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कविता

इही त आये गा छ्त्तीसगढ सरकार

लबरा होगे राजा अ‍उ खबडा होगे हे मंत्री
ददा मन ले बाच पायेन त टीप देथे संतरी

पांव के पथरा ल आ मूड मे कचार
इही त आये गा छ्त्तीसगढ सरकार ॥

बनीहारी छोड अ‍उ नेता के भाषण सुन
बिना जीव के गोठ ला दिनभर गुन

गुडी मे बईठ अ‍उ रोज माखुर फ़ांक
चुनई के दारू पी,गोल्लर कस मात

चरन्नी बुता अ‍उ बरन्नी परचार
इही त आये गा छ्त्तीसगढ सरकार ॥

घीसलत जिंनगी अ‍उ मुँह भर खासी
बटकी मा न‍इ हे खाये बर बासी

लबरा हे सबो झन, झन हो बिसवाशी
पंजा हो कमल हो या हो फ़ेर हाथी

 बुता के हिसाब अडिया के मांग आज
डर्राये के नोहे काम जब तोर हरे राज

रोनहा अफ़सर अ‍उ ओंघर्रा पत्रकार
इही त आये गा छ्त्तीसगढ सरकार ॥

दीपक शर्मा