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कहानी : फूल के जघा पउधा भेंट करव

रवि अपन संगवारी उदय संग छोकरी खोजे बर निकरथे, लहुट के गांव म अपन ददा ल जाके कोनहो छोकरी नई भइस कइके बताथे। सरकारी नौकरी करईया पढ़े-लिखे रवि हा जम्मों झन ल पढई-लिखई, रंग-रूप, चिज-बस, गवंईहा-सहरिया कइके कमी खोजिच डारे। ओखर ददा कइथे तेहा अइसने करबे त जिनगी भर डेड़वा रेहे ल परही, भगवान के छोड़ कोनहोच हा सर्व गुन वाला नई मिलय, अऊ फेर जेखर संग तेहा बिहाव करबे तेखर भीतर का गुन हमाय हे तेला कोन जानथे? जिनगी हा तोर नचाय ले नई नाचे, जिनगी म बेरा-बखत के हिसाब ले चले ल परथे। अब कोनहो करा जाबे त घेखरई झन करबे, ताहन भगवान सब बनेच करही। रवि ददा के गोठ म थोकन रिसाथे फेर ददा के गोठ हा सिरतोन घलो लागथे अऊ ओहा एक ठन गांव के बारहवीं पढे सुन्दर अकन छोकरी ‘आभा’ ल मांग डरथे। रवि के मन म कॉलेज करे सहर के पईसा वाला घर के छोकरी के सपना रइथे। फेर ददा के कहे ल मान लेथे।
दू महिना के गे ले उदय के घलो बिहाव माढ जथे, उदय के परवार हा पहिलि ले सहर में रथे त उदय ल रवि सोंचे रथे तइसन सहरी, अब्बड़ पढे-लिखे, पईसा वाला घर के फैसनेबुल छोकरी ‘अस्ती’ मिलथे। बड़ धूम-धाम ले बिहाव होथे। अऊ दुनो झन के एके नौकरी रइथे त तबादला करा के संग म आ जथे। रवि घलो नौकरी करत सहर म रइथे फेर अपन गोसाईन ल अड़ही समझ के संग म नई राखे, अऊ गांव म दाई-ददा संग छोड़ देथे।
आभा हा घर परवार म झटकुन मिंझर के गाय बछरू, बारी-बखरी के बुता ल संभाल डरथे। रवि अब्बड़-अब्बड़ दिन म घर आथे अऊ अपन गोसाईन संग बने बेवहार नई करे। तभो ले आभा कभू रीस नई करे। आभा हा पड़ोस म एक झन ल भऊजी माने, त एक दिन ओहा आभा घर अंगना म खिले गुलाब के फूल ल मांगे बर आथे, त आभा कथे ‘फूल ल काबर टोरबे, तेखर ले तेहा गुलाब के पउधा ल लेजा, हमर बखरी म नान-नान बड़ अकन पउधा हावय’ भऊजी हांसथे अऊ कथे ‘तेहा सहिच में अड़ही हरस का आभा! आजे के दिन तोर भैया संग मोर बिहाव होय रीहिस त ओला हमर मया ल सुरता कराय बर गुलाब के फूल देहूं। अब तिही बता अइसन बेरा म पउधा ल कोनहो देथे का?’ आभा कथे ‘ये अंगना ल देख भऊजी इंहा तोला तीन ठन गुलाब के पउधा दिखत होही! मोर बिहाव ल तीन बछर होय हे। मोला तो मोर गोसान मया घलो नई करे तभो ले मेहा हर बछर एक ठन पउधा लगाथंव, अऊ येला मया के चिन्हा जान के सहेजथंव, अऊ आज मोर घर अंगना माहकत हे, देवधामी म चघाय बर घलो फूल खोजे ल नई लागे, अऊ संग म प्रकृति ल घलो सहेजे जा सकथे। अऊ फूल तो चार दिन म अइला जही त तोर मया के परीक्छा तो पउधा के जतन करेच म होही।’ भऊजी घलो आभा के बात ल मान के फूल के जगा पउधा लेग के अपन गोसान ल देथे। पहिली तो ओकर गोसान हांसथे ताहन बात ल समझ के पउधा अंगना म लगा के ओखर सेवा करथे। दू महिना के गे ले भऊजी आभा ल धन्यवाद दे के कथे ‘तोर सेतन हमर घर म मया के फूल सरलग ममहावत हे।’ त आभा सोंचथे सबो झन अइसने फूल ल टोरे ल छोड़ के पउधा अऊ रूख ल मया के चिन्हा बना लेतिन त पर्यावरण बर कोनहो ल चिन्ता करे ल नई लागतिस।
