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कहानी

बकठी दाई के गांव

एती बकठी दाई के मिहनत के हाथ रहीस। ओहा बिहानिया ले रतिहा सुतत तक काहीं न काही बुता करते राहय। ओकर घर के मन घलो मिहनत करे म बरोबरी ले ओखर संग देवयं। तीर- तार के गांव म इज्जत बाढ़गे, लइका मन ल बने संस्कार मिलीस।
कोनो माई लोगन ला अगर कोनो बकठी कही देही तो ओहा गुस्सा में आगी असन बरे बर धर लिही। फेर बकठी दाई ला कभु ये बात हा खराब नई लागिस। सिरतोन में बिचारी हा बकठी रहिस। बिहाव होय के बाद दस बच्छर तक आगोरिस ओकर बिहाता हा। जब ओकर न नोनी होइस न बाबू तो ओकर बिहाता हा ओला ये कहिके घर ले निकाल दीस कि ये बकठी गतर के हा मोर कोनो काम के नइए। एकर भरोसा में रइहुं तो मेंहा अपन संतान के मुख देखे बर तरस जाहुं। ओकर बिहाता हा दूसर माई लोगन ला चुरी पहिरा के अपन घर में लान के बइठार दीस।
का करतीस बिचारी बकठी दाई हा रोवत-कलपत अपन मइके में आके रहे बर धरलीस। फेर कहिथे न बिहाव होय के बाद बेटी हा मइके वाला मन बर पहुना हो जाथे अउ पहुना के इात कोनो जगह में दू-तीन दिन तक रहे ल होथे। ओकर बाद ले अगर रहइया मन के इात कम होय बर धर लेथे। बकठी दाई हा अपन ससुरार ले निकाले गे रिहीसे। एकर सेती ओहा अपन भाई-भउजी बर का दाई-ददा बर घलो गरू होगे। का करतीस बिचारी हा बनिहारिन भुतिहारिन कस घर के बुता ल करय अउ रुखा-सूखा खाके खरहर खटिया म सुतय। इही बीच परोस के गांव के बिहारी मण्डल के बहु हा तीन झन लइका छोड़ के जचकी म मर गे। अब बिहारी मण्डल ला अपन बेटा बर घर रखवारिन के जरूरत परगे। ओला बकठी दाई के बारे में सोर पता मिलीस। ओहा बातचीत चलइस अउ दूनों कोती ले हां होय के बाद ओहा बकठी दाई ला अपन बेटा बर चुरी पहिरवा के अपन घर ले अइस।
जादा बड़ किसान नइ रहीस बिहारी मण्डल हा चार एकड़ धनहा अउ किराना दुकान इही ओकर पूंजी रहीस। ओकर मन के गिरस्थी के गाड़ा हा बड़ मुसकुल से चलत रहीस। बकठी दाई अपन नवा ससुरार म अइस तो वोहा अपन सउत के लइका ला पोटार के अपन लइका मानीस। घर अउ बाहिर के बुता के घलो ला मिहनत करके करे बर धर लीस। बकठी दाई अपन सउत के लइका मन ला अतका मया दीस कि ओ लइका मन अपन असल महतारी ला भुला गे अउ बकठी दाई ला अपन असल महतारी ले जादा माने बर धर लीन। फेर लिगरी लिखइया मन के मुंह ला कोनो आज तक बंद कर सकें हे। ओमन सौतेलहीन दाई के बारे में किसिम-किसिम के गोठ लइकामन ला बतावंय। फेर लइका मन के दिमाग में ओ बात हा नई खुसरीस। गांव वाला मन ओ बपुरी के नांव ल बकठी धर दीन। ओ बिचारी हा कब बकठी ले बकठी दाई कहाय बर धर लीस येला कोनो नई बता सकयं। अउ तो अउ ओकर घर के लइका मन घलो ओला बकठी दाई कही के बलाय बर धर लीन। दूसर होतीस तो ओहा मोला बकठी कथस कहीके अपन लइका मन के गाल ला राहपटे राहपट मार के रोटी असन पो डारतीस। फेर बकठी दाई एखर खराब नई मानीस। अउ हांस के कहीस हहो रे मैं ह तुंहर मन के बकठी दाई आंव। बकठी दाई अपन घर के लइका मन संग पारा मोहल्ला के लइका मन ला घलो मया करय। एकरे सेती ओकर अंगना मां पारा परोस के लइका मन जुरियाय रहयं। पहिली-पहिली तो गांव वाला मन ओला टोनही कहीके डेरावयं घलो। कोनो काहय एक बकठी ठगरी के का भरोसा। कोनो दिन ये हा कोनो लइका ला अपन संतान पाय बर पुजवन घलो चढ़ा दिही। तब कोनो काहय बकठी मन दूसर के लइका ला बने नजर ले देखे नइ सकय। कोन दिन ओकर नजर झूल जाही तेकर कोनो ठिकाना नइए। सियान