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कविता

खरपतवार के निंदाई

बबा कहिथे कस रे नाती
ये का हे तोर खुरापाती

खेत-खार मा कतका बुता परे हे
फेर तोर आखी कोन कोती गडे हे

ए बाबा !
ते मोला बता
घान हा बोवागे
खातु घलो छितागे
त अउ का बुता परे हे
अरे बईहा ! जा बारी-बखरी ला बने निहार
चारो डाहार खरपतवार मन बाडहे हे
तेन ला चतवार !

ये बेलिया दुबी अउ किसम किसम के कांदी मन
भकभक ले जामे हे ।
अउ भाटा मिरचा अउ पताल मन बेसहारा सही
भुइयां मा लामें हे ।
जम्मो खतु मन के रोस ला खरपतवार मन तिरथे ।
अउ साग भाजी मन मरत गिरत हे ।
देखते देखत बारी मा

बन हा पटटा जाही
तेकर सेती इकर निंदाई जरूरी हे।
फेर बबा ! मोरो एक ठन मजबुरी हे ।
हमर देश मा धलो चारो कोती
किसम किसम के भष्टाचार के खरपतवार
उपज गेहे
जेन मन विकास योजना के खाद ला चुसत हे ।
फेर तोर दिमाग मा ये बात नि घुसत हे ।

आम जनता के कमा कमा के मरत हे
फेर ऐ भ्रष्ट नेता अउ अफीसर मन काकरो सनसो नी करत हे ।

चरो डहार चोरी बेइमान रिश्वतखोरी जोर हे ।
जनता के सेवक बने सब भ्रष्ट बेईमान अउ कामचोर हे।
अउ जनता मन बिचारा होवत कमजोर हे ।

तेकरे सेती बाबा मोर गोठ ला तै कान देके सुन।
अउ मने मन गुन ।

जइसे निंदाई बिना तोर खेत खार लाचार हे ।
वइसन हमर देश धलो ये रोग से बिमार हे ।

जमो किसान अपनेच खेत के सनसो करही
त मोर देश मा बाढ़त खरपतवार के निंदाई कोन करही ।

मथुरा प्रसाद
बलौदा बाजार, छ.ग.
मोबाईल : 094 06 072126

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