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कहानी

कन्या भोज (लघुकथा )




आज रमेश घर बरा,सोंहारी,खीर ,पुरी आनी बानी के जिनीस बनत राहे । ओकर सुगंध ह महर महर घर भर अऊ बाहिर तक ममहावत राहे। रमेश के नान – नान लइका मन घूम घूम के खावत रिहिसे ।
कुरिया में बइठे रमेश के दाई ह देखत राहे, के बहू ह मोरो बर कब रोटी पीठा लाही ।भूख के मारे ओकर जी ह कलबलात राहे ।फेर बहू के आदत ल देखके बोल नइ सकत राहे ।बिचारी ह कलेचुप खटिया में बइठ के टुकुर – टुकुर देखत राहे ।
थोकिन बाद में पारा परोस के छोटे छोटे लड़की मन ह ओकर घर में आगे।रमेश के बाई सीमा ह सबझन ल बढ़िया परेम पूर्वक बइठारिस ,अऊ जे जे चीज बनाय रिहिसे सब ल थारी में परोसीस ।
एती ओकर दाई के भूख ह सहन नइ होत रिहिसे, त अपन बहू ल बोलिस – महूं ल खाय बर दे देतेस बहू ।अब्बड़ जोर से भूख लागत हे ।
अतका बात ल ओकर बहू सीमा ह सुनीस, ते ओकर तन बदन में आगी लगगे ।ओहा अपन सीमा लांघगे अऊ बोलीस – डोकरी गतर के चुपचाप बइठे नइ रहि सकस । आज संतोषी माता के उदयापन करात हों , ये सब झन ह कन्या भोज करे बर आहे ।पहिली ए माता मन ल भोग लगाहूं , तभे तो तोला देहूं। थोरको दम नइ धर सकस ।रात दिन बोजत हस तभो ले तोर पेट नइ भरे ,अऊ सबके सामने फदीत्ता कराथस ।
अऊ कोन जनी का – का बोलीस ते उही जाने।
नान – नान लइका मन कन्या भोज करे बर आय रिहिसे तहू मन ओकर बात ल सुनके डर्रागे।बिचारी मन चुपचाप खाके अपन अपन घर चल दीस।

महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला – कबीरधाम (छ ग )
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