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कहिनी : बाढ़ै पूत पिता के धरम

सनेही महराज सब नौकरी के दिन पूरा करके गांव म जाके खेती-पाती करे लागिस। ये महाराज ले ओकर महराजिन हर चार आंगुर आघू रहिस। बिहनिया कहूं चाह पियत म राउत आ जातिस। तब अपन चाह पिआई ल छोड़के ओकर बर चाह बनाके दे लेतिस तब फेर अपन पितिस। अइसने घर भंड़वा करइय्या रउताइन के चेत राखतिस। कुछ खाय-पिये के रोटी- पीठा बनातिस तेमा समझ जावो सब कमिया पोंड़हार के बांटा रहिबे करतिस। पारा परोंस के मन कोनो अथान, कोनो मही, कोनो साग सालन मांगे बर आये रहितिन। सबला मया करके बइठारतिस अउ उंकर मांगे जिनिस ल देतिस।
क स बबा! तैंहर रोजहा हमन ला भूत-परेत, रक्सा, बघवा, कोलिहा, बेंदरा के किस्सा कहिके भुलवार थस। चोर-चिंहाट, ठगना-जगना के, राजा-रानी के चतुरा नउवा के ठग फसाड़ी के बात बताके चकोर देथस। सुन-सुन के हमन अकबक्का जाथन। कभू तो रात बिकाल के सुते म सपना डेराथंव। डर लग जाथे। आज न तैं एको झन बने आदमी के बात ल बताबे भाई! तहीं तो एक दिन बताये रहे के गांधीजी के कहना रहिस के खराब बात झन सुनव, झन देखव, झन कहव। तीन ठन बेंदरा के पुतरी राखे रहिस। तब ओई हिसाब म आज के किस्सा कहानी हर होना चाही। सियनहा हर खुल-खुल-खुल-खुल हांस भरिस। ओला लगिस सुनत-सुनत लइका मन के अक्किल हर बाढ़ जाथे। गुनिस के गुन्निक होगे बच्चा मन। अइसनहा, गुनान करत हें तब आघू ये लइका मन बड़ाई वाला होही, नांव कमाहीं। तुंहर मन के लाइक किस्सा कहि तो देहंव, फेर बीच म तुल-मुल तइय्या झन करिहा। टेकाचाली झन मढ़ा हौ अउ अध बीच म उठके भागिहा झन भाई।
मोहन कहिस- बबा! तैं हमला का अइसने किस्सा सुनइया समझ ले हे? तैं भले थक जाबे फेर हमन थकासी काला कथें तेला नई जानन। मैं न बबा! किस्सा सुनत-सुनत इतना बिधुन हो जाथंव के खाये-पिये के सुरता नइ रहय। नींद नइ आवै। दाई हर खाये बर बलाथे तब मैं कहि देथौ मोला भूख नई लागत हे तुमन खावा-पिवा। मैं नई खावौं काल बिहनहा खा लेहौं।
अच्छा अइसना जब तुंहर चिभिक हे तव लेवा भाई सुना। ये हर बनाये गोठ नोहय। हमर आंखी के देखे बात आय। आय तो बात कलजुग के, फेर सुनइय्या मन कइही सतजुगिहा आदमी के बात ल बबा हर बतावत हे। एक झन हुंकारू देत जाहव, बिन हुंकारू देवइय्या के, किस्सा कहइय्या ल, झोझके कस लागथे जी। हहो! तव ये भरत हर हुंकारू देही। जमो लइका पालथी मार के सुकुड़दुम होके बइठ गें तहां बबा हर मगन हो के अपन सुरता के मोटरी म ले एक ठन किस्सा ल निकालिस! हां! तब दुरूग के तीर म एक ठन गांव रहिस हे मुर्रा। बहुत बड़का गांव नइये फेर उहां के गौटिया महाराज हर सब बात म बडक़ा रहिस। देखे म पंचहत्था, गोरिया-नरिया, ओनहा कपड़ा सफ्फा बगुला पांखी कस उार, धोती कुरता जाकिट अउ बजनी पहनी पहिर के जब गली म निकलतिस तव देखनी हो जावै। रस्ता रेंगइय्या मन थोरक तिरिया जातिन। जादा चटर-पटर गोठ के काम नइये। काम के पुरती गोठिआना। गहिल मती के मनखे। बाहिर ले नरियर कस कड़ा फेर भीतर ले खुरहुरी कस मीठ, कोंवर। आन के मदद करे बर आगू धुरा म। जायदाद बहुत, अउ खवइय्या एकोझन नई हे। ये बात के संसो हर ओकर अंतस ल करोवे। गुनय, मोर एक ठन पनदेवा हो जातिस