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व्यंग्य

उदेराम के सपना-2

(एखर पहिली के अंक में आपमन उदेराम के सपना के आधा (भाग एक) ल पढ़ेव। जेमा उदेराम ह अपना दाई-ददा मेर लबारी मार के गांव वापिस आ जाथे अउ मछरी मारथे। पढ़िस-लिखिस नहीं तेकर सेती अपन अवइया पीढ़ी के लइका मन ल पढ़ाहूं-लिखाहूं अउ बने कमइया बनाहू कहिके सपना देखे रहीसे। ओकर सपना ह कइसे पूरा होइस। अब पढ़व ‘उदेराम के सपना’ के भाग दू जेमा कइसे ओकर लइका मन पढ़-लिख के आगू बढ़िन)

”दु:ख होइस चाहे सुख होईस अपन गोसइया ल देवता मान के ओकर भक्ति करीस। सब दुख ल चुप रहि के पी लीस।

इहां तक के कभू-कभू तो हाथ के एंठी अउ गर के सुता घलो डूब जाय। माता सरसती ह परीक्छा लेवय तइसे। ओती गहना डूबे त एती मंझला भाई हा अव्वल ऊपर अव्वल आवे। दुरगा महाविद्यालय रायपुर म रामपियारा ह पढ़ई म सोनहा मेडल पइस। उदेराम के सपना सिरतोन होवत गीस।”
उदेराम ह ठउका इही समे भारी अंकाल ह ओकर बर दुब्बर ले दू आसाढ़ होगे। एती घर के गिरवी ओती मंझला भाई रामपियारा के पढ़ई के खरचा के बढ़ती। उदेराम के एके सपना भले कुछु हो जाय, भाई ल पढ़ाना हे मने पढ़ाना हे। वइसने पढ़ई म होनहार रामपियारा। अपन समे म मेटरिक म दुरुग जिला म पहला आय रिहिसे। मंझला भाई हा पढ़ई म अपन बड़े भाई के छाती ल फूलो देवय। सफलता ल देख के उदेराम के सबो दु:ख-दरद ह सफल हो जाए। उदेराम के धरम पत्नी के नाव लीला। दु:ख होइस चाहे सुख होइस अपन गोसइया ल देवता मान के ओकर भक्ति करिस। सब दुख ल चुप रहि के पी लीस। इहां तक ले कभू-कभू तो हाथ के ऐंठी अउ गर के सुता घलो गिरवी धरा जय। तेला छोड़ाय के हिम्मत नइ राहे अउ डूब जय। माता सरसती ह परीक्छा लेवय तइसे ओती गहना डूबे त एती मंझला भाई ह अव्वल ऊपर अव्वल आवे। दुरगा महाविद्यालय रायपुर म रामपियारा ह पढ़ई म सोनहा मेडल पइस उदेराम के सपना सिरतोन होवत गीस। उदेराम ल लगे ल धरलीस के मोर तपस्या बिरथा नइ जाय। इसवर घर देर हे फेर अंधेर नइ हे।
दुरगा महाविद्यालय म दरसन सास्त्र म एम.ए. करीस। कॉलेज ले निकलते साथ पैरी हाई स्कूल म प्रिंसपल बनगे। प्रिंसपल के राहते राहत अंग्रेजी म एम.ए. करीस। अंग्रेजी म एम. ए. करते भार भेलई म अंगरेजी मास्टर के नौकरी मिलगे। रामपियारा ह अपन बड़े भाई के तपस्या ल जानत रीहिसे कि अमारी भाजी बेच के पढ़ाए रिहिसे तेला। रामपियारा के मन म अइस के जब बड़े भइया ह मोला पढ़ा-लिखा के इहां तक लाय हे त महुं ह बड़े भतीजा ल पढ़ा-लिखा के बड़े आदमी बनाहूं। ओकर बाद रामपियारा ह बड़े भतीजा के जिनगी ल संवारे म लग गे। बड़े भतीजा के नाव हे दुरगा जउन ह ए कहानी ल लिखे हे। ननपन म दुरगा ह मुतरा राहे। रोज के रोज जठना ल गिल्ला कर डरे तभो ले ओकर काकी बृजकुमारी ह अपन बेटा बरोबर राख के पढ़ा-लिखा के बड़े आदमी बना दिस। काबर के दुरगा के कका ह ओकर काकी ल अपन भइया भउजी के तियाग तपसिया ल बता डरे रिहिसे। सिक्छा के बिना जिनगी अधूरा हे कहिके। दुरगा ला पढ़ा-लिखा के बी.एस.पी. म नौकरी लगइस।
भतीजा के संगे संग अपनो लइका मन ऊपर भारी धियान दिस। ओकर बड़े लड़का भागवत ह पॉलिटेकनिक करके आज बढ़िया कम्पनी म नौकरी करत हे। ओकर नान्हे बेटा पियूस ह कालीकट म बी.ई. इलेक्ट्रानिक्स करीस। सुरुच ले ओहा तेज दिमाग के रिहिसे। नवोदय इसकुल बोरई म पहेला आवै। तभे तो आज वोहा बैंगलोर के बड़े जन कम्पनी म इंजीनियर हे। पियूस के योग्यता ल देखके कम्पनी ह तीन महीना के ट्रेनिंग बर अमेरिका भेजे रिहिसे।
समे के संग उदेराम के छोटे भाई बदरी ह घलो हुसियार होगे। बदरी ला घलो उदेराम ह अपन मंझला भाई कस पढ़ा-लिखा के सरकारी गुरुजी बना दिस। बाद म बदरी घलो बी.एस.पी. (भिलाई इस्पात संयंत्र) म मास्टरी म लग गे। बदरी घलो गुने ला धर लीस। महुं ह अपन बड़े भइया के छोटे बेटा मुकुन्द के भाग ल संवारहूं।
बदरी ह मुकुन्द के दुनो बेटा ल पढ़ाए-लिखाए के बीड़ा उठइस। लइका मन ला पढ़ावत-पढ़ावत घर के आरथिक स्थिति ल सम्पन्न कइसे करे जाय कहिके गुनिस। हाथ भट्टा ले बेपार सुरु करीस जउन ह आज चिमनी ईटा भट्टा के रूप ले ले हे। जेकर मालिक मुकुंद हे। दुरगा अउ मुकन्द के छोटे कका ल छोटे मास्टर के नाव ले जानथे। ओकर तीन झन लड़का हे। बड़े लड़का मिथलेस एम.बी.बी.एस. डॉक्टर हे, मंझला बेटा पुनेंद्र ह सूरतगढ़ ले बी.ई. कर के रायगढ़ के जिंदल कम्पनी म इंजीनियर हे। सब ले छोटे बेटा सिवेन्द्र ह घलो पढ़-लिख के अपन जिनगी ल संवारे म लग गे।
आज मुकुन्द करा ट्रक, ट्रेक्टर, ईंटा भट्ठा हे। बडे ज़न बिल्डिंग हे। जम्मो परिवार ल हांसत-कुलकत देख के उदेराम हा अपन गोसइन लीला ल कथे- आज हमर सपना पूरा होगे। लीला कथे- तोर सपना अभी पूरा नइ होय हे। तोर सपना तब पूरा होही जब तैंहा विधायक बनके रइपुर जाबे। अपन गोसइन के गोठ ल सुनके ठिठोली करत उदेराम ह कथे-रइपुर का दिल्ली जाहूं दिल्ली… सांसद बन के।

दुरगा परसाद पारकर
केंवट कुंदरा
प्लाट-3 सड़क-11
आशीष नगर (प.) भिलाई छग