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कविता

कबिता : ये देस कइसे-कइसे होवत हे

ये देस म कइसे-कइसे होवत हे।
जिहां बोहावय मया-पिरीत के गंगा,
लहरावय जिहां लहर-लहर तिरंगा
तिहां मनखे-मनखे मन के हिरदे रोवत हे॥
अती होगे गोला बारूद के
रोज होवत हे गोली बारी।
अतलंगहा मन अलगाव वाद के
बोवत हे बम के बखरी बारी।
मोर हरियर बाग बगिच्चा उजरत हे,
नफरत घृणा के बिजहा बोंवत हे।
छत्तीसगढ़ म नक्सली मन
बोकरा, भेंड़ा कस पूजत हे।
बारूद लगा के, सुरंग कोड़ के
मनखे-मनखे ल धूंकत हे
मोर सरग सरीख भुइंया म कइसे,
खूने-खून के होली होवत हे।
कैंकर बस्तर रोवय बोमफार के,
बिहार झारखण्ड थर्रावय।
ये बइरी मन बर धुंकी नइ आवय,
न मउत के थोरको डर्रावय
बदना-बदत हंव दंतेसरी दाई,
कोन बसतरिहा मन के आंसू पोंछत हे॥

देवेन्द्र कुमार सिन्हा ‘आजाद’
ग्रा.-पो. बोरई जिला दुर्ग