भगवान। जग्ग, भागवत, पूजा-पाठ, तीरिथ बरत, कुंआरी भोजन कहत का हौं? किसम-किसम के उजोग म रहय महराज हर। बहुत दिन के गये ले भगवान हर ओकर बिनती ल सुन लिस। महराजिन के पांव भारी होगे मुंहे मुंह म गांव तो गांव, लकठा परोस के बस्ती मन म बात बगरगे के महराज हर बाप होवइय्या हे। डीह म दिया बरोइय्या आवत हे। जब ओकर घर बाबू पिला अंवतरिस तव गांव-गांव के गंड़वा मन आके बाजा बजाइन। मगोइय्या जंचोइय्या मन आ गइन, सबला महराज कुछ न कुछ देइस-लेइस। छट्ठी के दिन अतराफ के रमायेन मण्डली बाला मन आइन रात भर रमायेन होइस खाये-पिये के सरबरोज कहत तो हौं चारों मुड़ा उछाह हो गइस। लइका अंजोरी पांख के चंदा कस दिनोंदिन बाढ़ै लगिस। पढ़ो लिखो के, महराज हर साहेब बनाये के उजोग म रहिस। लइका तउन ददा-दाई के हुकुम के हाजिर, न कोई के छ: पांच म रहना, अपन रास्ता म आना अपन रास्ता म जाना अउ पढ़ाई-लिखाई म चेत लगाना। पढ़त-पढ़त लइका साहेब के नौकरी लाइक पढ़ डारिस। ओकर ददा कहिस- बेटा! हमन भूख नइ मरत हन भगवान के देहे कुछू कमती नइये। फेर तोर नौकरी के साध हे तव जा। अतेक हमर चेतावना हे झन तो तैं घूंस घांस खाबे अउ झन सरकारी चीज ल जहंड़ बिंहड़ करबे। पसीना गारे कमाई म सुख हे। उद्दिम सहित राम गुन गावा। तापर राम अधिक सुख पावा। महराज हर घलाव नौकरी म लगिस ओहर फेर खेती किसानी के काम के। अच्छा ढंग से खेती करके किसान मन ला देखाना, सिखोना। गांव चल देवय, किसान मन सो जाके चौंरा म बइठ जातिस, अउ छत्तीसगढ़ी म किसान मन सो गोठिआवै। सुनंय तहां गांव भर के किसान मन जुर जावैं। एक-एक ठन बात ल अच्छा समझावै। साहबी नइ झाड़ै कहय हम इहां के उपजे बाढ़े हावन किसान के बेटा अन तब का अपन ददा भाई मन सो साहबी झाड़ बो का? बजरंग नांव के लइका कहिस बबा! साहेब के गुन ल बखान डारे। फेर साहेब के नांव ल नइ बताये। बबा कहिस। अच्छा सुरता कराये रे। ओखर नांव रहिस- रामसनेही फेर सब सनेही महराज कहंय। फारम के सरहा सींक तक ला अपन घर म, न लेजय न लेजन देवय। कहय- सरकार के घर बल हे, ये मा कोई किसम के कमी करना पाप हे। कई झन ओकर नीचे काम करइय्या ‘खउहा’ मन रखमखा जावंय। ओमन अनसुना म कहंय- खाय न खाने देवय दुष्ट। अपन नइ खावय तव हम पंचन ला काबर छेंकथे? बड़ा हरिशचंद बने हे। एक न एक दिन हमर जीव ल करलावत हे तेकर फल ला पाही। ओहर कतका ईमान बाला रहिस तेकर एक पटंतर देवत हौं। एक दिन फारम ले आइस तब देखिस भुरमुंग के फोकला हर जगहा जगा अंगना म बगरे रहिस। ओला भरम हो गय के फारम ले चपरासी सो मंगाके लइका मन खाये होंही। आते साठ जंगा गे तुमन काबर फारम ले मंगा के भुरमुंग ल खाये हावा। ओकर आंखी ललियागे। महराजिन धीरे अकन समझाइस ठेला वाला सो बिसा के खाये हावन। काबर फोकट के लइका मन ल खिसियावत हावा। जतका दिन रहिस फारम के उपज बाढ़िस अउ फायदा म फारम रहिस। बढ़े साहब मन सब सनेही महराज ऊपर आंखी मूंद के परतीत करंय। पूरा परवार लइका बच्चा सब ईमान के रस्ता म चले बर सीख गइन। मुंह म बड़े-बड़े बात करना अउ करनी म गंगलात काम करना। येकर अच्छा असर लइका मन ऊप्पर नइ होवय। सनेही महराज सब नौकरी के दिन पूरा करके गांव म जाके खेती पांती करे लागिस। ये महाराज ले ओकर महराजिन हर चार