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कविता

का आदमी अस

अपन भासा के बोल न जाने,
अपन भासा के मोल न जाने।
जनम देवईया जग के पहिली,
मॉ सबद के तोल न जाने।।
पर भासा ल हितु मानथस।।
झुंड म चले जिनावर हिरना,
कीट पतंगा पंछी परेवना।
संग भाई के चले न दु दिन,
भूले, न पूछे पियारी बहना।।
दाई ददा ल दुर भगाथस।।
धरम करले धाम बनाले
सत करम कर काम बनाले।
धन दौलत कुछु साथ न जावे
जिनगी म कुछु नाम कमा ले।।
मानुस कस जी मानुस अस।।
अपन हक छीने बर जान
हितुवा अउ बइरी पहिचान।
खाले किरिया जाय परान
फेर न छुटय सुवाभिमान।।
पर के बुध म जाथस धॅंस।।
आ कहीथे बोली हॅ जा कहीथे
समझथे दुख जे पीरा सहीथे।
मया के बोल म वो ताकत हे
जे धार परे पखरा बहीथे।।
काखर बल म तैं अंटियाथस।।
गिजगिज करे दांत निपोरे
पर भासा के नकल उतारे।
बोले म छत्तीसगढ़ी लजाए
हिंदी म गलत लिखे उचारे।।
अउ अंगरेजी म एम.ए. हस।।

धर्मेन्द्र निर्मल