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कहानी

कहिनी : दोखही

हिम्मत करत रमेसर कहिस, आप मन के मन आतीस तब चंदा के एक पइत अऊ घर बसा देतेन। वाह बेटा वाह तयं मोर अंतस के बात ल कहि डारे। जेला मय संकोचवस कहूं ला नई कहे सकत रहेंव तयं कहि डारे बेटा बुधराम गुरूजी कहिस। मयं तोर बात विचार ले सहमत हंव फेर मोर एकठन शर्त हे। बर- बिहाव म जतका खरचा होही तेला मंय खुद करिहंव। चंदा ल बहुरिया बना के लाय रहेंव बेटी बना के कनियादान मंय खुद करिहंव।’
रमेसर के दाई बिराजो ला, बेटी अवतारे के बड़ साध रहिस। तभे तो कथा भागवत, तीरिथ, बरथ, मंदिर देवाला, जिहां जातिस। बस मन म एक्केच रटन रहय, भगवान मोला एक ठन बेटी दे देते। भगवान मेर भले अबेर होथे, फेर अंधेर नई होवय। आधे उम्मर मं सही आखिर भगवान बिराजो ला चिन्हिस तो। फेर ये संजोग बिचित्र रहिस। सास-पतो दूनो के गरू पांव बताय मं बिराजो ला लजलजावन घलो लागय। फेर करबे काय ये तो ऊपर वाला के माया आय।
सास-पतो एक-एक महीना के आगू-पीछू तो हरूवाईन। दसोदा हा आठे कन्हइया के दिन बेटी ला जनम देईस। तब बिराजो हा कुंवार महिना के सरद पुन्नी के दिन हीरा कस बेटी ला अवतारिस। जेखर नाव धरेगिस-चंदा। फेर विधि के विधान हा घलो बड़ा विचित्र होथे। बिराजो गोरी नारी चक-चक ले चंदे कस बेटी ला जनम तो देईस। फेर बेटी ला बउरे खेलाय खवाय -पियाय के सुख ला नई पाइस। छठी छेवारी के काम-बुता हा तो बड़ उछाह मंगल ले होइस। फेर कोन जानत रहिस, ये उछा मंगल हा, मातम मं बदल जाहि।
बात छट्ठी के बिहाने दिन के तो आय। घर म सगा-पहुना खमखमाय भरे रहिन। देखतेच देखत मं बिराजो जाड़ मं कांपे लागिस। कथरी-गोदरी, कमरा, सुपेती ला ओढ़हाइन, तभ्भोच ले कप कंपी हा माढ़बेच नई करिस। अउहा झउहा सहर लेगे के तियारी करत रहय। तभेच्च बिराजो हा चंदा ला पोटारत आंखी ला उघार के नजर भर देखिस तहां जउन आंखी ला मुंदिस ते उघारबेच नई करिस। चटपट फुर्र ले परान ह चिरई कस उड़ियागे। घर म गऊ गोहार परे लागिस। कोनो कहंय टुरी हा दोखही आय येदे होतेच दाई ला खा डारिस। तब कोनो कहय टोने पांगे मं गय तब कोनो कहंय संताप होगे। अब का होय रहिस तेला भगवाने हा जानय। जवइया तो चल दिस अब कहइया बोलइया मन ला जेन कहना हे कहत रहव। बिराजो के बहुरिया दसोदा हा भूख म करला-करला के रावत चंदा ला कोरा म पाके पुचकारे लागिस। चंदा दसोदा भउजी के कोरा ला महतारी के कोरा समझ के चुप होगे। ओहि दिन ले दसोदा चंदा ला बेटी बरोबर मानत चले आत रहय।
दसोदा अपन छाती के दूध पिया के चंदा ला नानकन ले बड़े करे रहय। दसोदा गरब ले कहय मोर एक बेटी नहीं दू बेटी हावय रोहनी अऊ चंदा। दसोदा अपन बेटी ले घलो जादा मया दुलार पुरोवय चंदा ला। चंदा घलो दसोदा ला महतारी, अऊ रमेसर ला बाप बरोबर मानय। काबर के बाप महतारी के मया दुलार कइसे होथे, चंदा जानबेच नई करय। रमेसर अपन बेटी ला, तो भले जादा नई पढ़ाइस, फेर चंदा ला कालेज तक पढ़ाइस।
