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कहानी

कहिनी : चलनी में दूध दुहे, अउ करम ला दोस दे

छत्तीसगढ़ के जुन्ना हाना ह बड़ प्रभावकारी खुद जीवन के उपयोगी होथे। चलनी में दूध ल दुहबे तब का फायदा होही? पूरा दूध जमीन ऊपर गिर जाही। ये नुकसान ल देख के आदमी अपन भाग्य ल दोस देथे। का करबो भाई! मोर किस्मत खराब हे। पूरा दूध भुइंया में गंवागे। अइसने एक गांव में दुकालू अउ दुकलहा मितान रहिन। दुकलहा हमेसा रोते रहाय अउ अपन दु:ख ल दुकालू ल सुनावत राहाय। एक दिन दुकलहा के एक बइला मरगे तब एकड़ा बइला बर फेर जोड़ी खरीदे बर बजार गइन। बजार में सबो बइला जोड़ी में रहिन हे एकड़ा, बेचैया मन नई बेचन कहिन। खोजत-खोजत एक एकड़ा बइला मिलगे। बइला बने स्वस्थ रहिस हे। दुकलहा ला पसंद आगे। दुकालू ल बिसाये बर सलाह लइस। दुकालू सलाह दइस भाई बइला ल थोरिक चला के देख लेथन। दोनों बइला के चाल ढाल ल देखे बर ओला चलाय लगिन। थोड़िक दूर-लाय के बाद बइला खड़ा होगे। ओला आगे चले बर कोचकिन तभो नई रेंगिस। ज्यादा पदोइन तब बैला बइठगे। दुकालू अउ दुकलहा थकगें। आधा घंटा बाद बड़ मुस्किल से बैला उठिस। बैला ल ओकर मालिक तीर वापिस लाइन।
दुकालू कहिस भाई दुकलहा ये बइला कोड़िहा हे एला नई बिसावन बइला के दाम सस्ता रहिस। दुकलहा कहिस एकड़ा बइला एके बने हे, ले लेथन अउ घर लेग के दूसर बइला संग एला सुधार लेबो। अइसे दुकलहा कोड़िहा बइला ल बिसा के ले आइस। दुकालू के बात ल नई मानिस। अब खेती-किसानी, गाड़ी खींचे के सब काम में बड़ा परेसानी होय लगिस। पहिली के बैला कोड़िहा संग परेसान हो जाए। दुकलहा हमेसा परेसान राहाय अउ अपन करम ला दोस देवै। अइसने दिन बीतत गिस एक दिन पहिली के बइला बीमार पड़गे। दुकलहा ओला बचाय नई सकिस अउ मरगे। अब तो दुकलहा के करम फुटगे। दूबर ला दु असाढ़ कोड़िहा बइला बने ठस-ठस ले कोठा में रहाय अउ बने बइला मरगे।
कइसनो करके उधार बाढ़ी लेके दुकलहा फेर दुकालू संग दूसर बइला बिसाये बर गइन। फेर दुकलहा ह एकड़ा एक बइला ल पसंद करिस। दुकालू बइला ल देखिस ओकर उमर बर ओला संका होय लागिस। बइला के दांत ल ओकर मुंह में हाथ डार के देखिस एको ठीक दांत नई रहिस। दुकलहा ल कहिस ये बइला बुढ़वा हे एला झन ले॥ बइला ल बने खवा-पिया के ओकर बेचैया ह लाय रहिस। दुकलहा फेर नई मानिस ओकर मति मारेगे। बुढ़वा बइला ल जिद्दी कर के ले लाइस। अब ओकर एक बेड़िहा अऊ दूसर बुढ़वा बइला के जोड़ी होगे। दूसर किसान मन ले दुकलहा के किसानी पिछड़ जाय अउ बड़ परेसान राहाय। अइसे दुकलहा ह गलती करके दु:खी राहाय। अपन भाग ल कोसत राहाय। कइसनों करके काम घाम चलत रहिस। तब एक दिन बुढ़वा बइला बीमार होगे। चलना-फिरना बंद होगे। इलाज पानी कराइस, दवा-दारू के कुछू असर नई होईस। खाय-पिए ला छोड़ दइस अऊ एक दिन मरगे। अब तो दुकलहा के करम फूटगे।
कोठा में कोड़िहा बइला बने खडे राहाय दुकलहा रोवत राहाय। भाई दुकलहा ह जइसे काम करिस ओकर फल ला पाइस। फोकट इंहा दुकलहा ह अपन करम ला दोस देय। इही ला कहिथें, चलनी में दूध दूहै अउ करम ला दोस दे।
बलराम शर्मा
30 स्टेट बैंक कालोनी
सुंदर नगर, रायपुर

आरंभ में पढ़व :-
बिना शीर्षक : राजकुमार सोनी के प्रथम कृति का प्रकाशन 

One reply on “कहिनी : चलनी में दूध दुहे, अउ करम ला दोस दे”

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भाषा पर सुन्दर पकड़ है आपकी। बहुत रोचक ढंग से लिखा हुआ लेख। आनंद आ गया पढ़कर।
राजकुमार सोनी जी को उनकी पुस्तक के लिए बधाई।
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