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कहानी

गांव के गुरूजी – कहिनी

”गांव के गुरूजी कहिस के छोटे-छोटे बात में सरकार के मुंह देखना ठीक नई होवय। सरकार तो हमन ल स्कूल के भवन बना के दे दे हावय। अब ये भवन के सुरक्षा अउ मरम्मत के जिम्मेदारी हमर गांव वाला मन के आय। ये स्कूल में हमर लइका मन पढ़े बर आथें। ओखर मन के सुरक्षा बर ये जरूरी हे कि हमर स्कूल के भवन मजबूत अउ साफ-सुथरा राहय। हमर ये कर्तव्य होथे कि हमन हमर स्कूल के सुरक्षा बर धियान देवन। जइसे हमन गांव वाला मन जुरमिल के गांव के माता देवालय, शिव मंदिर अउ गुड़ी घर के पोतई-लिपई करन वइसने हमन ला स्कूल के छानही के मरामत अउ पोतई-लिपई में धियान देना चाही।”
बड़ दिन बाद जब स्कूल के तारा खुलिस तब गांव वाला मन समझिन कि बोटिंग के दिन आगे हावय तभे तो स्कूल के तारा खुले हावय। नानकुन गांव में स्कूल खोल के सरकार भुलागे रहिस। एक झन गुरूजी कभु-कभु आवय अउ गिंजर के चल देवय। पाछु सोर मिलीस के उहु हा अपन बदली सहर के स्कूल में करा डारे हावय। स्कूल ह बिन मास्टर के हो गे रहीस। बोटिंग के दिन आवय तब पटवारी हा स्कूल के तारा ला खोलय। उही दिन कोतवालीन हा स्कूल ला बाहरय। बोटिंग खतम होय के बाद दूसर दिन पटवारी हा फेर स्कूल में तारा लगा के कुची ला पटेल इंहा छोड़ देवय। बिन सखला जतना के स्कूल हा भूत परेत के डेरा कहावय। रतिहा कुन एक्का-दुक्का मनखे मन ओती बर ले जाय बर डेर्रावय।
फेर एक दिन गांव वाला मन ला बड़ा अचरज होइस। जब एक झन टुरेलहा गड़हन मास्टर हा स्कूल के तारा ला खोलिस। ओकर बाद कोतवालीन इहां ले बहिरी मांग के खुदे स्कूल ला बाहरे बर धरलीस। पहिली तो लइका मन आके दुरिहा ले देखिन। फेर सियान मन लकठा में आके पूछीन- तुमन के दिन इहां रइहव गुरूजी। लइका मन ला पढ़ाहूं कि हाजिरी लेके चल देहू। गुरू जी बताइस कि मोर नियुक्ति सरकार हा इहां पढ़ाय बर करे हावय। मैं इहां रइहूं अउ तुंहर लइका मन ला पढ़ाहूं। एकरे सेती आज मैं ये स्कूल ला साफ करत हाववं। काली ले हमन लइका मन अउ गुरूजी सबो झन जुरमिल के हमर बइठे अउ पढ़े के लइक येला बनाबो। तुंहर मन से विनती हे कि काली ले अपन लइका मन ला पढ़े बर भेजव। संझा बेरा गुरूजी स्कूल के दाखिला रजिस्टर ला धरीस अउ कोतवालीन संग पूरा गांव ला गिंजर डारीस। घर-घर जाके गुरूजी हा लइका अउ ओकर दाई-ददा ला कहीस कि अपन लइका ला तुमन पढ़े बर जरूर स्कूल भेजव। जेन लइका भरती करे के लइक दिखीस ओकर नाव ला तुरते ओहा अपन रजिस्टर में लिख डारीस। दूसर दिन बीसेक झन लइका मन पढ़े बर आगे। कक्षा पांच अउ गुरूजी एक झन। शुरू दिन गुरूजी सबो लइका मन ला एके जगह बइठारीस। पहिली दिन गुरूजी लइका मन ला साफ-सफाई के बारे में जानकारी देवत बतइस। जइसे हमन अपन घर- दुआर ला साफ-सुथरा रखथन वइसने हमन ला अपन स्कूल घलो ला साफ-सुथरा रखना चाही। गुरूजी लइका मन के चार टोली बनइस अउ ओमन ला सफई करे के जिम्मेदारी बांट दीस। गांव के लइका मन बड़ चाव लेके स्कूल के सफाई करे में लगगें। दू दिन में स्कूल के आस-पास के कचरा घलो साफ होगे। गांव वाला मन गुरूजी के काम ला देखके अबड़ खुश होइन। रतिहा कुन गांव में जेवन करे के बाद बइठका होइस। जम्मो गांव वाला मन गुड़ी घर में सकलइन। उहां गुरूजी घलो ला बलाय गीस। गांव वाला मन गुरूजी ला कहीन कि स्कूल के मरामत अउ साफ-सफई के जिम्मेदारी तो सरकार के आय फेर तुमन ए स्कूल के सफई ला लइका मन से काबर करावत हावव। गांव के गुरूजी कहिस के छोटे-छोटे बात में सरकार के मुंह देखना ठीक नई होवय। सरकार