बेटी जात घुरूवा कस तो आय, जेला बाढ़े पउरे म कोनो टेम नई लागय। चंदा पुन्नी कस चंदा डग-डग ले बाढ़ गे। तब रमेसर ला संसो धरे लागिस। कबेरा आगे चंदा के घर बसाय के रमेसर के पांव के पनिही खियागे। एक बछर म अपन मन मुताबिक बर ला ठउकाइस। रमेसर हा अपन बेटी ला भले किसनहा के संग धराईस फेर चंदा ला नौकरिहेच के संग भंवर किदारीस। बड़ उछा मंगल के एक्के मढ़वा म दूनों के बिहाव होइस। अपन बेटी ले जादा जिनिस रमेसर चंदा ला दाईज मं टिकीस। हंसी-खुसी ले चंदा ला बिदा करिस। जात बेरा चंदा अपन मयारू भउजी ला पोटार के बोम फारके रोय लागिस। कहिस भउजी तुमन तो अपन करतब के, पालन करत मोर रिन ले उरिन होगेव। फेर मंय जियत भर तो दूध के करजा ले उरिन ले उरिन नई हो सकव भउजी। नई हो सकव कहत चंदा सुसके लागिस। तहां फेर चंदा अपन भाई णभउजी संगी जहुरिया गांव बस्ती घाट घठौंदा, तरिया, नदिया, खेत-खार सबला छोड़ के चल दिस अपन ससुरार अपन नवा जिनगी ला सुरू करे बर।
ससुरार म चंदा हा बड़ खुस रहिस काबर के देवता कस गोसइया पाय रहिस। गऊ कस सिधुवा ससुर अउ महतारी कस मया देवइया सास बहिनी कस दू झिन ननद अउ दुलरुवा कस एक झिन छोटे लहुरा देव हांसी-मजाक ठट्ठा मसकरी म कसइे दिन हा पहा जाय, गमेच नई मिलय। फेर चंदा के हांसी खुसी ला, अइसे गरहन घरिन के चंदा सपना मं घलो नई सोच रहिस होही के, अइसनो दिन मोला बिधाता हा देखे बर देही।
कागद होति बांचीतेव, करम बांचे न जाय।
बिधि के लिखा हा नई टरय जेला टारे न जाय॥
बस ये ही होइस चंदा मेर, करम हा, फेर एक घांव ये कहवाय बर ठेसना ठेसवाय बर, चंदा ला बचा दिस, के होतेच महतारी ला खा डारिस, बाप ला अब सम के चार महिना घलो नई पुरे पाइस गोसइया ला खा डारिस ‘दोखही’ हा। हांसी-खुसी दूनों परानी फटफटी म सहर ले गांव तो लहुटत रहिन। थोरकेच तो बचाए रहिन गांव ला। दोखहा टरक जेन कोरबा ले कोइला भरके आवत रहिस। पीछू ल अइसे ठोकिस के चंदा तो गेंद कस फेंकागे। फेर ओखर मांघ के सेंदूर पोंछागे। ओहि मेर परान ला तियाग देइस बिजय हा। चंदा बर दु:ख के पहार टूटगे। बही बरन होगे। अपनो हा गाड़ी मोटर म पूजाहूं कहिके दउड़े लागिस। फेर रस्दा रेंगइया मन ओला समझालीन। नईते ओहू हा ओदिन परान ल तियाग देतीस तइसे लागय।
वाह रे बिधि के विधान, खेले खाय के दिन म देखतेच देखत चंदा एहवाती ले राड़ी होगे। जेन चंदा रोवइया ला, घलो अपन गोठ बात ठट्ठा मसकरी मं खलखला के हंसा दय, तेखर मुंह ले हांसी कहां चल दिस भगवाने जानय। एक-एक दिन हा एक बच्छर कस लागय। कथे न-
दिया बिन बाती, जइसे पानी बिन मीना।
जोड़ी बिना बिरथा हे, दुनिया मं जीना॥
