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कवित्त छंद

Ramesh Kumar Chouhan11ऐती तेती चारो कोती, इहरू बिछरू बन,
देश के बैरी दुश्मन, घुसरे हे देश मा ।
चोट्टा बैरी लुका चोरी, हमरे बन हमी ला,
गोली-गोला मारत हे, आनी बानी बेश मा ।।
देश के माटी रो-रो के, तोला गोहरावत हे,
कइसन सुते हस, कब आबे होश मा ।
मुड़ म पागा बांध के, हाथ धर तेंदु लाठी,
जमा तो कनपट्टी ला, तै अपन जोश मा ।।

2-.

फेशन के चक्कर मा, दूसर के टक्कर मा,
लाज ला भुलावत हे, गांव के टूरा टूरी ।
हाथ धरे मोबाईल, फोकट करे स्माईल,
आंख मटक्का करत, चलावत हे छूरी ।।
करे मया देखा देखी, संगी संगी ऐती तेती,
भागत उड़रहीया, बाढ़े बाढ़े लईका ।
ददा ला गुड़ेरत हे, दाई ला भसेड़ेत हे,
टोरत हे आजकल, लाज के फईका ।

रमेश कुमार सिंह चौहान

3 replies on “कवित्त छंद”

बहुत बढिया रचना हे
बधाई हो |

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