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कहानी – सुरता

इसकूल ले आके रतन गुरजी ह लकर-धकर अपन जूता मोजा ला उतारिस अउ परछी म माढे कुरसी म आंखी ल मूंदके धम्म ले बइठगे। अउ टेबुल म माढे रेडियो ल चालू कर दिस। आज इसकूल के बुता-काम ह दिमाग के संगे संग ओकर तन ल घलो थको डारे रिहिस। आंखी ल मुंदे मुंदे ओहा कुछु गुनत रिहिस वतकी बेरा रेडियो म एक ठ ददरिया के धुन चलत रहय-धनी खोल बांसरी
तोला कुछु नइ तो मांगो रे!
मया के बोली का हो राजा! खोल बांसरी
पानी रे पीये पीयत भर के
कैसे छोडे दोसदारी रे
जियत भर के हो राजा! खोल बांसरी
अउ आंखी ल मुंदे मुंदे रतन बीते बेरा के सुरता म बिलमगे।
बीस बच्छर पहिली के तो बात आय जब रतन ह बारमी किलास पढे के बाद घर आइस। ननपन ले रतन ह अपन नानी-नाना के घर म रहिके पढे बर चलदे रिहिसे। फेर मनखे के परिस्थिति कतका बेर बदल जही कोन जानथे। रतन के बाबूजी के तबियत अचानक बिगडगे। रतन के बडे भैया ह अपन नौकरी के सेती बाहिर म राहय। चार भाई बहिनी के परवार म रतन ह दूसरा नंबर म रहय। बडे भैया के घर ले बाहिर रेहे के सेती अब पूरा परवार ल संभाले के जिम्मेदारी उदुप ले रतन के मुडी ऊपर खपलागे। फेर ओहा हिम्मत नी हारिस। दस एकड के खेती के भार ल अपन खांध म बोही डरिस। दाई-ददा के जतन अउ दूझन छोटे भाई बहिनी के पढई-लिखई के जिम्मेदारी ल ओहा अपन धरम बना डरिस। बिहाने ले नूनचटनी अउ बासी ल धरके जाये तो संझौती बेरा म लहुटे।



सब बुता ह तो बने होवत रिहिसे फेर रांधे खाय के बुता ह बनत नी राहय। दाई ल बाढत उम्मर के सेती रांधे गढे म परसानी होवय अउ ओकर छोटे बहिनी राधा ह रांधे गढे के बुता करय त ओकर पढई-लिखई के नकसानी होय।
फेर बिधाता के लीला घलो अपरंपार हे। काकरो बनौकी बनाना रथे त कतको ओखी रच देथे ओहा। जेन समे म रतन के परवार ह हलाकानी म परे रहय उही समे म रतन के घर तीर म एकझन गुरजी ह किराया म रेहे बर आगे। गुरजी के एकझन नोनी अउ एकझन बाबू राहय। नोनी ह रतन के छोटे बहिनी राधा के जहुंरिया नीते एको बछर के बडे रिहिस होही अउ बाबू ह रतन के छोटे भाई संग एके किलास म पढय। नोनी के नाव सरला रहय। दसमी पढे के बाद ओहा पढाई ल छोड दे रिहिसे। जइसे नाव वइसने बेवहार घलो राहय नोनी के। घर म अपन दाई संग घर के बुता काम मे मदद करय अउ घरे म रहय। नवा-नवा जघा म आय रहय त ककरो से गोठ-बात घलो नी होवय।
धीरलगहा दू चार दिन के बाद सरला अउ रतन के छोटे बहिनी राधा के बीच बने चिन-पहिचान बाढगे। अब सरला ह रतन के घर म घलो आय-जाय लागिस। बेरा-बेरा म सरला ह रतन के घर म कुछु मांगे बर नीते अमराय बर आवय त ओकर दाई के बुता काम म घलो मदद करदय।
थोरिक समे के पाछू धीरे धीरे ओला रतन के बारे म जाने बर मिलिस। फेर कभू ओकर संग भेंट नी होय रिहिसे। काबर कि रतन ह जादा घर म रहिबे नी करय। खेत-खार म ओकर दिन खप जाय। संझौती बेरा म लहुटय।




