Categories
कविता

कबिता : हाबे संसो मोला

हाबे संसो मोला, होगे संसो मोला ये देश के।
भाई-भाई भासा बर लड़थे, बिपदा गहरावथे महाकलेस के॥
मंदिर-मस्जिद के झगरा अलग,
सुलगावत रहिथे आगी।
मया-पिरीत ल छोंड़
भभकावत बैरी पाप के भागी।
बात-बात म खून-खराबा, भाई ल भूंजत हे लेस के॥
माँहगी होगे भाजी-भांटा,
तेल, सक्कर, चाउर-दार।
छोटे-बड़े, मंझला झपागे,
धरम-करम होगे भ्रष्टाचार।
माफिया सरगना, डाकू, डॉन, उड़ावै मजा,
नकली माल बेंच-बेंच के॥
जम्मो अनैतिक धंधा के होवै कारोबार।
चोरी-डकैती अपहरन के, फूलत-फरत हे बजार।
डॉक्टर किडनी-विडनी बेंचय, बेटी बेंचावथे,
सहर, नगर भेज-भेज के॥
कोनो नक्सलवादी बनगे, कोनो अतलंगहा आतंकवादी
चारों मुड़ा ले देस बर खतरा, खतरा म परगे आजादी।
कोनो भीम बजरंगी बनके, धोवव मइल ल, दुरपति के केंस के॥
भारत के भुंइया बनय, सुघ्घर सुख-सांति के छंइया।
बिबिधता म एकता, हमर चिनहारी हे भइया।
जुन्ना सभ्यता, संस्कीरित ल झन मेंटव, इही परान ये देस के॥
देवेन्द्र कुमार सिन्हा आजाद

बोरई-दुर्ग छ.ग.