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कहानी

गदहा के सियानी गोठ

पहिली मेंहा बता दौ घोड़ा अउ गदहा म का फरक हे, घोड़ा ह बड़ होशियार, सयाना अऊ मालिक के जी हजूरी करईया सुखियार जीव ये। आँखी कान म टोपा बांध के पल्ला दऊड़ई ओकर काम ये, भले मुड़भसरा गिर जही, मुड़ी कान फूट जही, माड़ी कान छोला जही फेर पल्ला भागे बर नई छोड़य। रद्दा ह चातर रहय फेर चिखला सनाय राहय मालिक ह जेती दऊड़ा दय उही कोती दऊड़े बर परही। माने होशियार होके दूसर के दिमाग अऊ दूसर के बताय रद्दा म चलईया आज के समे मा इही ह घोड़ा ये। गदहा ह बड़ सिधवा जीव कतको बोझा ल पीठ म लाद दे, चीव करय न चाव, पथरा ल लाद, गठ्ठा ल लाद, अड़म गड़म काही ल लाद दे ऐके चाल रईही। न तो वोला पल्ला भागे के शऊक न ककरो शाबाशी लेबर जानय अपन सम्मान ल गंवा के गारी मार खाके पलट के जवाब नई देवईया जीव, दुनिया के जम्मो बोझा ल उठईया, सबो के करजा छुटैईया, अपनेच धुन में चलईया गदहा हरे।




घोड़ा हर तो कभू कभू खिसयाके दुलत्ती मार तको देथे, फेर गदहा के भागे खराब हे मार तो मार कोनो ल गारी तको नई दे सकय। डींग हकैइया मन के जय जय गान होथे फेर बोझा लदईया ल कोनो नई पुछय घोड़ा मन के अईसन पूछ परख होथे जान दे, गदहा ल रोवासी आ जथे अपन करम के लेखा ल देखके। गाँव देहात म बर बिहाव होथे त दूल्हा के भाटों के जतका पूछ परख परवार में होथे ओतका कोनो सजन के नई होवय। ओईसने आज के समे मा घोड़ा के हाल हे, इही सब ल देखके गदहा मन ल तको घोड़ा बने के शऊक बाड़ जथे। सबो गदहा मन ऐके जगा जुरिया जथे अऊ केहे बर धर लेथे अब तो पानी ह मुड़ी के उंपर ले बोहवत हे। अब तो कुछु करे बर पड़ही पुस्तैनी धंधा ल छोड़ जाति के बिकास बर देश के राजनीति के अघुवा बने बर पड़ही कईके, गदहा मन के बैईठका सकलाथे। बैईठका सकलाय के पहिलीच सबो गदहा मन खुसुर पुसुर गोठियावत रहिथे। अऊ गदहा मन के दू फड़ हो जथे, कोनों काहत हे हमर मन के बस के बात नोहय, राजनीति म छल कपट सबो भरे हे। पईसा कौड़ी बिना पत्ता नई हिलय ये काम हमर मन से नई हो सकय कईके कतको गदहा मन अघुवा बने बर डररावत रिहिस हे। एक ठन गदहा काहत हे देश के राजनीति में जीत के, अघुवा बन भी जाबो तभो ले कुछु नई कर सकन, हमन अपनेच घर परवार अऊ गदहा समाज बर, काबर हमन अतेक सिधवा हन, कामचोरी करे बर नई जानन। छल करे बर नई आवय, बैमानी ले पईसा नई कमा सकन, न तो कोनों ल दुलत्ती मार सकन, न तो ककरो गारी अऊ मार के पलट के जवाब दे सकन। त अईसने में अघुवा बने के का फायदा बोल के वोहा बैईठका ले उठ के चल देथे, दूसरा गदहा ह बोलथे सही बात काहत हौ भैईया देश के राजनीति में पल्ला दउड़ईया कनचपी बांध के, मुखिया के गोठ म हामी भरईया अउ जी हजूरी करईया मन के राज हे, उही जी हुजूरी करईया मन ह अतेक धन दौलत कमा डरे हे जेकर कोनों ठिकाना नईये ओकर सातों पुरखा ह तर जही।




