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गीत

किसान

नंगरिहा, नई उपजै तोर बिना धान।
धरती पूंजी धरती रुंजी, धरती पूत किसान।।

मिहनत ला जनमत पाये हस
सबके सेवा बर आये हस
तोर तपसिया तीन बतर के बरसा जूड तिपान।

अब आगे हे तोर दिन बादर
बरसे ला पानी चल मोरे नांगर
लहू पछीना, टोरे जाँगर, बइला तोर मितान।

दाई के थन मां दूध भरे हे
लइका बर भगवान गढे़ हे
जइसे तोला गढ़के भेजिस भुंइया बर भगवान।

– बद्री विशाल यदु ‘परमानंद’