दूसर दिन ले आभा हा अपन बखरी म अब्बड़ अकन गुलाब अऊ आने-आने फूल मन के पउधा रोपथे, अऊ जगाये के लइक हो जथे त टुकना म धर के हाट म निच्चट किमत म बेचथे। पहिली तो कोनहोच हा ओखर बात ल नई समझे अऊ हांस के रेंग दय। फेर आभा अपन मिहनत म कमी नई करय, अऊ थोक-थोक करके जम्मों मनखे मन ल समझे ल धरथे त अब कोनहो ल फूल लेना राहय त ओहा पउधा लेवय। अऊ अब जम्मों गांव ल फूल के जगा पउधा भेंट करे के नवा उदीम ले जाने लागिस। अऊ बड़े रूख के पउधा ल घलो सब भेंट करे। आभा के ये उदीम हा सहर म घलो होये लागिस, ये उदीम काकर आय तेला कोनहो नई जाने फेर फूल के जगा पउधा भेंट करना हे ते बात ल जम्मों झन अपना डरिन। अऊ आभा ल पर्यावरण बचाये के उदीम करे बर गांव के एक ठन कार्यक्रम म पुरस्कार देके सम्मानित घलो करे जाथे। ये सब बात ल रवि नई जानत राहय फेर कोनहो महिला हा येला चालू करे हे अतकी जानत रथे।
ओती अस्ती अऊ उदय के भीतरे-भीतर झगरा चलत राहय। अस्ती बड़ खरचा करय, पिकनिक, पार्टी अऊ बिन काम के सामान ले के टकराहा होगे राहय, नौकरी करथंव कइके सास-ससुर के सेवा जतन बर ढेर करय, फेर देखावा करे बर सब झन के आघु म भारी प्रेम करथन केहे बरोबर राहय। एक दिन उदय अस्ती के बिहाव तारीख ल मनाये बर घरोधी मनखे मन ल नेवतथे, अऊ रवि ल आभा संग आये बर कहिथे त रवि हा आभा ल सहर बुला के उदय घर पहुंचथे, ऊंहा आये सबो झन चग-बग पहिरे ओढ़े राहय, सब ल देख के आभा संकोच करथे अऊ रवि हा आभा ल निच्चट समझ के लजावत रइथे। सगा मन में अब्बड़ झन हा फूल अऊ रूख मन के पउधा ल भेंट करे बर लाने राहय। जम्मों झन ये उदीम के गोठ अऊ बड़ई करत राहय फेर आभा हा अपन नाव अऊ उदीम ल काकरो तिर उजागर नई करय। रवि हा आभा अऊ अस्ती ल मिलवाय के बेरा अस्ती के बड़ई करथे अऊ कथे फूल के बदला पउधा असन उदीम ल अस्ती असन कोनहो पढ़े-लिखे माई लोगनेच हा कर सकत हे। अऊ आभा ल अड़ही आये कइके ठोल देथे। आभा तभो चुप रथे।
ओतकी बेर एक झन बड़े नेता ऊंहा पहुंचथे, ओला देख के सबो झन सकपका जथे, अऊ आदर-सत्कार म लग जथे। वो नेता हा मंत्री रथे अऊ ओखरे हाथ ले आभा ल पुरस्कार मिले रथे। ओहा आभा ल लछरहा देखथे, त तिर म जाके हाथ जोड़ के राम-राम करथे अऊ गोठियाथे, त रवि पुछथे ” मंत्री जी ते आभा ल कइसे जानथस” त मंत्री कथे ‘येला कोन नई जाने? इही तो हरे बिना स्वारथ के पर्यावरण बर उदीम करईया।’ रवि बोकबाय हो जथे, अतका दिन ले जेला अड़ही समझत रथे तेहा तो सबले समझदार निकलथे। अब रवि के आभा के चमक हा दुनिया म बगर गे त ओहा उदय के अस्ती ल भुला के अपन ददा के गोठ ल सुरता करथे कि काखर भीतर का गुन हमाय हे तेला कोन जानथे।

ललित साहू “जख्मी” छुरा
जिला-गरियाबंद (छ.ग.)
9993841525

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