हमन ओकर सोज काही म नई टीक सकन, बराबरी करे ले छोड़व भैईया अपन पुस्तैनी धंधा म लगथन। दुनिया के बोझा ल उठाथन , मक्कार मन के कचरा ल फेकथन, तभे हमर मन के पेट भरही, हमन येकर मन के चारा ल नई पचा सकन अनपचन हो जही, हमर मन के भागे खराब हे हमन तो बोझा ढोय बर ही पैईदा होय हाबन। अतका गोठ ल सुने के बाद एक ठन सियान गदहा ह उठ के खड़ा होगे अऊ केहे बर धर लिस एक कनिक मोरो बात ल सुन लौ फेर जेन करना रईही तेने ल करहू। मेंहा अपन जवानी में एक धोबी इहा काम करव, वो धोबी ह मोर सोर काम बस लेवय। पेट भर के तको खाना नसीब नई होवत रिहिसI अऊ मोर पीछू एक ठन घोड़ा ल काम बुता के सुपरवाईजरी करे बर लगाय राहय। एक दिन के बात ये मोर ऊपर धोबी ह मनमाड़े बोझा ल लाद दिच मेंहा हलाकान होगेव। बोझा के मारे दबत रेहेव त घोड़ा ल केहेव एके मालिक के दुनों नऊकर यन भाई मोर कुछ लकड़ी के गठ्ठा भर ल तेहा धर लेतेच त मोर बोझा ह हल्का हो जतिस। घोड़ा ह हिनहिना दिस बोझा धोवई मोर काम नोहय कईके, महु ह थोरकिन दीमाक लगायेव अऊ हाथ गोड़ ल फैलाके आखी कान ल रोम के घोड़ाच के आगू म जबरन गिर गेव। घोड़ा हलाकान का करव कईसे करव कईके, फेर मालिक ल धरा रपटा बुलाके लाईस, धोबी ह आखी में पानी वानी ल छितिस महु ह लरघीयाय तमाशा ल देखत रेहेव। नई उठेव त मोर बोझा ल धोबी ह निकाल के घोड़ा उपर लाद दिस, घोड़ा हलाकान तिलमिला गे, महु ह अब धीर लगा के खड़े होय हाबव अऊ घोड़ा के पीछू पीछू हँसत हँसत रेंगत जात रेहेव। तभे घोड़ा ह मोला काहत राहय तोर बात ल ओतके बेर मान ले रहीतेव त बोझा ल जम्मो मोला नई उठाय बर पड़तिस। त भैईया हो बपुरा बन के रईहू त बोझा जिनगी भर धोय बर पड़ही, अब तुंहर उपर हे, समे देख के होशियारी करहु त सुखी रईहू। अतका सुन के सबो गदहा मन सियान गदहा ल अपन समाज के मुखिया चुन लिस, अब सियान गदहा ह केहे बर धर लिस हमन बपुरा नोहन न तो हमर भाग खराब हे। हमन ल ये घोड़ा अऊ मालिक ल जेन कामचोरी करथे, हमर मन उपर रात दिन बोझा ल लादथे, बेमानी करथे हमन ल तलवा चटाय बर मजबूर करथे वोला पाठ पढाय बर परही। अऊ एक ठन बात ल गांठ बांध लौ मंत्री के आगू अऊ घोड़ा के पीछू कभू मत जाहू, मंत्री के आगे जाहू त अईसन बोझा लादही दरर के मर जहू। घोड़ा के पीछू जाहू त दुलत्ती खाहु, अतका ल सुन के सबो गदहा ढेचू ढेचू नरियाय बर धर लिस। अऊ केहे बर धर लिस अब तो जान डरेन देश के अघुवा बने बर काय करे बर परही, अब हमू मन ल घोड़ा असन दुलत्ती मारे बर परही। कोनों मेर होशियारी त कोनों मेर कनघटोर बने बर परही, तभे हमन अपन पुस्तैनी धंधा बोझा धोवई ले उबर पाबो। सियान गदहा के सियानी गोठ ल सुनके सबो गदहा मन में नवा जोश आगे अऊ अघुवा बने बर अबड़ अकन गदहा मन मिटमिटा गे।

विजेंद्र वर्मा अनजन
नगरगाँव (जिला-रायपुर)
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