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कहानी

कहिनी : सिरा गे पईसा

बाबू बिहिनिया ले गांव के मडई म किंजर-किंजर के अपन ददा के अगोरा करत-करत असकटा गे हे. ओखर संगी जवरिहा मन मडई म भजिया-जलेबी धडकत अपन-अपन दाई-ददा संग गिंजरत हें. जे पसरा म बाबू ला जिनिस मन ला बोटोर-बोटोर देखत जंवरिहा मन भेंटत हे तउने मेर ओला पूछत हें – का लेस संगी ?, जलेबी खायेस का मितान ?, … वो पिपर तरी के दुकान ले मुर्रा लाडू खच्चित खा के देखबे भाई, अडबड मिठावत हे. रंग-रंग के खात बिसावत संगी मन मेछरावत हें फेर बाबू कलेचुप.
ददा बलउदा गे हे, बैंक ले पइसा निकाले. बेरा चढ के उतरईया हे, नई आये हे. बाबू के मन मडई म सजे दुकान के समान डहर घेरी-बेरी जावत हे. दंउड के घर अउ फेर घर म झांक के फेर मडई. कब आही ददा अउ कब दिही पईसा, अइसे-तईसे सरी मडई उसल जाही. बाबू ला ओखर दाई समझावत हे, फेर बाबू तो मानतेच नई हे.
-का लेबे बाबू ! … पिपि, खई-खजेना ? … तें मूह फोर के बोल बेटा, तें जउन कहिबे तउन लेवाहूं. रामसरन बरेठ अपन बारा बछर के बाबू के मूडी म अपन हांथ धरत बोलिस. बाबू झकना के अपन ददा ल देखिस अउ कूछू बोले बिना खुसी के मया म रोये लागिस. रामसरन अपन बाबू के आंसू ल पोंछत सौ रूपिया के कडकडावत नोंट ओखर हांथ म धरा दिस. -जा बेटा तोर जउन मरजी, तउन खा-बिसा ! बाबू एक-दू रूपिया देवईया ददा ला सौ रूपिया देवत देख के बडका नोट ला चक खा के देखे लागिस. रामसरन मूडी ला हला के इसारा करिस, बाबू जान डारिस ये जम्‍मो पइसा मडई म खई-खजेना खाये बर ददा देहे हे. बाबू मगन होके नांचत, संगी मन ला सोरियावत मडई डहर भाग गिस.
छितका कुरिया म धरधरावत रंगीन टीबी देखत बाबू के दाई ह रामसरन के आये ले फरिका ला खोलिस. रामसरन झोलगा माची म बईठत कहिस –कस बाबू के दाई टूरा ला दू-चार रूपिया नई दे देतेस ओ, बिचारा मोर अगोरा करत रोनहू गतर के हो गे रहिस. -कहां ले देंवव बाबू के ददा, परो दिन बैंक ले निकाल के पांच हजार रूपिया लाये रेहेव तेखर तो गंउटिया घर के जुन्ना टीभी बिसा डारेव, लेह देह के मैं गउटनिन मेर सौ रूपिया छोडायेंव तउने म तो आज बिहनिया मछरी अउ गोंदली-मसाला बिसाये हंव, आज मडई ये त हमर घर म रंधनी नई चढही हो. रामसरन अपन मेंछा टेंवत कहिस –ले बने करेस, आज फेर दस हजार रूपिया बैंक ले निकाले हांवव तेने म दू ठन नारंगी लाने हंव, रोजे रोज पउवा बिसाथंव मंहगा परथे बिया ह. अउ … तोर जुन्ना करधन ला बलदा के दस तोरा के येदे करधन लाने हंव. करधन ला देख के बरेठिन के मन सुआ नाचे लागिस अउ ओखर नारंगी बर बगियई भुला गे.
रामसरन दू गिलास नारंगी ढार के टाठी भर भात अउ मछरी संग चढईस. जब अघा गे त अचोइस अउ अपन खीसा ले सौ-सौ के दस ठन नोट गिन के बरेठिन ला दिस. -जा बाबू के दाई तहूं मडई के निसानी पैरी-पहुंची-पैजन जउन मन तउन बिसा ले. बाबू के दाई नोट ला धर के सम्हर पसर के मडई डहर निकल गे, रामसरन बरेठ घलो मंद के नसा म मस्त मडई पहुच गे.
गांव म रामसरन जइसे अडबड पइसा वाले मनखे हो गें हें. सबे मन तिर जमीन के मुआवजा के दस-बीस लाख रूपिया ले उपरे रूपिया जमा हे. जम्मों मन अपन-अपन रिस्ते सेना के गांव म धनहा-भर्री बिसावत हें, कतको फटफटी-सूमो बिसावत हें, अउ कतको दारू म उडावत हें. रामसरन तको के दस डिसमिल जमीन रहिस, ओमा जईसे तईसे धान बों के अपन जिंनगी चलावत रहिस. छट्ठी-छेवारी, मरनी-हरनी म ओढना-कपरा कांचे के काम घलो ले थोर-मोर कमई हो जावत रहिस. गांव म पावर पिलांट लगे के मुनादी के पाछू सरकार ओखरो जमीन ला लेके तीन लाख मुआवजा देहे हे. तब ले रामसरन ह बरेठी छोड के रोज संझा गांव के कोचिया मेर पउवा बिसा-बिसा के पीयत हे अउ अटियावत हे जना-मना ओखर ले अमीर कोनो नई हे.
