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कहानी

कहिनी – जिनगी के खातिर

बाबा तेहा लीम बीजा ल काबर सकेले हस गा। काय करबे येला? येला न रे जगो त सौ म पच्चीस-तीस ठन ह पेड़ बनही रे! चल जल्दी बबा, तोला खाय बर देखथे, चल बेटा आवथवं। दाई बबा ह लीम बीजा सकेलथे। आघू कीहिस हे, डोकरा लाज नइए का रे लीम बीजा ल काय अपन मुड़ म थोपही। झन बटकर रांध, लोग मन काय कही ओतेक बड़ आदमी ह लीम बीजा बीनथे। कही, आवन दे तोर बाप ल बतावत हंव। ये डोकरा हा हमर मन के नाक ल कटवाही अउ कांही नहीं।
समारू बेटा जल्दी आतो रे बीजा ल धर दे। मेहर जल्दी तरिया ले नहा के आहूं। दे बबा धर दंव। ते तरिया जा। सोनबती, सोनबती, काए शुकारो आ बइठ, सपनाय हच का आज। नहीं दई एक ठन जिनिस खातिर आय हव। काये बता न? तोर ससुर ह लीम बीजा सकेलथे का तेल बेंचहू त महू ल दे दूहू, न त दवाई, बूटी के काम आथे कहिके आय हावंव। हमन काय तेल बेचबो ओ डोकरा ल खाय बर नइ देवतन न त लीम बीजा सकेलथे खाही उही ल। ले जाथव बेचहूं न त दे दूहू। सुनथच समारू के बाबू तुंहर ददा के चाल ल, जाना मना हमर घर कांही नइए केहे बरोबर लीम बीजा बीनथे, घानी ले सौ पचास के तेल ल नई ले सकबो का हमन ह।
सोनबती में सोनबती ले मोर पूजा के करत ले बेटी भात ल निकाल दे। तैंह भात खाबे बाबू लीम बीजा ल खा, हमन खाय बर नइ देवत हन न, तेकरे सेती लीम बीजा राखथस, जावा उही ल बेच के खाहू, जे नहीं ते ह हासथे। कइसे गोठियाथस मेहा ओला काम खातिर सकेलथव। बबा ये दे आमा गोही, कती करंव गा, लीम बीजा करा कर दे। कस रे समारू तेंहा स्कूल कइसे नइ गेय हस रे। परन दिन ले तो स्कूल हा खुले हावय अउ तेंहा स्कूल नइ जावथस ‘अब्बड़ घाम जनाथे बबा तेकरे सेती जाय के मन नइ लागथे गा’ समारू ह कहिथे।
ये लेवा पानी, चला खाहू, ये लीम बीजा झन बीना बबा सब मन हासथे, समझव काबर नहीं। समारू झिल्ली खोज के नानबे बेटा। काबर बबा? तेहा नान तो ताहान मेहर बतावथंव। गोपाल काय करथस? आज बिहारी ह नइ आये कइसे पेपर पढ़े बर? अरे का बतावंव। ओहा गे रिहीस रइपुर बिहाव म। उंहा के गर्मी म लू लग गे, रयपुर के गरमी म लू बरसथे, बिहिनिया गेव। में तो संझा आगेंव। गोपाल पेपर म मुख्यमंत्री ह स्कूल बंद के घोषणा कर दे हे, ये दे पढ़ तो इही गर्मी के खातिर ताय नान-नान लईका मन ल लू धरथे। जम्मो स्कूल ह एक जुलाई ले खुलही, बने करीस। हमरो नाती ह घाम के देखे स्कूल नइ जावथे। रइपुर म घर ऊपर घर, सबो डाहर भुइयां ह ढलागे, थोरको, माटी नइए। पेड़ न पौधा सरकार ह घलो पइसा कमइ ल देखथे, सरकारी जमीन मा काम्प्लेक्स बनावथे बगीचा नइये। काबर गर्मी नइ रही। बडे नोनी के घर करा चार साल पहिली बीच म गार्डन बर जगा रिहिस। ऐसो देखेहंव पांच मंजिला बिल्डिंग बनगे त अइसन म गर्मी ह बाढ़ी नहीं त काय होही। रूख राई ले जिनगी हावय, एकर बिना कांटी नइए, राम-राम कका, बने लागिस बिहारी हा गर्मी के मारे ताय।
मोर एक ठन गोठ ल मानहू गा सहर ले लकड़ी ठेकादार मन पांच सौ पेड़ काट के ले जाथे- अउ हमन पइसा के लालच म बेचथें। हमन सड़क के तीर-तीर स्कूल भाठा म अउ तरिया पार म नहर पार अउ खेत के मेड़ म पेड़ लगातेन। आघू बबा ददा मन सब जगा-जगा बर पीपर, लीम, लगावय, पेड़ राहय त बरसा ह नइ रोवावय। बखत म आवय अउ अब सालों साल देखले बरसा हा हमन ल रोवावथे। किसान मन ल धान ले सब मिलही। पानी नई गिरे ले कहां के धान, ये साल देख ले अषाढ़ अतका दिन होगे। बूंद भर पानी नई गिरत हे। रूखे राइ जिनगी के अधार रे भइया अपन पुरखा के नियम ल जिनगी खातिर चलाय ल पड़ही पुरखा मन अब्बड़ समझ के सब नियम ल बनाय हे। नदिया, नरवा के तीर म बगइचा, बाढ़ ले बचाय बर लगाय गा, अब तो ईटा भट्ठा लगाथे। आमा देखे ले मिलथे न सुन्दर छईंहा सब्बो ल पइसा खातिर नास करथे। कोनो दिन म पइसा घर के पानी बर लाईन म खड़ा होय ल लगही, पानी घलो सुसाइटी म मिलही सहर म नान-नान झिल्ली म पानी बेचाथे गा, पिये हस बिहारी दस रुपिया म एक बोतल ले रेहेंव।
संझा इही मेर सबला बलाबे हांक परवाबो, गुड़ी म बइठका हे। हो सब जाहू। (गुड़ी म गांव भर के आदमी मन सकलइच) कइसे बलाय हव गा सियान मन, ‘जिनगी बचाय खातिर’। काकर सबके रे देखथस लू चलत हावय। अषाढ़ महीना म जेठ के घाम, चिरइ चुरगुन पानी बिना मरथे। हमन सियनहा मन सोचे हन सड़क भाठा तरिया अउ अपन अपन खेत म पेड़ लगाबो फलवाला, लकड़ी वाला, हमन ला अपन जिनगी बचाय बर करे ल परही। सबो कहिस, सब मिलके पेड़ ल लगाबो, अउ अपन जिनगी ला बचाबो, काली ले बीजा सकेलबो बबा। समारू हमर बबा ह न एक काठा लीम बीजा एकरे सेती सकेले हे, जाने अउ मेहा आमा गोही।
गीता चन्द्राकर
कौड़िया पलारी

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