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गीत

एक डंडिय़ा : माटी के पीरा…

ए माटी के पीरा ल कतेक बतांव,
कोनो संगी-संगवारी ल खबर नइए।
ए तो लछमी कस गहना म लदे हे तभो,
एकर बेटा बर छइहाँ खदर नइए।।

कोनो आथे कहूँ ले लाँघन मगर,
इहाँ खाथे ससन भर फेर सबर नइए।…

अइसे होना तो चाही विकास गजब,
फेर खेती ल उजारे के डगर नइए।…

धन-जोगानी चारों खुँट बगरे हे तभो,
एकर कोरा म खेलइया के कदर नइए।…

दुख-पीरा के चरचा तो होथे गजब,
फेर सुवारथ के आगू म वो जबर नइए।…

अइसन मनखे ल मुखिया चुनथन काबर,
जेला गरब-गुमान के बतर नइए।…

लहू तो बहुतेच उबलथे तभो,
फेर कहूँ मेर कइसे गदर नइए।…

सुख-शांति के गोठ तो होथे गजब,
फेर पीरा के भोगइया ल असर नइए।…

सुशील भोले
संपर्क : 41-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा), रायपुर (छ.ग.)
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