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किरीट सवैया छंद

किरीट सवैया : कपूत नहीं सपूत बनो

देखव ए जुग के लइका मन हावय अब्बड़ हे बदमास ग।
बात कहाँ सुनथे कखरो बस दाँत निपोरय ओ मन हाँस ग।
मान करे कखरो नइ जानय होवत हे मति हा अब नास ग।
संगत साथ घलो बिगड़े बड़ दाइ ददा रख पाय न आस ग।

पूत सपूत कहूँ मिल जातिस नैन नसीब म काबर रोतिस।
राम सहीं लइका हर होतिस दाइ ददा नइ लाँघन सोतिस।
जानत होतिस दाइ ददा तब फोकट बन ला काबर बोतिस।
नाँव बुझावँव जे कुल के तब ओखर भार ला काबर ढोतिस।

आस धरे बड़ पालय पोंसय पूत बने बन मान बचावव।
ध्यान रखो ग सदा सुख के दुख के झन जी अब नाच नचावव।
जावत हावव छोड़ कहाँ घर द्वार सबो मिल साथ बसावव।
लाय हवे जग मा तुँहला भगवान हरे नित माथ नवावव।

जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया”
बाल्को(कोरबा)


2 replies on “किरीट सवैया : कपूत नहीं सपूत बनो”

जानत होतिस दाइ ददा तब फोकट काबर गा बन बोतिस।

या फोकट के बन काबर बोतिस पढ़े

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