तो हमन ला स्कूल के भवन बना के दे दे हावय। अब ये भवन के सुरक्षा अउ मरम्मत के जिम्मेदारी हमर गांव वाला मन के आय। ये स्कूल में हमर लइका मन पढ़े बर आथें। ओखर मन के सुरक्षा बर ये जरूरी हे कि हमर स्कूल के भवन मजबूत अउ साफ सुथरा राहय। हमर ये कर्तव्य होथे कि हमन हमर स्कूल के सुरक्षा बर धियान देवन। जइसे हमन गांव वाला मन जुरमिल के गांव के माता देवालय, शिव मंदिर अउ गुड़ी घर के पोतई-लिपई करन वइसने हमन ला स्कूल के छानही के मरम्मत अउ पोतई -लिपई में धियान देना चाही। काबर के हमर नान-नान लइका मन पढ़े बर इहां आथें। गांव वाला मन ला गुरूजी के बात जंचीस। एक दिन गांव में स्कूल तिहार मनाय के हांका परगे। वो दिन गांव वाला मन सकला के स्कूल के मरम्मत अउ पोतई-लिपई में भिड़गें। स्कूल के छानही के बने मरम्मत होगे। गांव वाला मन कोनो काड़ लइन तो कोनो पटिया अउ खपरा। तो कोनो अपन घर ले बांस ला के दिन-माइ लोगन मन पूरा स्कूल के पोतई कर डारीन। सोज्झे सोझ नहीं। भीतियां में किसम-किसम के फूल पत्ती बना के ओमन स्कूल के भीतिया ला सजा डारीन। जेन स्कूल भूत अउ परेत के डेरा लागय अब ओ स्कूल मंदिर असन दीखे बर धरलीस। स्कूल के हाता घलो ला चौबुन्दा रूंध डारे गीस। फेर काहे गुरू जी अउ लइका मन जुरमिल के किसम-किसम के फूल के पेड़ लान के लगा दीन। स्कूल के हाता भीतर लीम अउ आमा के चार ठन रूख रहीस। उहूं में चौरा बंधगे। स्कूल के मरम्मत अउ साफ-सफाई होगे। अब तो जेन मनखे स्कूल आवय ओला स्कूल छोड़ के जाय के मन नई लागय।
गुरू जी अबड़ गुनिक रहीस ओला पेटी तबला बजाय बर घलो आवय। गुरू जी गांव वाला मन ला कहीस अउ गांव में नाटक मण्डली तियार होगे। मौका मिलीस तो एक से एक कलाकार मन गांव ले तियार होय बर लागगे। कोनो बांसुरी बजावयं त कोनो मंजीरा, त कोनो ढोलकी। एक से एक गवइया गांव में रहीन फेर ओ मन ला मौका नई मिलत रहीस। 26 जनवरी के दिन गुरूजी के नाटक मण्डली जब नशाबंदी के नाटक खेलिस तब ओकर चरचा गांव में का अतराफ में होय बर लागगे। दूसर गांव में घलो गुरूजी के नाटक मण्डली जाके नाटक खेलिस अउ नाव कमइस। नशाबंदी नाटक के ये असर होइस कि 30 जनवरी गांधी जी के बलिदान दिवस के दिन गांव वाला मन गांधी चौरा में सकला के कोनो किसम के नशा नई करे के शपथ लीन। एकर असर ये होइस कि गांव में बीड़ी, सिगरेट, गुड़ाखू अउ गुटखा सबो के बिकरी बंद होगे। गांव में शराब दुकान घलो रहीस ओकरो बिकरी घलो बंद होगे। पहिली तो शराब दुकान वाला हा गांव वाला मन ला किसम-किसम के लालच देखइस। गांव वाला मन नई मानीन तब डेरवाइस-धमकइस। फेर गांव वाला मन अपन बात में अडे रहीन। कोनो गांव वाला शराब पीये बर नई गीस। हार के शराब दुकान वाला ह अपन दुकान बंद करके गांव छोड़ के चल दीस।
गुरूजी अतकेच म चुप नई बईठीस। वोहा स्कूल के चाराें खुंट म रूख राई लगा डारीस। एखर देखा सीखी गांव वाला मन जिहां खाली जगहा दिखीस उहां रूख लगा डारीन। गुरूजी के सलाह मान के गांव वाला मन गांव के गली खोर गउठान अउ हटरी सबो जगह के साफ सफई कर डारीन। जम्मो गङ्ढा मन पटा गे। ए प्रकार से गांव हा सरग नजर आय बर लागगे। कहां गांव के स्कूल हा भूत के डेरा बनगे रहीस। कहां गुरूजी के आय ले स्कूल हा गांव के सब ले परमुख जगह बनगे। अब तो नानकुन कोनो समस्या आथे गांव वाला मन दउड़ के गुरूजी मेर स्कूल जाथें। गांव वाला मन कोनो भी काम ला बिन गुरूजी के पूछे नई करय। अब तो गुरू जी हा स्कूल के गुरू जी भर नोहे ओहा तो पूरा गांव के गुरूजी बन गेहे।
शशि कुमार शर्मा
गांव व पो. तुमगांव
जिला महासमुंद