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व्यंग्य

आवव बियंग लिखन

छत्‍तीसगढी भाखा म आजकल अडबड काम होवत हे, खंती खनाए खेत म घुरवा के सुघ्‍घर खातू पाये ले धान ले जादा बन कचरा जइसे उबजथे तइसनेहे, लेखक-कबि अउ साहितकार पारा-मुहल्‍ला-गली-खोर म उबज गे हे । बिचारा मन छत्‍तीसगढी साहित्‍य ल सजोर करे के अपन-अपन डहर ले उदीम उजोग करत हें । कतकोन झिन अपन अंगरी कटा के सहीद म नाम लिखाये बर अपन चार-दस पाना के किताब तको छपवावत हें अउ आजोग के अधियकछ नई तो मंत्री-संत्री ला बला के किताब के उछाह-मंगल से बिमोचन करावत हें । कथे नहीं नवा बईला के नवा सींग चल रे बइला टींगे टींग बने दौंरी फंदाये हे अउ धान मिसावत हे, मोर धरती मइया धान के कटोरा फेर लहुटत हे ।
परकासक मन के घलो चांदी हे, छिंका के टुटती बिलई के झपटती, कोरी कोरी पुस्‍तक छापाखाना म छपत हे अउ परकासक महोदय भोभला लेखक घलो ला ‘बने जोरदरहा चाबथस दाउ !’ कहि-कहि के अपन बिजनिस ला बढावत हे । पेपर-सेपर म घलो अभीन छत्‍तीसगढी भाखा ह महिना म दू चार पाना छपे लागे हे, एक बूंद मही मा छीरसागर नई कलथे फेर का करबे अम्‍मठ खाये के सउंख चटनी ले पूरा करत हन ।
बडका बडका बियंगकार मन के रचना के चटनी पंद्रही म चटकारत हन, इंखर बियंग हमला बासी संग अडबड मिठावत हे । काबर कि इंखर डारे अथान-चटनी ले काखर दांत किनकिनाथे अउ काखर दांत भोथलाथे पताच नी चले, सब मीठे मीठ लागथे, अब हम रहेंन साहित म लेडगा के लेडगा, आगी जाने, लोहार जाने, धुकना के लुआठ जाने भईया, बने जोक्‍कर मन कस हांसी के बात येमा रहिथे तेखर सेती येला चुहकथन । अब जोक्‍कर मन के बात घलो साहित्‍य हो जाही तउन ला हम का करबोन । मोर संगी मन कहिथें कि हरिशंकर परसाई नाम के एक ठिन चटनी रहिसे तउन ला लोगन मन चटनी-अथान कहंय, बाद म येला अम्‍मठ साग माने गीस तइसनेहे इहू बियंगकार मन एक दिन अथान ले अम्‍मठ कडही होहीं तंहा ले एहू जोक्‍कर मन ला साहित्‍य के जात-भात एकमई करे ल परही अउ इखर डंका चारो खूंट म बाजे लगही । अभी तो अंधरा गांव म चिपरा सियान मन के पांव पैलगी करेच ला परही । तेखर खातिर मोर मन ह छत्‍तीसगढी बियंगकार मन के बढोतरी ल देखके रमायन के बाढत चढोतरी जइसे कुटुम-परवार की जय जय चिचियावत, जयकारा करथे अउ सोंचथे वाह भई, बियंगकार मन तो बड नाम कमावत हें ।
अडबड दिन ले भडउनी गीत कस गजट म छपे बियंग मन ला पढ-पढ के महूं बिचार करेंव कि महूं अपन नांव कमा लेतेंव अउ कोनों बियंगकार के इंटरबियू ले लेतेंव । बाद म कोठी ढाबा म बिजहा कस छाब मूंद के रखतेंव, पेपर-सेपर वाला मन के मांगे ले बने उंचहा ‘मानदेय’ म बेंचतेंव । असन बिचार कर के एक झिन बियंगकार के पता ला तरिया म मछरी टमडे असन टमडेंव अउ दमक मारेंव ओखर घर ।
