Categories
कविता

काबर बेटी मार दे जाथे

कतको सबा,लता,तीजन ह मउत के घाट उतार दे जाथे
देखन घलो नइ पावय दुनिया,गरभे म उनला मार दे जाथे
बेटा-बेटी ल एक बरोबर नइ समझय जालिम दुनिया ह
बेटा पाए के साध म काबर बेटी कुआँ म डार दे जाथे?
काबर बेटी मार दे जाथे?

नानपनले भेद सइथे बेटा ल ‘बैट’ एला ‘बाहरी’मिलथे
काम-बुता म हाथ बटाथे तभो ले बेटी आघू रहिथे
नाव बढ़ाथे दाई-ददा के अपन मेहनत ले बपरी मन
तभो ‘हीनता’ के दलदल म काबर इहि डार दे जाथे?
काबर बेटी मार दे जाथे?

दूनो कुल के मान बढ़ाथे,दिन भर सबके सेवा बजाथे
बनथे कभू भाई के राखी ,बनके माँ कभू धरम सीखाथे
ईंटा गारा के मकान ला अपन मया ले सरग बनाथे
अइसन त्याग अउ मया करइया ‘दुर्गा’ अकसर दुःख ल पाथे?
काबर बेटी मार दे जाथे?

जेन बेटा बर अतका मरथव उही अपन औकात देखाथे
घरफुक्का बनके एक दिन जब बृद्धाश्रम के नाव बताथे
दूसर डाहर देखव बेटीमन ,बेटा बनके फरज निभाथे
झन समझव रे निरबल एला ,इही ह एक दिन पार लगाथे
काबर बेटी मार दे जाथे?

पहली अइसन सोंच ल मारव जउन अइसन काम कराथे
दूनो आँखी हे एक बरोबर तभो ओमा भेद बताथे
जेन दाई ह करेहे पैदा का वो काखरो बेटी नोहय
हे धिक्कार अइसन समाज जउन म बेटी गरू कहाथे
काबर बेटी मार दे जाथे?
wpid-14187113867800.jpg
सुनिल शर्मा “नील”
थान खमरिया,बेमेतरा(छ.ग.)
7828927284
9755554470
रचना-05/06/2015,शुक्रवार