एक दिन के बात आय। रतन ह संझौती घर आइस त अपन दाई ल चाय बनाय बर आरो देइस। त ओकर छोटे बहिनी राधा ह बताइस कि दाई ह सुकारो मामी घर कुछु बुता म गेहे। ओहा खुदे चाय बना के लानत हंव कहिके चलदिस। ओतकी बेरा सरला घलो आगे त दूनोंझन रंधनी कुरिया म चलदिन। एती रतन ह चाय ल अगोरत रहय। सुधा ह चाय लानके रतन ल दिस। चाय ल पीये के बाद रतन किथे-‘आज तो चाय पीके हिरदे जुडागे नोनी!बढिय़ा चाय बनाय हस!’। त ओकर छोटे बहिनी ह हांसत बताथे कि चाय ल तो सरला ह बनाय रिहिसे। रतन ह ओकर ले कलेचुप उठ के चल देथे।
एती सरला ह नोनी ल पूछथे कि इही ह तोर भैया हरे का ? त राधा ह हव काहत मुडी ल हला देथे। ताहने ओहा अपन पढई म बिलम जथे अउ सरला ह अपन घर चलदेथे। बेरा बुलकत जथे। रतन के जांगरटोर मिहनत ल देख के सरला ल बड दुख लागय। फेर ओहा काकरो से कुछ नी बोलय। फेर कोसीस जरूर करे कि कुछु न कुछु ओखी से ओहा रतन के मदद कर सकय।
अइसने करत छे महिना बीत जथे। एकदिन अचानक रतन के बाबूजी खतम हो जथे। रतन ह अपन बाबूजी ल सुरता करत कलेचुप बैठे रहय। ओकर भाई -भउजी मन दसगात्र के कारज ल निपटा के अपन डिप्टी म फेर लहुटगे रहय। उही समे म सरला ह आथे। तीर-तार म कनो नी दिखय त रतन ल किथे-तें काबर संसो करत हस राधा के भैया!ऊपरवाला के मरजी के आगू ककरो नी चलय। फेर खुद ल घलो तो संभाले बर लागही। दाई,राधा अउ अपन छोटे भाई ल घलो संभाले बर लागही का!अइसन उदास मत रहव। अतका कहिके अपन आंसू ल पोंछत चलदिस सरला ह।




एती पहिली घांव आने मनखे के मुंहु ले अपन बर अतेक मया अउ फिकर के गोठ सुनके रतन ह सरला के मया म बंधागे। ओहा फेर अपन काम बुता म रमगे। समे के धार नदिया बरोबर बोहावत गीस। ए बीच म मनेमन रतन अउ सरला ह एकदूसर ल अपन मान डरे रहय। बिना कोनो ढोंगाही के कलेचुप दुनों ह अपन मया के बंधना ल निभावत रहय। सालभर के बीते ले राधा बर बढिय़ा सगा आइस ताहने रतन ह ओकर बिहाव करदिस। अउ छोटे भाई ल पढाय खातिर साहर के हास्टल म भरती कराके बडेजनिक स्कूल म नाव लिखादिस।
एती जब सरला के संगी राधा के बिहाव होगे ताहने सरला के दाई ददा मन घलो सरला के बिहाव खातिर दौडभाग म लगगे। बिहाव खातिर लडकी देखे बर सगा उतरे के चालू होगे। एला देखके सरला ह रतन ले अलग रेहे के संसो म बियाकुल होगे। एक दिन मौका पाके ओहा रतन ल किथे-राधा के भैया!अब मे तोर बिना नइ जी संकव। तैं मोला अपन बनाले नीते मोला जाहर-महुरा लानके देदे। अतका काहत ओहा फफक के रो डरिस। रतन ह ओकर आंसू ल पोंछत किथे-तें काबर रोवत हस बही!मे आजे दाई अउ भैया से एकर संबंध म बात करहूं। रातकुन रतन ह अपन भैया कना फोन म अपन हिरदे के बात ल बताथे त ओहा गुस्सा हो जथे। एती दाई ल बताथे त वहू ह नराज हो जथे। रतन जान डरिस कि ओला परवार के सहारा नइ मिलय।



