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गीत

कुण्डलियाँ

नंदावत चीला फरा,अउ नंदाय जांता ।
झांपी चरिहा झउहा,नंदावत हे बांगा।
नंदावत हे बांगा,पानी कामे भरबो।
जांता बीना हमन,दार कामे दरबो
कहत “नुकीला” राम,नवा जबाना हे आवत।
गाड़ा दौरी नांगर,सब जावत हे नंदावत।

आगी छेना बारि के,सब झन जाड़ बुताय।
गोरसी आगु बैठि के,लफ लफर गोठियाय।
लफ लफर गोठियाय,काम करे न धाम करे।
चारी चुगली करत,जिनगी ल अंधियार करे।
कहत “नुकीला” राम,  सुनव रे म मोरे रागी।
गिस मांगे ल आगी, अउ लगादिस घर आगी।

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नोख सिंह चंद्राकर “नुकीला”
पता :- गाँव – लोहारसी
पोष्ट – तर्रा
तह.-पाटन
जिला – दुर्ग(छ.ग.)

व्याख्याता(पंचायत)
शास.हाई स्कूल सिर्रिकला,
वि.ख.- फिंगेश्वर

One reply on “कुण्डलियाँ”

नोख सिंह भाई आपके ये उदिम ले मोर मन गदगद होहीस के आजकल घला कोनो ये विधा ला धरे तो हवय, आपके ये परयास पर बड़ बधाई, आपके ये कुण्डलियां सुंदर भाव ला सजोय हव तेखर बर अउ बधाई । कुण्ड़लि के पहिली दु पंक्ति दोहा तेखर पाछू चार पंक्ति रोला के होथे, पहिली कुण्डलि के दोहा के अंत म गुरू लघु नइ होय ले दोहा के गुण नइ दिखत ये,‘ झांपी चरिहा झउहा‘ मा 12 मात्रा हे दूसरईया हा बने बने है । एक नजर ऐहू कोती देख लेहू –
1- चार चरण दू डांड़ के, होथे दोहा छंद ।
तेरा ग्यारा होय यति, रच ले तैं मतिमंद ।।1।।

विषाम चरण के अंत मा, रगण नगण तो होय ।
तुक बंदी सम चरण रख, अंत गुरू लघु होय ।।2।।

रोला छंद

1. दोहा
आठ चरण पद चार, छंद सुघ्घर रोला के ।
ग्यारा तेरा होय, लगे उल्टा दोहा के ।।

विषम चरण के अंत, गुरू लघु जरूरी होथे ।
गुरू गुरू के जोड़, अंत सम चरण पिरोथे ।।

2 रोला

रोला दोहा जोड़ के, रच कुण्डलिया छंद ।
दोहा के पद आखरी, रोला के शुरू बंद ।।
रोला के शुरू बंद, संग मा दूनो गुथे ।
दोहा रोला छंद, एक माला कस होथे ।।
शुरूरू मा जऊन शब्द, अंत मा रख तैं ओला।
कुण्डल जइसे कान, लगे गा दोहा रोला ।।

3.कुण्डलिया
कुण्डलिया के छंद बर , दोहा रोला जोड़ ।
शब्द जेन शुरूवात के, आखरी घला छोड़ ।।
आखरी घला छोड़, मुड़ी पूछी रख एके ।
रोला के शुरूवात, आखरी पद दोहा के ।।
शब्द भाव हा एक, गुथे हे जस करधनिया ।
दोहा रोला देख, बने सुघ्घर कुण्डलिया ।।
-रमेश चैहान

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