आंगुर आघू रहिस। बिहनिया कहूं चाह पियत म राउत आ जातिस। तब अपन चाह पिआई ल छोड़के ओकर बर चाह बनाके दे लेतिस तब फेर अपन पितिस अइसने घर भंड़वा करइय्या रउताइन के चेत राख तिस। कुछ खाय-पिये के रोटी पीठा बनातिस तेमा समझ जावो सब कमिया पोंड़हार के बांटा रहिबे करतिस। पारा परोंस के मन कोनो अथान, कोनो मही, कोनो साग सालन मांगे बर आये रहितिन। सबला मया करके बइठारतिस अउ उंकर मांगे जिनिस ल देतिस। महराजिन कभू तीजा पोरा म मइके जावे तब पारा हर सुन्ना लागय, अइसे महराजिन के मया पिरित के राज रहय।
महराजिन पतिबरता नारी, महराज के जमो ओनहा कपड़ा ल अपने हाथ म सबुनातिस। अपनो साफ सफाई म रहय। महराजिन सो गहना गोटान के कमती नइ रहिस। फेर सबला पहिरे नइ रहय। कभू तिहार बार के सिंगार करतिस, नंदिया बइला अस सम्हर के निकलतिस तब देखनी हो जावै।
एक बात, अउ बतावत हौं महराज हर निंदाई-कोड़ाई कुछु काम म खेत जाये रहितिस तब महराजिन हर तिपो के गोरस भेज देवै। खेत के मेड़ म छाता ओढ़े महराज देखके कहितिस मैं सोझे छांव म बइठे हंव। मोर बर गोरस भेजे हे, मैं नइ पियंव कइके कमिया मन ला पिया देवय। अइसे ये सनेही महराज के सुभाव। बेरा ढरकत खेत ले आतिस ततका बेर ले महराजिन बिन खाये अगोरत रहय। महराज हर कभू गोंठ बात निकलय तब कहय के सत ईमान से रहे के फल बारो महिना सरगदिन मिलथे। बाल बच्चा मन सच्चा होथंय। ददा-दाई के सेवा करइय्या होथंय। अउ बुढ़ाती काल म हुकुम के हाजिर बेटी-बेटा मिलगे तेला सरग के सुख नइ चाही ईहें मिल जाथे। महराज के कहे हर ओकर घर म उतरगे। ओकर एक ठन बेठा होईस तउन सरवन बरोबर ददा-दाई के सेवक। डाग्डरी पढ़िस। ओकर कहना रहय दुखिया मन के सेवा म सबले जादा पुन्न हे। कइसनहां बेमारी होवय ओकर कहूं दस नइ पूरे हे तब डाक्टर हर ओला बने करी डारै। गरीबहा, अमीरहा, सब ओकर बर एक बरोबर हे। झलझलहा सस्तिहा सादा बवादा पहिरना ओढ़ना, फेर गरूवा गाय के सेवा आदमी बरोबर करना ओकर धरम करम हे।
महराजिन हर सनेही महराज ले पांच बरिस पहिली गुजरगे। तब ले ओकर मन म हरास आ गइस। कुछु बात होत रतिस कहितिस मोला हिरौंधी बाई हर ठग देइस। ओहर जीत गय मैं हार गयेंव। महराज हर महराजिन के नांव म मदरसा बनवाइस अउ अंधरा, मुक्का, भैरा मन बर एक ठन आश्रम सिरजा देइस। अपन कमाये जायदाद ल पर स्वारथ म लगा दिहिस।
अब न महराज हे, अउ न महराजिन हे, फेर उंकर जस के धजा ल ओकर बेटा हर फहरावत हे। जेला परतित नइ होवय तउन जो भेलाई दुरूग म देख लेवै। कस बबा! हमन कइसे जानबो चिन्हबो ओला। तब एक झन किस्सा सुनोइय्या कहिस बबा। तै रामजीव डाग्डर ल कहत हस का? सियनहा हर हांस के कहिस। ठउका कहे रे! चला भाई अब अपन-अपन घर जाबौ मोर किसा पुरगे। सबके कान जुरगे।

श्यामलाल चतुर्वेदी
चितले कालोनी तिलक नगर, बिलासपुर

One reply on “कहिनी : बाढ़ै पूत पिता के धरम”

chhatisgarhi ke gutturpan au dharhapan minjhre he samrath bhasa ke mahttam la un logan man la batay la parhi joun chhatisgarhi la hinhar samjathe are bhai jamana lokal au global ke aat he jaun apnech la nai janhi taunha biran ke la ka janhi?…9617777514

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