जय जोहार के पाछू मैं हर उंखर लिखे बियंग के अडबड बडई गोठियायेंव । बियंगकार के आंखीं म जइसे जइसे आनंद ह चमकय, मैं उंखर बडई वइसे वइसे करंव । आखिर म बियंगकार ह परसन होके बने चाय-नास्‍ता मढा के भोला भंडारी कस कहिस ‘बोलव बाबू कइसे आये रेहेव’ मोला लागिस कहत हें ‘का बरदान चाही बाबू’ । दांत ला निपोर के मैं हर केहेंव ‘बस बियंगकार जी मैं हर आपके इंटरबियू लेहे बर आये रेहेंव ।‘ कहि के फेर मुसकायेंव अब कोदो लुवत ले भांटो नई तो ठेंगवा चांटो कस कहिती पालिस तो मारे ल लगही । बियंगकार अपन कमीज के कालर ला उप्‍पर डाहर चढावत मुसकायिस अउ इंटरबियू देहे बर सोफा म बने तन के बइठ गे । मैं हर कागज कलम लेके अपन सवाल पूछे लागेंव ।
– बियंगकार जी आपके पहिली रचना कब अउ कोन गजट म छपे रहिस, ओखर छपे ले आप ला का अनुभो होइस ?
– हा हा हा ! बाबू मोर पहिली रचना लाल माटी गजट म सन ससत्‍तर म छपे रहिस, तब मैं बारा बरिस के रेहेंव । होइस का कि स्‍कूल जात जात मैं पथरा म अपट गेंव त मोला आभास होइस कि मोर बाप राजनीतिक आदमी ये, ये कारस्‍थानी खच्चित ओखर बिरोधी पार्टी के होही, रस्‍दा के पखरा-गोंटा ला थोरकन उंचा दीस होंही, टूरा इही मेर ले जाही त अपटही सोंच के, अउ सिरतोन मैं ओमा अपट के गिर गेंव । ये किस्‍सा ला, कइसे मोर बस्‍ता फेंकाइस, कइसे मैं दमरस ले गिरेंव तउन ला लिख के गजट म भेजेंव । दम्‍म ले ओखर छत्‍तीसगढी के महागियानी संपादक ओला छाप दिस अउ मोला फोन करके अडबड साबासी दिस, संपादक महोदय के महागियान ले मोर कंठ खुल गे, तब ले चालू हे लिखई ।
– बियंगकार जी छत्‍तीसगढी साहित्‍य में गीत, कबिता, कहनी, अनुवाद लिखे गेहे फेर ये बियंग ह आजकल लिखे जावत हे, आप बतावव बियंग का ये । हांसी-ठट्ठा, जोक्‍करपना अउ ये नवां जिनिस ‘बियंग’ म का अंतर हे ?
– बियंग मतलब ……….. ये ह कहानी नोहे, ये ह कबिता घलो नोहे । ये ह एक किसिम के अइसे लिखई ये जउन मा कोनो ल भडे जाथे । ये भडई म पढइया मन ला मजा आथे, अउ जउन ला भडे जाथे तउन हा अपन मेंछा टेंवत भडवाथे काबर कि ओखरो बारे म गजट म जब छपथे त ओखर परसिद्धि बाढथे । रहिस बात हांसी-ठट्ठा अउ बियंग के त, अभी दू चार ठन ला छोडके, गजट मन म जतका छत्‍तीसगढी बियंग छपत हे ओला देखत, हांसी-ठट्ठा ला ही बियंग माने जावत हे, अने कि जोक्‍करपना । जब तक के बियंग ला पढके मन खुलखुल-खुलखुल नइ हांसिस त ओ ह बियंग नोहे, संपादक मन घलो अइसनेहे बियंग ला छापथे अउ ओखर ‘मानदेय’ भेजथें । में ह तो कहिथंव बाबू, बियंग के नाम ‘हांसी के बात’ कर देना चाही ।
– अरे वाह बियंगकार जी आपमन तो बहुत उंचा बिचार रखथव, आप बियंग के बने गियाता अव लगथे । आप हिन्‍दी बियंग घलव पढे हव का अउ कोन हिन्‍दी बियंगकार ला सबले अच्‍छा मानथव ?
