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कविता

कबिता : बेटी मन अगुवागे

जमाना बदलगे झन करौ संगी
बेटा-बेटी म भेद,
बेटी मन अगुवागे चारों खुंट
बेटा के रद्दा ल छेंक।

पढ़ई-लिखई म अव्वल आथे,
बेटा- मस्ती म समै बिताथे
बेटी घरो के काम बुता म,
सुग्घर दाई के हाथ बंटाथे।

तभो ले तुंहर आंखी नइ उघरिस,
बेटा के हावेच टेक। बेटी मन…॥
बेटा के आस मा जे परवार बढ़ाही
महंगाई वोला रोजे रोवाही,
बहू के आए ले का हे गारंटी,
बेटा तोला नइ ठेंगवा देखाही।

आफिस, कछेरी अउ फौज पुलिस मा
कहूं डाहर तैं देख।
बेटी मन अगुवा गे चारों खुंट
बेटा के रद्दा ल छेंक॥

दिनेश चौहान
शीतलापारा
नवापारा राजिम