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कहानी

कहिनी : पिड़हा

न वा जमाना आय के बाद जुन्ना कतको चीज नंदावत जात हे। एमा सिल लोड़िहा, पिड़हा, जांता, झउंहा अउ कतको जिनिस सामिल हवय। जांता तो आज कल बिलकुले नंदा गे हे। गांव में घलो खोजबे तो मिलना मुसकिल हे। वइसने मिक्सी के आय ले पढ़े-लिखे माइ लोगन मन सिल लोड़िहा ल हिरक के नइ निहारय। पिलास्टिक के धमेला आय ले झउंहा नंदा गे अउ डाइनिंग टेबल अउ कुरसी आय के बाद पिड़हा घलो नंदाना सुरू हो गे हे। कभू सगा सोदर आय तो ऊंच आसन बर पिड़हा देना मुहावरा रिहिस। अब लागथे अवइया दस बारा बछर में पिड़हा घलो नंदा जाही। अब परिवरतन ल कोन रोक सके हे। नंदा जाही त नंदा जाही फेर अभी मोला लइका मन ल पिड़हा के कहिनी सुनाय के मन होथे हे तो सुनव-
सांझ कुन के बेरा राहय। एक ठन घर के बात हे। घर के जम्मो पढ़इया लइका मन चिरी-बुटी पढ़े पर बइठे राहय। कोनों गणित के सवाल हल करत राहय, कोनो नकल लिखत राहय तो कोनो पहाड़ा। ओतके बेर उन ला एक भाखा सुनाथे।
‘सुनो तो पढ़इया लइका हो, सुनौ तो पढ़इया हो।’ जम्मो लइका मन एक अनचिन्हार भाखा ल सुनके एक दूसर के मुंह ला देखे लागथे।
‘बुधारू तैं हर कुछ बोले हस का?’ समारू पूछथे। ‘मैं तो सवाल बनाए म भिड़े हौं यार, फेर महूं एक ठन भाखा सुने हौं।’ बुधारू कथे।
‘अरे मैं बोले हौं गा, सुनौ पढ़इया हो कहिके’ अबके बेर लइका मन धियान लगाइन तो उन ला मालूम परथे के आवाज हर एक ठन पिड़हा ले निकलत राहय। छोटे लइका मन डेराए लगथें। फेर समारू अउ बुधारू थोकन हुसियार राहय। ओमन लइका मन ला समझाथें।
‘अरे यार, ये पिड़हा हर घलो हमर संगवारी बनना चाहत हे। थोकन ओखरो गोठ ल सुन लन। का कथे तौ? सुना भाई पिड़हा का कहना हे?’ बुधारू कथे।
पिड़हा के का कहना हे, बुधारू के हिम्मत पा के चहके लागथे। ‘अरे भई तुमन स्कूल जाथौ तो तुम्हर मास्टर मन तुमन ला मोर बारे म घलो बतावत होही?’ लइका मन सुरता करे लागथे फेर ओमन ल सुरता नइ आवय के कभू पिड़हा के बारे में घलो बताए हे के नहीं। ओमन कथें- ‘हमन ल तो सुरता नइ आवथे पिड़हा भाई। तहीं अपन कहानी सुना देते तौ मजा आ जातिस।’
अंधरा का चाहे दू ठन आंखी, पिड़हा हर तो अतेक ल खोजत राहय। सुरू हो जाथे।
‘मोर नाम पिड़हा ल तो तुमन जानते हौ। शहरिया मन मोला पाटा घलो कथे। मोर उपयोग ल तो तुमन जानते होहू।’
‘हौ, हमन तोर ऊपर बइठथन’ जम्मो लइका मन एक सुर म बोलथें।
‘बस तुमन मोर एके ठन प्रयोग ल जानथौ। फेर मेंहा आज तुमन ल अपन अउ उपयोग बताना चाहथौं। कान लगा के सुनौ।’
लइका मन मगन हो के सुने लागथे। पिड़हा अपन राम कहानी ल शुरू करथे।
‘मैं लकड़ी के पिड़हा आंव। कोनों-किसम के लकड़ी होय बढ़ई मोला बनाए म इंकार नइ करय। फेर जइसे लकड़ी तइसे पिड़हा घलो बनथे। सागौन लकड़ी के पिड़हा मं बढ़ई मन सुन्दर नमूना बनाथें। तौ मोर सुन्दरता बाढ़ जाथे। आजकल लोगन मोर ऊपर वार्निस घलो पोत देथें।’
पिड़हा कथे- ‘मोर मान तब बढ़ जाथे जब कोनो पहुना आथे तब ओला पिड़हा दे जाथे। कहूं कोनो बइठै बर पिडहा नइ दे तौ ओला ये ठेसरा सुने ले कोनो नइ बचा सके। के ओखर घर गेन गा तो बइठे बर पिड़हा तक नइ दिस। कोनजनी अपन ला का समझथे? एकरे सेती बाबू हो, कोनों आवय तो बइठे बर पिड़हा याने आसन देना चाही।’
ओहर कथे- ‘कतको संगवारी मन भोजन ल मोर ऊपर रख के खाथे। ओखर आनंद म महूं सामिल हो जाथौं। एक ठन अउ उपयोग तुमन ल सुरता देवाथौं। हमर पिड़हा मन के जीवन तब धन्य हो जाथे जब हमर ऊपर देवता धामी के मूर्ति रख के पूजा करे जाथे। छोटे लइका बर तो मोर ले सस्ता खिलौना ये दुनिया में अउ कुछू नइ हे।’
‘अरे एक ठन जबर उपयोग ल तो भुलात रहेंव। मोर बिना काखरों बिहाव नइ हो सके संगी, सिरतोन।’
‘तब तुमन जानगे होहू के मैं कतका उपयोगी जिनिस आंव?’ ‘अभी तक तो मैं अपन सुखे ला गोठियात रेहेंव। अब मोर दुख ला घलो सुनौ मोर उपयोग ल भुला के लोगन मोला घेरी-बेरी लतियात घलो रहिथे। कभू लहसत घाम म छोड़ देथें तो कभू मूसलाधार पानी म घलो परे रहिथौं अऊ मोर कोनो सुरता करइया नई राहय। अइसन हालत म गुनौ मोला कतका दु:ख होवत होही? ये दे बाबू हो जम्मो कहानी ल तुमन ल सुना डारेंव अउ मोला आसा हे तुमन जरूर मोर उपयोग करे के संगे-संग मोर कोती घलो धियान देहू। देहू न?’
‘हौ’, जम्मो लइका एक सुर म बोल परथें। ‘तैंहर हमन ल अतका सुग्घर अपन कहानी सुनाए अउ हमर मनोरंजन करे पिड़हा, हमन तोर जम्मो बात ल सुरता राखबो, नइ भुलावन।’ समारू कथे।
सबो लइका मन तहां ले फेर अपन पढ़ाई म भिड़ जाथे।
दिनेश चौहान
राजिम