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कहानी

गांव गंवई के चुनई

चुनई के समे आथे अउ चुनई परचार के संगे संग गांव-गांव, गली-गली, घर-घर म चारी-चुगली, इरषा, दोष, झगरा-लड़ई घला आ जथे। बाजा-गाजा, सभा, जुलुस, नाराबाजी के मारे गली-गली ह सइमो-सइमो करत रथे। जिहां चार झन मइनखे एक संग खडे क़भू देखउल नइ देय, उहां मोटर कार, फटफटी, सायकिल सब ओरी ओर लमिया जथे। देवाल-देवाल म उमेदवार मन के नाव लिखाय, जगा-जगा चुनाव चिनहा के छप्पा छपाय, झंडा, बेनर बंधाय, कोनो मेर पाल परदा तनाय, कोनो मेर सभा मंच बने का पूछत हस, अइसे सजे रथे जइसे बर-बिहाव के समें दुलहा-दुलहिन ल सजाए रइथे।

उमेदवार मन अपन-अपन आदमी मन ल लालच देके चुनई परचार करे बर अरजी बिनती करथें। इही समे कतको चिक्कन, चतुरा आदमी (चम्मच) अपन परिवार के लइका मन ल नौकरी म खुसेरे बर होय ते रोजगार-धंधा के जुगुत बनाय बर होय। इहिच मउका तो मिलथे वोमन ल, तब काबर छोडे स्वारथ साधे बर। केंवट टुरा बुधारू ल ए सब लंद-फंद के काहिंच मतलब नइए। बस जउने पारटी के सुघ्घर बिल्ला, झंडा मिलगे, उही ल अपन खेलत हे अउ जइसन वोला बता दिस वोइसने नारा लगा-लगा के पारत हे गोहार। एक दिन अपन चिरहा, मइलाहा कुरता म बिल्ला लगाय, अउ हाथ म झंडा धरे काय-काय गोहार पारत जावत रहय। बुधारू ह, वोला देख परिस फेरूमंडल ह, बलावत कथे कस रे बुधारू तोर ददा ह मोर घर नौकर लगे हे, अउ तैंहा बुजा मोर पारटी ल छाड़ के दूसर के झंडा-बिल्ला धरे घुमत हस। बुधारू ह मुंहू मटका के कथे-मोर ददा ह तो लगे हे न तोर घर नौकर, मेहा थोरे लगे हों। में कहूं आंव, कहूं जांव, तोला काय करना हे। ले न मेहा तोरे परचार करहूं, फेर मोर बर तोर बेनर झंडा के बांचे कपड़ा के एक ठन कुरता अउ चड्डी बनवा दे। अउ फेर अभी तो निही, अवइया चुनई म जब मेहा बड़का बाढ़ जाहूं तहंले वोट घला बस तुहिच ल दे हूं।
फेरू मंउल कथे-वाह रे रेमटा बुजा, तंय तो मोरो ले हुसियार हो गेय, कब तेहा बड़का बाढ़बे त कब मोला वोट देबे। मुड़ डोलावत बुधारू कथे- हां तोला बिसवांस नइ होइस न मोर बात के। तुमन कइसे मार ढिंढोरा पिटत रथो, ए काम करबो, वो काम करबो सिधवा जनता मन तुंहर बात ल बिसवांस घला कर लेथय। आज मेहा नानुक जिनिस मांगत हों अउ आगू चुनई म वोट दूहूं काहत हों। तेकर तोला बिसवास नइ होवत हे। हमर बात ल भले तुमन झन पतियाव, फेर हमन तुंहर बात ल जल्दी पतिया लेथन। हमन तुंहर कस लबरा नोहन।
बुधारू के बात सुके फेरू मंडल अकबकागे वोहा सोंचे घला नइ रिहिस होही कि फेरू मंडल ह गांव के एक झन मंझला किसान आय। खेती-किसानी के बात कमती अउ नेतागिरी एती-वोती के बात ल जादा जानथे। उहिंचे पहरू पटेल ह घला फेरू मंडल ले कमी नइए। फेरूमंडल घर के देवाल म कोनो दूसर पारटी वाला मन अपन चुनाव छप्पा छाप दिन। फेरू मंडल देखिस ते वोकर एडी क़े रिस तरूवा म चढ़गे। अपन नौकर अघनू ल बला के कथे-अरे अघनू, ए हमर घर के अउ पारा-परोस के देवाल मन म जतका लाल, घूरू म नाव छप्पा लिखाय हे, ए सब ल लिप-पोत के अभिच तुरते मेटा दे। मालिक के हुकुम पाके अघनू ह छुही माटी घोरिस अउ सब ल सरमेट्टा लिपे लगिस। वोतके बेरा वोती ले आगे पहरू पटेल ह अपन पारटी के नाव छप्पा ल मेटत देखके अघनू ल कथे-कस रे अघनू, काबर मेटत होबे ए सब लिखाय हे तेला रे। अघनू कथे मालिक ह जइसन किहिस तइसन करत हों ग पटेल। पहरू कथे अच्छा, अतेक इरखा होगे फेरू ल रे, कोठ म लिखाय छप्पा ल मेटावत हे। पहरू के गोठ थोरिक फेरू मंडल के कान में परिस, धकर-लकर भितरी ले निकलिस अउ कथे हां मेहा केहे हों मेटे बर, बड़ आगे हस छप्पा वाला, जाना तोर घर के देवाल में लिखवा डार बाहिरी-भीतरी। मोर घर अउ मोर पारा म लिखे के तोला काय जरूरत हे। पहरू कथे-लिखा गेहे ते काय होगे, मेटे के सेती तहूं अपन पारटी के नाव छप्पा लिख डारते खाल्हे म। फेरू कथे- अच्छा तेहा ऊपर में लिखबे अउ मेहा तोर खाल्हे म बने हुंसियारी बघारत हस।
