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कविता

ओहर बेटा नोहे हे

ओहर बेटा नोहे हे! परसा के ढेंटा आय
लाठी ल टेक टेक के सडक म बाल्टी भर पानी लानत हे
देख तो डोकरी दाई ल कैसे जिनगी ल जीयत हे
कोनो नइये ओखर पुछैया अपन दुख ल लेके बडबडावत हे
कभू नाती ल, कभू बेटा ल, कभू बहू ल गोहरावत हे
पास पडोस के मन ल अपन पिरा ल सुनावत हे
1 रूपया के चउर अउ निराश्रीत पेंषन म जिनगी ल गुजारत हे
नती के हावय डोकरी दाई बर मया
चाय पानी रोज पियावत हे
पडोसी ह भुख के बेरा म डोकरी दाई ल नास्ता करावत हे
देख तो डोकरी दाई ल कैसे अपन लाठी ल टेक टेक के पानी ल लानत हे
डोकरी दाई मने मन गुनत हे
बेटा के मया म पेंषन ल घलो सकेलत हे
बेटा के ठाठ बाट, गांव म हावे चर्चा
डोकरी दाई कुलेकुप रोअथ हे रथिया
भुला के दाई चोहना ल बेटा
अब अपन म हावे मगन
तभो ले डोकरी दाई करथे सुरता
भले हे मने मन म कहिथे बेटा ल परबुधिया
काला मोर दुख ल बतांव ग ,साहिल, मने मन गुनत हंव
ओहर बेटा नोहे हे! परसा के ढेंटा आय

लक्ष्मी नारायण लहरे साहिल
युवा साहित्यकार पत्रकार
कोसीर, रायगढ, छत्तीसगढ