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कविता

गाँव लुकागे

कईसन जमाना आईस ददा,
गाँव ह घलो लुकागे I
बड़का बड़का महल अटारी म,
खेत खार ह पटागे I
नईये ककरो ठऊर ठिकाना,
लोगन ल बना दिस जनाना I
नेता मन के खोंदरा बनगे,
छोटकुन के आसरा ओदर गे I
चिटकिन रुपिया देके,
ठेकेदार अऊ नेता तनगे I
गवई ल शहर बनाके,
कईसन कईसन गोठीयाथे I
मेहनत करईया ल भूखे मारथे,
टेसहा ल एसी म घुमाथे I
कईसन जमाना आयिस ददा,
गुरतुर गोठ सुने बर नदागे I
पिरित के मया अऊ,
बानी के बोल सिरागे I
लईका लोग ह लोक लाज,
अऊ संस्कृति ल भुलागे I
ऐ बिकास के रद्दा में,
मानवता ह बड़ लजागे I
खेतो बेचागे खारों बेचागे,
बेचागे सबके काया I
अब तो केहे ले लगही भैया,
न राम मिलिस न माया I
Vijendra Kumar Verma
विजेन्द्र कुमार वर्मा
सेक्टर-4 भिलाई

2 replies on “गाँव लुकागे”

बहुत बड़िया हे आपके रचना ह ।

धन्यवाद, हेमलाल भाई

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