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व्यंग्य

एक चिट्ठी गनेस भगवान के नांव

सिरीमान गउरीनंदन गजानन महराज,
घोलंड के परनाम।
लिखना समाचार मालुम हो के-
बीत गे असाढ़, नइ आइस बाढ़।
बीत गे सावन, पानी कहिस नइ आवन।
आगे भादो, परगे संसो, जपाथन माला
हांका परगे पोला आला, बरसा झाला। पोला आला…।।
अब गजानन देव, तूमन जघा-जघा बिराजमान होहू। पंडाल, मंच अउ झांकी के देखनी होही। गनेस पाख भर चारो मुड़ा आनी बानी के गनेस मूरती के चरचा होही। नरियर, धान, चांउर, करा बांटी, सुपारी, हरदी, मूमफल्ली, काजू, बदाम भगत मन ल जेने चीज सुहइस तेकरे मूरती बनवा के बइठारहीं। अतके होके छुट्टी हो जतिस तेनो नहीं अब तो नानम परकार के हाव-भाव अउ रूप रंग बनाय के घलो होड़ माते रइथे। तैंतीस करोड़ देवता के रूप म गनेस देखे ल मिल जही तौ कतको अइसे भगत हवंय जेन मनखे के सकल रूप ल गनेस भगवान म देखाय सउख रखथें। इसकुल बैग वाला गनेस ल कोन पढ़इया लइका नइ देखना चाही? नांगर जोतत गनेस ल देखे बर कोन किसान के मन नइ ललचाही? बइला गाड़ी नंदावत हे। गाड़ीवान गनेस घलो बन सकथे। गनेस देंवता, कुल मिलाके देखे जाय तो अब तूमन जनेस देंवता बन गे हौ। जनेस माने जन-जन के देंवता।
हमर छत्तीसगढ़ म एसो सुक्खा दुकाल के धुकधुक चढ़ गे हे गनपती महराज। जगन्नाथ के रथयात्रा बीत गे, सावन झूला अउ भोलेनाथ के सावन सम्मार बीत गे, आठे कन्हइया घलो बीत गे फेर पानी नइ गिरिस ते नइ गिरिस। अब भरोसा तोरे ले हे गजानन महराज। अपन पाख म बरसा ले के आ जा। वो पइत तैं बड़का देंवता सिद्ध होय रेहस। पूरा गनेस पाख बर बरसा करा दे। तरिया-डबरी, नदिया-नरवा, कुवां-बउली जम्मो सुक्खा परे हे। बस एक झड़ी के कसर बांचे हे, तहान सब लबालब हो जही। इहू पइत तंही बड़का देव सिद्ध होबे, गारेंटी देवत हन। तंय झन डेर्रा के गनेस पाख म झड़ी लगवा दुहूँ तौ मोला कोन देखे ल आही, आबो महराज हमन छत्ता ओढ़-ओढ़ के आबो। बिचारा छत्ता घलो कोन्टा म भुरियात-जलियात परे हे तेकरो नराजगी दूर हो जही। घर म भोलेबाबा अउ जगज्जननी पारबती दाई ल हमर परनाम कइहू।
बस गनेस भगवान,
थोरकुन लिखे हन, जादा समझहू।
चिट्ठी ल तार समझहू नहिं ते छत्तीसगढ़ ल पार समझहू।
तुंहर किरपा जोहइया
जम्मो छत्तीसगढ़िया भगत।
दिनेस चौहान,
छत्तीसगढ़ी ठीहा,
सितला पारा, नवापारा राजिम,
जिला रइपुर, छत्तीसगढ़।

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