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कविता

कबिता : होली के रंग म

लइका सियान जम्मो नर नारी
उड़ाए गुलाल पिचकय पिचकारी
संगी साथी सबो कोन्हों संग म
रंगे हाबे ग होली के रंग म।

बजावत हे नंगाड़ा गावत हे गाना
दही ले ले मही ले ले गुवालिन के राग
पहिरे हावे फुंदरा बाला नवा ढंग म
रंगे हाबे ग होली के रंग म।

बैरी भाव ल छोड़ के बिना मीत मितान
होलिका माई ल माथ नवाए किसान
माते हावे खुशी के भंग म
रंगे हाबे ग होली के रंग म।

कोन्हों बने राधा त कोन्हों किशन
श्याम रंग म रंगत हे मदन मोहन
झूमे नाचे गाये मस्ती के तरंग म
रंगे हाबे ग होली के रंग म।

आशीष देवत हाबे तियाग के जात पात
होवत हे जगा-जगा मया के बरसात
पिरीत के रंग डारत हे अंग-अंग म
रंगे हाबे ग होली के रंग म।

जितेन्द्र कुमार साहू ‘सुकुमार’
चौबेबांधा (राजिम)
जिला- रायपुर