– हा हा हा ! काबर पढबोन जी, कोनो जरूरत नइ हे हमला पढे के । हम अपन भाखा के ही साहित ला पढथन अउ अभी हमर भाखा म एकाके दू ठन बियंग संग्रह छपे हे । उहू ला हम नई पढे अन, पढबोन तंहा ले उखर नकल हमर कलम म उतर जाही, तेखर खातिर हम नइ पढन । हम सिरिफ लिखथन, पढना तो आप मन ला हे ।
– सिरतोन कथो, बियंगकार जी, आप काबर लिखथव । आपके लिखे ले समाज म कोनो बदलाव-सुधार आये के कोनो उदबत्‍ती जरत आप देखथव का ?
– अरे, काबर लिखथव का ? नाम छपवाये बर लिखथन, छपे के बाद पेपर वाले मन पइसा भेजथे, तेखर बर लिखथन, संगी-साथी, हितू-पिरूतू मन ला देखाये बर लिखथन । हमर लिखे ले समाज म कोनो बदलाव आही कि नी आही, हम का जानबोन जी, हम कोनो ठेका थोरे लेहे हन समाज के ?
– अरे, रे, आप तो नाराज होवत हावव बियंगकार जी, सिरतोन कहत हावव आप ला का मतलब समाज के, आपला तो छपना हे भर । छोडव ये बात ला, आप ये बतावव कि आप नवां पीढी बर अउ नवां लिखइया मन बर का संदेसा देना चाहत हावव ?
– – हां ………….. । नवां पीढी के मन ला मोर बियंग पढना चाही, मोर गीत पढना चाही, एलबम निकलईया मन ला मोर गीत मन ला अपन एलबम म लेना चाही, मोला सम्‍मेलन-गोष्‍ठी मन म पगरइत बना के बलाना चाही । नवां लिखइया मन ला चाही कि उमन लिखे के कोसित मन करंय, सब खरमंडल लिखथें अउ गजट मन म छपे ला भेज देंथें तहां ले गजट वाले मन नंवा ये कहिके उंखर रचना ला छाप देथें, हमर रचना हा पछुआ जथे अउ हमला घाटा होथे, हम बडे मन के कुछु तो मान मरजाद रखना चाही, ये बुज्‍जरी मन नइ जानय । 

अतका गोठ बात के पाछू बियंगकार जी के मुबाइल बाजे लागिस, ओती ले पेपर वाले संपादक साहेब के फोन रहिस । बियंगकार जी अपन बियंग के बडई लमाये लागिस, कुकुर सहराए अपन पूछी । इही समय ला जोंग के हम अपन डोरी-डावां, कापी-कलम सकेलेन अउ अपन घर आ गेन । मन म गुनत के अब ले तो हमू ला बियंग लिखे के उजोग करना हे, बड पावर हे भई बियंग लिखइया के, पेपर वाले मन फोंन करथें, बिसय देथें कि येदे बिसे म लिख देतेव सर, दे तिहार बर लिख देतेव सर, कोडो-बोडो लिखेव भेजेव तहां ले छपना हे अउ दू सौ रूपिया के मनीआडर अइस त चेपटी संग कुकरी धडकना हे । बने उजोग हे बुजा हा, त आवव हमू मन बियंग लिखन ।
(काटून फोटू दिव्‍यभास्‍कर अउ श्री सतपाल जी ले साभार)

संजीव तिवारी