला अलमारी ले हेरीस। जब-जब देस मा आतंकवादी आक्रमन होथे, इही संदेसा हर पढ़े के काम आथे, ये हा परम्परा बनगे हे। प्रधान मंत्री हर जब संदेसा ल पढ़ीस तब पब्लिक मन बीच-बीच मा प्रतिक्रिया देवंय। ए जघा संदेस के संगे-संग कोस्टक मा पब्लिक के गोठ ला घलो पढ़व। संदेस- ‘ये आतंकवादी हमला के पाछू मा बिदेसी हाथ हावय। (पब्लिक तोला आज पता चलीस?) हम दुसमन मन संग कड़ई से निपटबो (पब्लिक- कै साल मा) हम कोनो आतंकवादी ला ये अनुमति नई देवन के ओहा हमर जनता के संग खुड़ुवा खेलय (पब्लिक- अभी कोन अनुमति दीस?) आतंकवाद ले लड़े बर हम कड़ा कानून बनाबो (पब्लिक- कब बनाहू? अवइया चुनई के बाद? अऊ जुन्ना कान्हून मा का खराबी रहीस लेजा खतम कर देव?) जनता ला भाईचारा बनाके, आतंकवादी मन ला सफल नई होवन देना है (नेता मन आपस मा कब भाईचारा बनाहू?) जय हिन्द।’ एती एक ठिक सहर मा चार झन नेता मन के बइठका होवत रिहिस। पहिला- ‘आतंकवादी मन फेर हमर देस मा हमला कर दीस। हमन ला बिरोध प्रदर्शन करना हे, अऊ आतंकवाद के पुतला जलाना हे।’ दूसरा- ‘भैयाजी! आतंकवादी मन हमर देस ला जलात हे, अऊ हमन ऊंकर पुतला भर जराबो। मोला समझ नई आत हे।’ पहिला- ‘अबे बैजड़हा कहीं के! तोला कोन नेता बनइस रे? अरे! जब देस मा हमला होय हे, तब हमू ला कुछ न कुछ करना चाही के नई चाही? हम जन प्रतिनिधि होथन।’ तीसरा- ‘बिलकुल। हमन पुतला जरोबो, हमला के निंदा करबो, शहीद मन ला तरपन देबो। फोटू खींचवाबो, पेपर मा नाम अऊ फोटू छपवाबो। जनता खुस होही। हमर इही तो बूता आय। अऊ का हे हमर?’ दूसरा- ‘आतंकवाद ला खतम करे बर अऊ कुछु नइ करन?’ चौथा- ‘अऊ काय करबो? आतंकवाद ले नेता मन ला कुछु नकसान हे का? कमाण्डो अऊ गनमेन हमर सुरक्छा बर तैनात हें। मरही त जनता। जनता के का हे? कीरा-मकोरा बरोबर बिलबिलावत हे। हजार पांच सौ मरी जाही त देस के का नठा जाही? भलुक हमला तो फायदा हे। बिरोधी मन कहूं थोरको चूं करही, तब हम अमन ला बदनाम कर देबो? कहिबो- के ए मन संकट के घड़ी मा राजनीति खेलत हें।’

दूसरा- ‘अइसे न? त मोला काय करना हे?’ चौथा- ‘कुछु नहीं। नानमुन भासन दे देबे बस।’ दूसरा- ‘कइसे।’ पहला- ‘तैं कहिबे के हमर के कायर आतंकवादी मन के आगू मा नई झुकन, बल्कि ऊंकर बंदूक के आगू मा अपन छाती ला तान देबो।’ दूसरा- ‘वा ग हुंसियार! जब मैं हा आतंकवादी मन के आगू मा छाती तान दिहूं, त ओ मन मोला गोलिया नई दिही?’ ‘तै काबर छाती नई तानबे? चतुरा नहिं तो।’ पहिला- ‘अरे गदहा! तोला सिरतोन मा छाती नई तानना हे, भासन भर देना हे। छाती तो पुलिस अऊ सेना के छेदाही बे। तैं काबर पोचक्की मारत हस? ते हा आतंकवादी मन के गोली से, आज तक कोनो एको झन नेता ला मरत देखे हस?’ दूसरा- ‘ओ तो नई देखे हंव। फेर ये लड़ई मा आतंकवादी मन कम, अऊ हमर जवान मन जादा मरथें नेताजी!’ पहला- ‘त उन ला तनखा का के मिलथे रे? मरेच के तो मिलथे।’ तीसरा- ‘जब उन मर जाथें त इनाम के भुलका फूट जाथे। ऊंकर परवार ला, गदगदा के पइसा मिले लगथे। चांदी हो जाथे ऊंकर। समझे?’ दूसरा- ‘थोक-थोक समझे के कोसिस मा हंव भैया जी!’

