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गीत

काँदा कस उसनात हे

कभू घाम कभू पानी, भुँइया हा दंदियात हे ।
जेठ के महिना में आदमी, काँदा कस उसनात हे।
दिनमान घाम के मारे , मुँहू कान ललियावत हे ।
पटकू बाँध के रेंगत हे , देंहे हा पसिनयावत हे।
माटी के घर ला उजार के, लेंटर ला बनात हे ।
जेठ के महिना में आदमी, काँदा कस उसनात हे।
कूलर पंखा चलत तभो ले , पसीना हा आवत हे ।
लाइन हा गोल होगे ताहन , भारी दंदियावत हे ।
दिन में चैन न रात में चैन, मच्छर घलो भुनभुनात हे।
जेठ के महिना में आदमी, काँदा कस उसनात हे।
खाय पीये के सुहात नइहे, पानी भर पीयावत हे ।
अम्मटहा साग में थोकिन , भात हा लीलावत हे।
लीमऊ ला डार के माटी, सरबत ला बनवात हे ।
जेठ के महिना में आदमी, काँदा कस उसनात हे ।
रुख राई तो कटा गेहे , अब छाँव ला खोजत हे ।
आगी लगगे गाँव में तब , कुवाँ बर सोचत हे ।
चुगगे सबो दाना ला तब , पाछू बर पछतात हे ।
जेठ के महिना में आदमी, काँदा कस उसनात हे।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कवर्धा )
छत्तीसगढ़
8602407353