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कविता

कबिता : चोरी ऊपर ले सीना जोरी

मध्यान्ह भोजन के टेम रीहिस
खाना पकईया ह मोला
सरकारी परसाद ल दे के कहिस
थोर कीन चीख तो गुरूजी
चीखत-चीखत मे ह
अतका खा गेंव
कि ऊही करा कुरसी मा
सुत गेंव।
अचानक बीईओ साहब ह
स्कूल आईस
मोला पढाये के बदला मा
सूते पाईस
ओकर गुस्सा ह
पांवतरी ल छोड़ माथा मा चढ़गीस
मोला झंझकोर के जगाईस
अऊ कहीस
कक्छा मा तोला
थोरको सरम नई आईस
में ह थोरकिन उसनींदा रहेंव
तभो ले साहब ल कहेंव
साहब तें ह मोला गलत झन समझ
में ह लइका मन ला
समझावत रेहें हव
कुंभकरणी नींद कईसे होथे
कुंभकरणी नींद मा आदमी
मोरे कस सोथे!

हरखराम पेंदरिया ‘देहाती’
श्रीराम मंदिर रोड, महासमुन्द

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