एक झिक मंतरी जी के इन्टरव्यू टीवी मा आवत रहय। वो कहत राहय- ‘मे हा आतंकवादी गम के, पहिली जतका निंदा करत रेहेंव, आजो घलो ओतके जोर सोर से निंदा करत हें। उन जब-जब हमर देस मा हमला करहीं तब-तब ऊंकर निंदा करे मा मोला कभू पाछू नई पाहव। एक घंव भुट्टो हर कहे रिहिस के हम भारत के संग एक हजार साल तक जंग करबो। ओ मन तो आतंकवाद के रूप मा जंग करके अपन प्रण ला निभाते हें। फेर हमरो ये परन हावय के हम परान दे के घलो, हजार साल तक उन ला माफ करबो। इही हमर महानता ये, इही हमर परम्परा आय। जय हिन्द।’
चार झिक नागरिक मन अइसे गोठियात रहीन पहिला- हमर एक झिक नेता कहत हे के- ‘देस आतंकवाद के आगे कभी नहीं झुकेगा। हम लोग इसका मुंह तोड़ जवाब देंगे।’ दूसरा- ‘अभी न तो आतंकवादी मन हमरे मुहुं ला टोरत हें।’ तीसरा- ‘एक झिन मंतरी कहते हे के भारत में फैल रहे आतंकवाद के तार पाकिस्तान से जुड़े हैं।’ चौथा- ‘ओला अब पता चलीस हे? ओला तो अन तार ला खुरसी से जोड़े राखे ले फुरसत नई हे।’ दूसरा- ‘एक झिक नेता कहत हे के हम पाकिस्तानी सरकार को सबूत देते हुए उनसे निवेदन करेंगे कि आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करें।’ तीसरा- ‘बने हाथ-पांव जोर के निवेदन करे बर बोल दे ओला। कोन जनी ओकर पाकिस्तानी-ददा मन मानहीं के नई मानहीं त।’ चौथा- ‘एक झिन मंतरी कहते हे के- इस आतंकवादी हरकत की कीमत चुकानी होगी।’ पहला- ‘काला चुकानी होगी? भारत ला, के पाकिस्तान ला?’ दूसरा- ‘एक झिक मंतरी कहते हे के- भारतीय दिलेर हैं। हम डरेंगे नहीं। मजबूती से दुश्मनो का सामना करेंगे।’ तीसरा- ‘हव। भले ओ मन हमर पांच सौ मनखे मन ला मार दय, हमन कम से कम पांच झिक ला मारी डारबो। तहां खुस हो के चद्दर तान के सूत जाबो।’ दूसरा- ‘कसजी! ये मुम्बई मा आतंकवादी मन संग लड़ई चलत रिहिस, त बम्बई के हीरो ‘राज’ अऊ ‘बाटला हाऊस’ वाले स्टार अमरसिंग मन कहां चल देहे रहीन?’ पहला- ‘ओ मन ला तीन दिन बर लोकवा मार देहे रहीस यार।’ तीसरा- ‘सुने हंव, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हर अपन दुलरुवा अऊ रामू भैया ला धरके ताज घुमाय बर ले गे रिहिस हे?’ चौथा- ‘हव। आतंकवादी के खुड़ुवा खेले बर ये जघा हर बने हावय, इहां आतंकवादी पिरपटन ला बने बढ़ाय जा सकथे, अइसे सोच के लोकेसन देखे बर गए रिहिस हे, अइसे बताए।’ दूसरा- ‘जय हो आतंकवादी परिपटन ला बढ़ावा दे बर, बढ़िया खेल आय-‘आतंकवादी डुडुवा।’
-के.के. चौबे