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कविता

कबिता : चंदा

रोज रात के आवै चंदा,
अउ अंजोर बगरावै चंदा।
सुग्घर गोल सोंहारी बनके,
कतका मन ललचावै चंदा।
होतेच संझा चढ़ अगास मा,
बादर संग इतरावै चंदा।
डोकरा कस फेर होत बिहनिया,
धीरे-धीरे जावै चंदा।
तरिया पार के मंदिर ऊपर,
चढ़के रोज बलावै चंदा।
पीपर के डारा मा अटके,
कभू-कभू बिजरावै चंदा

दिनेश गौतम
वृंदावन 72, श्रीकृष्णविहार
जयनारायण काबरा नगर, बेमेतरा दुर्ग

आरंभ म पढ़व :-
कठफोड़वा अउ ठेठरी खुरमी
गांव के महमहई फरा

4 replies on “कबिता : चंदा”

ग्राम चौपाल में तकनीकी सुधार की वजह से आप नहीं पहुँच पा रहें है.असुविधा के खेद प्रकट करता हूँ .आपसे क्षमा प्रार्थी हूँ .वैसे भी आज पर्युषण पर्व का शुभारम्भ हुआ है ,इस नाते भी पिछले 365 दिनों में जाने-अनजाने में हुई किसी भूल या गलती से यदि आपकी भावना को ठेस पंहुचीं हो तो कृपा-पूर्वक क्षमा करने का कष्ट करेंगें .आभार

क्षमा वीरस्य भूषणं .

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