जब बरसी बर रमेसर आइस तब चंदा के दु:ख-पीरा ला देख भाप के ये सोच के कुछेक दिन बर मइके लेगिस के ऊंहा ओखर दु:ख हा भुलाही। फेर चंदा उहोंच अपन ऊपर टूटे दु:ख के पहार ला नई भुलाय सकिस। बस चंदा कठुवाये कलेचुप बइठे रहय। रोवाई म ओखर आंखी ले आंसू घलो हा सिरागे हे। तइसे लागय। दुखहा चंदा के तन ला भीतरे भीतर घुन कस चरत रहय। सोहाग उजड़े के दु:ख के संग-संग सास-ननद अऊ समाज के दोखही होय ठेसना चंदा के तन अउ मन ला कांटा कस जनावय। एही ला सोच-सोच के चंदा आमा खोइला कस सुक्खागे रहय। बस मन मं एकेच रटन रहय भगवान मंहूला ए दुनिया ले उठा ले।
कुछेक दिन मइके मा राखे के बाद रमेसर चंदा ला अमराये ओखर ससुरार आइस। तब रमेसर चंदा के दुख पीरा अऊ दसा ल देख के, ओखर ससुर बुधराम गुरूजी ला कहिस बाबूजी रिसनई करिहव तब मयं एक ठन अपन अंतस के बात ला कहत हौंव आप गियानिक मनखे आव। दू कोरी बच्छर ले मास्टरी करत सब ला गियान बांटे हंव। हिम्मत करत रमेसर कहिस, आप मन के मन आतीस तब चंदा के एक पइत अऊ घर बसा देतेन। वाह बेटा वाह तयं मोर अंतस के बात ल कहि डारे। जेला भय संकोच वस कहूं ला नई कहे सकत रहेंव तयं कहि डारे बेटा बुधराम गुरूजी कहिस। मयं तोर बात विचार ले सहमत हंव फेर मोर एकठन सरत हे। बर बिहाव म जतका खरचा होही तेला मंय खुद करिहंव। चंदा ल बहुरिया बना के लाय रहेंव बेटी बना के कनियादान मंय खुद करिहंव। बस बर खोझे अऊ चंदा ला समझा बुझा के तियार करे जुम्मेदारी तुंहर हावय। रमेसर कहिस बाबूजी मोर छोटे सारा सिक्छा करमी मं अभी लगे हे। मंय अपन ससुरार म ए बिसय म गोठ बात कर डारे हंव, ओमन राजी हे। रहिस बात चंदा के तब ओहा बड़ मया दुलार म बाढ़े पउरे हे। जिद्धीन तो हावय फेर कइसनों कर के ओला राजी तो करेच बर परही। काबर के एही म ओखर हांसी खुसी हे।
रमेसर अऊ अपन गोसइया बुधराम के गोठ बात ला सुन के चंदा के सासभगमती के मति हा छरिया गे। गोड़ के रिस ह तरूवा म चढ़गे। आगू म हाथ मटकावत कहिस अई ये काय चरित्तर करे बर कथस रमेस बाबू पिला मन के दुसरइया बिहाव ल सूने हन। राड़ी के बिहाव ए हा हमर समाज के रीति रिवाज के कनिहा टोराई तो आय। समाज हम ला काय कइही एला सोचे हव। राड़ी के होय ले ससुरार म सबके बेवहार चंदा बर भले बदले रहिस। सब भले ओला ठेसीन दोखही के ठेसना फेर बुधराम गुरूजी के बेवहार हा, ओइसनेच रहिस चंदा बर, जइसे पहिली रहिस। अपन सुवारी के गोठ ला सुन के कहिस तंय डउकी परानी काबर एमेर लपर-लपर मारत हस। हमला समाज के नहीं, चंदा के जिनगी ला संवार बर सोचना हे। अउ एखर बर हम ओही करबो जेन हमला करना हे।
बुधराम गुरूजी अऊ रमेसर के सूझबूझ हा एक नारी के जिनगी ला संवार दिस। ओला फेर ले जिनगी जिये बर बसाय के मउका दिस। एक सुग्घर काम के बड़ाई समाज म होय लागिस। फेर चंदा हा अपन माथ म लगे दोखही के कलंक अऊ जिनगी म टूटे दुख के पहार ला, नई भुलाय सकिस। भेल ओला जिनगी जिये बर थेघा मिलगे। –
राजेश चौहान