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कविता

कबिता : नवा हे बिहान

मोर मयारु छत्तीसगढ़ गजब हे महान गा।
धरती दाई के सेवा करे लइका, सियान गा॥
तन म पसीना ओगार के
चोवा रुकोवत हे।
खेत-खार म मोर नगरिहा,
करम के बीजा बोवत हे॥
ये अड़हा किसान ल नइए गरब गुमान गा।
धरती दाई के सेवा करे लइका, सियान गा॥
कोलकी-कोलकी बइला रेंग,
बइला के सिंग म माटी गा।
नवा बहुरिया लाए हाबे
चटनी संग म बासी गा॥
रापा, कुदारी, नागर कोप्पर जेकर मित-मितान गा।
धरती दाई के सेवा करे लइका, सियान गा॥
बलावय वोला चिरई चुरगुन
अऊ मेड़ पार गा।
सबके हरय पोसइया,
कांध म हाबे जग के भार गा॥
नवा हे सुरुज नवा हे बिहान गा।
धरती दाई के सेवा करे लइका सियान गा॥
जितेन्द्र कुमार साहू ‘सुकुमार’
चौबेबांधा, राजिम

आरंभ मा पढव : –
बिस्‍वजीत बोरा की फिल्‍म : आदिवासी के दूत
बिना शीर्षक : राजकुमार सोनी के प्रथम कृति का प्रकाशन

2 replies on “कबिता : नवा हे बिहान”

जय जोहर भईया।कबिता बने लगीच।

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