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कविता

का पुरवाही में अईसने जहर घुरे हे





का बतावव काला गोठीयावव,
अंतस के पीरा ल कईसे बतावव I
कोनों ककरो नई सुनय,
मनखे के गोठ ल मनखे नई गुनय I
का पुरवाही में अईसने जहर घुरे हे ?

संसों लागथे मनखे होय के,
कोन जनी कोन ह कतका बेर,
काकर गोठ मा रिसा जही I
अपनेच घर परवार ल
आगी लगा डारही,
का पुरवाही में अईसने जहर घुरे हे ?

अरे परबुधिया परिया भुईयां म,
सोना उपजा सकथस I
गुनबे त अंतस के अंधियार ल,
जुगजुग ले चमका सकथस I
फेर का हो जथे ऐके कनिक मा,
का पुरवाही में अईसने जहर घुरे हे ?

साँस ह आही साँस ह जाही,
फेर अपनेच बर काबर फांस बना डारेव I
माटी के काया माटी म जाही,
सरी दुनिया ह जानत हे I
जान बुझ के काया ल,
अपने हाथ मा उझार डारेव I
का पुरवाही में अईसने जहर घुरे हे ?

बड़ हिम्मतवाला हौ जी,
अपन साथ परवार के निवाला ल,
तको उलगा डारेव I
अपनेच काया के बईरी बनके,
घर परवार समाज ल तको रोवा डारेव I
का पुरवाही में अईसने जहर घुरे हे ?

विजेंद्र वर्मा अनजान
नगरगाँव (रायपुर)