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कविता

कबिता : नोनी

पढ़-लिख लिही त राज करही नोनी।

नइते जिनगी भर लाज मरही नोनी॥

पढ़ही त बढ़ही आत्म विसवास ओकर

दुनिया मा सब्बो काम काज करही नोनी।

जिनगी म जब कोनो बिपत आ जाही, 

लड़े के उदीम करही, बाज बनही नोनी।

पढ़ही तभे जानही अपन हक-करतब ल,

सुजान बनही, सुग्घर समाज गढ़ही ोनी।

परवार, समाज अउ देस के सेवा करही,

जिनगी ल सुफल करे के परियास करही नोनी।

गणेश यदु 

संबलपुर कांकेर