आखिर म रतन ह अपन घर परवार अउ दुनियादारी के परवाह नी करके सरला संग कोर्ट मेरिज कर लेथे। उंकर बिहाव के गोठ ह जंगल म ढिलाय दांवा बरोबर गांव भर म बगर जथे। रतन-सरला के बिहाव के गोठ ल सुनके सरला के दाई-ददा मन बड नराज होथे। जब बिहाव करके असीस लेयबर दुनों परानी सरला के घर म आइन त ओमन सरला अउ रतन ल सरापथे-बखानथे। सरला के दाई अपन बेटी ल सरापे बर धर लेथे-हमर आत्मा ल दुखाय हस रे दुखाही!हमर नाक ल कटवा दे हस। तोला भरे तरिया म पानी झन मिलय। तोला रोग-राई खा दय। जा! तोला अजार आ जाय। कभु तुमन ल सुख झन मिलय।
उंहा ले आके रतन अपन घर म जाथे त रतन के परवार वाले मन घलो ओला घर ले निकाल देथे। उंकर बिहाव के सेती गांव -समाज म बइठका सकलागे। आने-आने जात-समाज के बिहाव के बात ह गांव अउ समाज के सम्मान के बिसय बनगे। बइठका मे सियान मन दूनोंझन ल फेर अलग अलग रहव किके आदेस दे दिन। दुनों झन नी मानिन त ओमन ल गांव ले निकाल दिन।
जब दुनों के घर-परवार ले ओमन ल कोनो नइ अपनाइन त अपने गांव के परोसी गांव म एक ठ नानुक कुरिया बनाके दूनोंझन बनीभूति करके अपन जिनगी के गाडी चलाय लागिन। डेढ साल म दूनोंझन एक सुंदर अक नोनी के दाई-ददा बनगे। दुनों झन के कोरा म फूल कस नोनी भारती ह खेलय लागिस। उही समे पंचायत म गुरजी के भरती चालू होगे। सरला के कहई म रतन घलो फारम भरदिस। ओकर नौकरी लगगे। अब दुनों के जिनगी ह बने अराम से कटत रिहिसे। दूनोंझन घरदुवार ल बढिया बनाडरिन। घर म सुख सुविधा के जम्मो जिनिस आगे। समे के साथ समाज अउ परवार के नजरिया घलो बदलिस। रतन के परवार वालामन दूनोंझन ल समाज मे दांडबोडी देके फेर समाज म मिलालिन।




अब रतन अउ सरला ल लागिस की उंकर जिनगानी म फेर सुख के दिन आगे। फेर सुख के दिन ह सिरिफ लटपट चार-पांच बच्छर पुरोती होय रिहिसे तभे सरला ल बिमारी धरलिस। आनी-बानी के जांच करे के बाद पता चलिस सरला ल केंसर के बिमारी ह धरले हे। रतन के जिनगी म कुलुप अंधियारी हमागे। सरला ल बचाय बर ए अस्पताल ले ओ अस्पताल। ए बैद ले वो बैद ल देखाय के दौड सुरू होगे। डाक्टर मन ह बतादिन कि एकर जिनगी ह सिरिफ छे महिना बांचे हे। अतका गोठ ल सुनके रतन के आंखी के आगू म अंधियारी छागे। ओहा चक्कर खाके गिरगे। फेर बिधाता के लिखे लेख ल स्वीकार करके ओहा ओला अपन घर म लानके ओकर जम्मो इच्छा ल पूरा करे के उदिम म लगगे। सरला के हर इच्छा ल पूरा करना अब ओहर अपन जिनगी के धरम बना डरिस। नौकरी ले छे महिना बर छुट्टी लेके सरला के जतन म लगे रहय। कभू कभू ओला डाक्टर के बताय बात म बिसवास नी होवय जब सरला ह मुस्कावय। नानुक नोनी ल पोटार के खेलावय। एती सरला ल अपन जिंनगी के दिन कम होय के अंताजा होगे रहय। सरला के आंखी ले रातदिन आंसू झरय नानुक भारती अउ ओकर पापा ल देखके। ओला अपन मौत के दुख कम अउ अपन परवार से दूरिहाय के दुख जादा रहय। ओला रोज बुखार नीते कोनो न कोनो परसानी होते रहय। फेर एकदिन ओकर बुखार ऐसे बढिस कि कम होय के नांव नी लिस। तुरते ओला रयपुर के बडका अस्पताल म भरती कराइन। डाक्टर मन ओला इमरजेंसी वार्ड म भरती कर दिन। थोरिक समे के बाद डाक्टर मन चुपचाप लहुटिन त सरला के लास ह बाहिर आइस। रतन के ऊपर जइसे गाज गिरगे वोहा भडाक ले गिरगे। सरला के दाई ददा मन ल खबर मिलगे रहय। त वहूमन आगे रहय। सरला के दाई कलप-कलप के रोवत काहत रहय-तोला मोर सरापा लगगे बेटी!मोर जीभ ह कटा जतिस। काबर मे ह अपन बेटी के सुख म आगी लगा डरेंव।
सनिमा बरोबर चलत बीते समे के एक-एक सुरता ह ओला बियाकुल करत रहय। ओकर आंखी ले आंसू निथरे लगिस। तभे भारती आगे।
“पापा! पानी अउ चाय पी लव!” -भारती के आरो ल पाके रतन ह झकनकाके उठिस। अउ अपन आंखी के आंसू ल पोंछिस।
“का बात हे पापा! मम्मी के सुरता आगे का ? “भारती के गोठ ल सुनके रतन ओला अपन छाती म पोटार लिस।

रीझे यादव
टेंगनाबासा (छुरा) 493996