मुआवजा के पइंसा सहर के बैंक म जमा हे, रामसरन जब पईसा सिराथे सहर जाके बैंक ले पईसा निकालथे अउ एके हप्ता म छकल-बकल खर्चा कर डारथे. गांव के सोसाइटी ले तीन रूपिया किलो के चांउर दू कूंटल बिसा के सकेल डारे हे. अपन बाई बर लाली-गुलाली लुगरा अडबड अकन बिसा डारे हे. जउन बरेठिन डालडा के पातर पैरी-बिछिया बर तरसै तेखर पांव म चांदी के मोटहा सांटी-बिछिया चकचकावत हे. खेत-खार म काम करई बंद हे, काबर करही पलपलावत ले चांउर घर म भरे हे, दार चटनी बर मुआवजा के पईसा हे. बांचे खोंचे म राहत कार्य खुले म बिना मेहनत करे पईसा मिल जथे. बरेठ के दारू पियत अउ बरेठिन के टीभी देखत, सीडी सुनत, चारी-चुगली करत मजा ले दिन बीतत हे.
रामसरन ला थोरिक चिंता हावय कि बाबू बर आने गांव म एको एकड धनहा बिसा लेतेंव, फेर रामसरन ला तीन लाख मिले हे जेमा कागज-पत्तर बनवाये, खर्चा-पानी, सेठ मेर लेहे जुन्ना करजा ला बियाज सहित छुटे अउ गहना-गाठा, टीबी-सीडी लेवत, दारू-कुकरी उडावत दूये लाख बांचे हे. धनहा जब-जब मिले के सोर मिलथे, रामसरन के बांचे पईसा ले धनहा के कीमत दस-बीस हजार मंहगा होथे नहीं त जमीन रामसरन ला पसंद नई आय. कभू जमीन के छोटे टेपरी नई मिले काबर कि चार गांव के जमीन निकले हे पावर पिलांट बर. जम्मो किसान मल ला बजबजावत पईसा मिले हे, तीर-तखार के गांव म घूम-घूम के सब जमीन बिसावत हें कि बिगडे जमीन ले जमीन बना लन कहिके. अइसे म तीर-तखार के गांव म बेंचईया जमीन के कमी घलव होगे हे.
रामसरन परोसी के नंवा फटफटी म तेल भरवा-भरवा के गांव-गांव किंजरत हे. जमीन मिलतेच नई हे, हरियाना वाले आधा ले जादा जमीन ला बिसा के खूरा-खूंद मचा डारे हें. बांचे-खोंचे म बडे मुआवजा पाये किसान-दाउ मन बिसा डारे हें. रामसरन के खाली दारू पियई अउ धनहा खोजई चलत हे. ओखर बाई बरेठिन घलो बापो-पुरखा म पहिली बेर रहिसी देखे हे, त बयाय बानी, ना तो बरेठ के बैंक ले पइसा निकाल-निकाल के बोहवई ला रोकत हे, ना तो अपन सउंख ला रोकत हे, छकल-बकल उडावत हें.
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रतिहा कन ले रामसरन बोखार म छटपटावत हे, बरेठिन समझत हे कि दारू जादा पी लेहे हे तेखर नसा म छटपटावत हे. पंगपगांवत ले रामसरन के सांस चढे-उतरे लग गे, देखव-देखव होगे. गांव के डाक्टर तुरते बेलासपुर लेगे ल कहिस, गांव के मन जुर-मिल के बेलासपुर ला के रामसरन ला बडे पिराइव्हेट अस्पताल म भरती कर दिन. बीस दिन ले रामसरन बोले-गोठियाये बिना कांछ के कुरिया म रंग-रंग के पाईप चढे सूते रहिस, डाक्टीर मन बतईस कि जादा दारू पिये के कारन येखर लीवर खराब होगे हे, कमती दिन के संगी हे, बंचाये के कोसित करत हंन. फेर रामसरन ला डाक्टर मन बचाये नई सकिन, रामसरन ढलंग दिस. बरेठिन गोहार पारके रोये लागिस, सबे मन ओला समझाइस. रामसरन के लास ला देहे के पहिली अस्पताल के डाक्टर मन अपन खर्चा के पचास हजार रूपिया मढवा लिन. बरेठिन ला परोसी ह उधार म पईसा दे दीस, आज नई तो काली तो बरेठिन के नाम म रामसरन के बैंक के पईसा आही त बरेठिन बपुरी दे दीही कहि के. किरिया-करम, मरनी-हरनी जम्मा उधारी के पईसा म बने बने निपट गे, काम-धाम सिरा गे.
थोरकन दिन बहुरे ले बरेठिन सरपंच मेर ले मृत्यु परमान पत्तर बनवा के सहर के बैंक पंहुचिस. का कईसे पूछत, अंगूठा दस्खित करवा के बैंक मनिजर बरेठिन के नाम ला रामसरन के खाता म चढाइस. बरेठिन अपन दुख गोठियावत परोसी मेर लेहे करजा ला छुटे खातिर अस्सी हजार निकालना हे कहिके, बैंक मनिजर ला फारम भर देतेव साहब कहिस. बैंक मनिजर खाता म बांचे पईसा अउ बरेठिन के अस्सी हजार ला सुन के बक्क खा गे. -खाता म तो दसे हजार बांचे हे बरेठिन. बैंक मनिजर के बात ला सुन के बरेठिन मूड धर के बईठ गे.


संजीव तिवारी