मन अपन लइका मन ला बकठी दाई घर जाय बर मना करंय फेर लइका मन कहां मानने वाला रहीन। ओमन बकठी दाई घर जाना बंद नई करीन। बकठी दाई के बने सुभाव अउ दूसर ला मदद करे के ओकर आदत हा गांव म ओकर इात ला बढ़ा दीस। येती बकठी दाई के मिहनत के हाथ रहीस। ओहा बिहानिया ले रतिहा सुतत तक काहीं न काही बुता करते राहय। ओकर घर के मन घलो मिहनत करे म बरोबरी ले ओखर संग देवय। एकर सेती ओकर मन के घर में चीज बस पलपलाय बर धरलीस। ओकर घर ट्रेक्टर, फटफटी, पानी पलोय के पंप सबो होगे। अपन गांव में का तीर-तार के सबो गांव म घलो ओकर मन के इात बाढ़गे, लइका मन ल बने संस्कार मिलीस एकर सेती ओमन बने गुनीक निकलगे। बड़े बेटा तो पढ़-लिख के अपन बाप के काम-धाम ला सम्हाले बर धर लीस। छोटे बेटा हा पढ़-लिख के इंजीनियर बनगे। नोनी हा डॉक्टरी पढ़के डॉक्टर संग बिहाव करके अपन ससुरार चल दीस। बकठी दाई हा अपन सउत के लइका मन के बिहाव ल अतेक सुग्घर ढंग ले करीस कि ओकर लइका मन के बिहाव के सोर हा गांव समाज सबो कोती बगर गे।
अब तो बकठी दाई के इात घर में तो का बाहिर घलो होय बर धर लीस। इही बीच पंचायत चुनाव आइस अउ बकठी दाई के गांव के मन ओला सरपंच बनाय के फैसला कर डारीन। बकठी दाई शर्त राखीस कि ओकर गांव के ग्राम पंचायत में पंच सरपंच सबो ला निर्विरोध चुना के आना चाही। गांव वाला मन ओकर बात ला मानीन अउ पूरा ग्राम पंचायत में पंच-सरपंच सबो निर्विरोध चुनागे। अब तो बकठी दाई अपन घर बरोबर ग्राम पंचायत ला घलो जतने बर लागगे। ओहा गांव वाला मन ला श्रमदान करे के सीखो दीस। ओ किहीस कि छोटे-छोटे बात बर सरकार के मुंह जोहना ठीक नइए। हमन अपन गांव के छोटे-छोटे काम ला श्रमदान करके पूरा कर सकथन। एकरे संग ओहा गांव वाला मन ला पेड़ लगाय के घलो सलाह दीस। गांव में हफ्ता में एक दिन गांव वाला मन श्रमदान करयं। एक दिन गांव वाला मन अपन गांव के गली-खोर के सफई करयं। गङ्ढा मन ला पाटयं। बकठी दाई गांव वाला मन ला इहु सीख दीस कि नसा सरीर के दुसमन आय। ओहा गांव के गुटका, सराब बेचे बर मना करीस। गांव वाला मन ओकर बात ला मानीन फेर सराब दुकान वाला हा अपन दुकान ला बंद नइ करीस। ओहा बकठी दाई ला महीना के महीना रूपया देके लालच घलो देखइस। फेर बकठी दाई कोनो लालच म नइ आइस। गांव वाला मन गांव में बइठका करके एक निरनय लीन कि गांव में न कोनो सराब पीही अउ न कोनो सराब दुकान जाही। गांव के सराब दुकान सुन्ना परगे। महीना दु महीना देखे के बाद सराब दुकान वाला ला घलो अपन सराब दुकान ला बंद करके भागे बर परगे। एक प्रकार के जनता के नाकाबंदी के जीत होगे। बकठी दाई के काम अउ ओकर गांव के विकास के खबर हा चारों खुंट बगरगे। दुसर गांव के मनखे मन घलो अब आ आ के बकठी दाई ले सलाह मांगे बर धर लीन।
ये आय बकठी दाई के कथा। कहां ओला बिधाता हा निरबंसिन बना दे रहीस। ओहा अपन उदीम ले गांव भर ला अपन संतान बना डारीस। एकर से इही सीख मिलथे कि अपन करम ला दोस देवत रोवत बइठे में काकरो काम नई बनय। उदीम करके मनखे ह अपन करम के लेखा ला बदले सकथे। हमर छत्तीसगढ़ के गांव मन में कतकोन माई लोगन अइसन आय जेला गांव अउ परिवार वाला मन बकठी, टोनही कहीके ओकर मन ऊपर अत्याचार करथे। कतको झन खुदे अपन जिनगानी ला खतम कर देथे। अउ कतको झन ला गांव अउ परिवार वाला मन मार डारथें ये दूनो ठीक नोहय। गांव, समाज अउ परिवार ला एकर बारे में सोचना चाही।
शशि कुमार शर्मा
तुमगांव, महासमुन्द