पहरू मने मन गुनमुनाइस, वाह रे देखमरहा रह लेले, कतका तोर देखमरी हे तेला महूं देखहूं।
बिहान दिन पहरू पटेल ह, फेरू मंडल घर जतका धान लुवइया बनिहार जावत रिहिस तेला एक-एक पैली जादा बनी देके सब ल अपन खेत म लेगे। एती फेरू मंडल ह गिस अपन खेत म, जा के देखथे ते कोनो बनिहार निही। वोकर नौकर अघनू ह एके झन एक कोन्टा म लुवत रहय। फेरू मंडल पुछथे कस रे अघनू, कहां गे सब बनिहार मन रे। अघनू कथे काला बतांव मालिक जम्मों बनिहार मन आज पहरू पटेल घर चल दिन। फेरू फेर पूछथे-कइसे सबके सब वोकर घर चल दिस रे, काय होगे तेमा। अघनू कथे-पहरू पटेल ह एकक पैली ऊपर बनी देवत हे कहिके सबो वोकरे खेत कोती रेंग दिन। खेत के धान ल देखत फेरू कथे-अइसन में तो सबो धान ह सुखा रना के खेत के खेत झर जही रे, ए तो जम्मो नुकसान हो जही। मने मन गुन-गुन के फेरू के रिस ह भीतरे भितर सुलगत रहय। मोर घर आवत बनिहार ल वोहा अपन घर लेगे, अतेक ताकत होगे पहरू के। आज तो गांव म बैठक सकेल के एकर निआव जरूर करा हूं।
सोंचत-सोंचत घर आइस फेरू ह अउ कोतवाल ल कहि दिस बैठक के हांका पारे बर संझा बेरा गौरा गुड़ी म बैठका सकलागे। सरपंच, सियान, बसुंदरा किसान सबो आय हे। सरपंच कथे- ले बता ग फेरू मंडल का बात बर बैठक सकेले हस तेला। फेरू कथे- मे का बताहू ग सरपंच, उही पहरू ल पूछव, काबर मोर घर आवत बनिहार मन सन अपन खेत म लेगे तेला। पहरू कथे-मेहा ककरो हांथ ल धरके तिरत थोरे लेगे हंव। महूं ल जरूरत रिहिस तेकर सेती एकक पैली जादा देहूं केहेंव, तब सब झन मोरे घर चल दिन। फेरू कथे- अच्छा, तेहा बड़ धन वाला हो गेय, अउ मोर खेत के धान खेत सुखाके झरत हे तेकर नुकसानी कोन सहे। तेहा जान सुन के अइसने करे हस, तोर सहिं देख मरहा तो कोनो नइए।
पहरू कथे-देखमरहा मेहा नो हो, ते हरस, वो दिन ते हा मोर कोठ म लिखाय नाव छप्पा ल कइसे मेटवा देय। सबो बात ल सुनके गुनत सरपंच ह कथे अच्छा तब ए झगरा ह चुनाव के सेती आय। इही पाय के कथों कोनो भाई कहूं पारटी ल वोट देव, फेर गांव म तुहिं-तुहिं मन लड़ई झगरा झन करव। सरपंच आगू कथे- अच्छा पहरू तेहा फेरू घर के बनिहार ल अपन घर लेगे हस तेकर सेती तेहा पहिली माफी मांग। अतका सुन के बैठक में बइठे आठ दस झन बनिहार मन उठगे अउ कथे-पहरू पटेल ह काबर पहिली माफी मांगही ग सरपंच, वोकर काय गलती हे। हम बनिहार मन ल जिहंचे एक पैली जादा मिलिस उहिंचे चल देन। हम काकरो घर बंधाय थोरे हन। एमन चुनई के नाव लेके अपने-अपन इरखा, दोष अउ झगरा लड़ई में मरत रथे। अइसन में कोनो के होय नुकसान तो होबेच करही। बनिहार मन के बात ल सुन के सरपंच कथे सिरतोन बात ल काहत हो तुमन, गलती कोनो के नइए। एहा इंकार भीतरे-भीतरे घमंड अउ एक दूसर ऊपर इरखा करे के फल आय सरपंच आगू किहिस फेरू मंडल अउ पहरू पटेल दूनों झन माफी मांगों अउ चुनई के नाव लेके कभू झगरा नइ होवत कहिके किरिया खाव।
फेरू मंडल अउ पहरू पटेल दूनों झन हाथ जोड़ के माफी मांगिन। सरपंच ह फेर किहिस, अब एक बात हे फेरू मंडल तोर खेत के धान ह सुखा के झरत हे, एक काम कर तहूं ह एकक पैली जादा बनी दे, आधा बनिहार मन तोरो मे जही अउ आधा मन पहरू के म जही। बनिहार मन कथे हां सरपंच ह बने काहत है, हम दूनों घर जाबो अउ दूनों के काम ल करबो। दूनों के काम एक संग हो जही।
अइसन ढंग ले समझौता होइन तब झगरा ह माढ़िस अउ अपन-अपन काम बुता निपटाइन। अइसन होथे गांव गंवई के चुनई अउ झगरा लड़ई ह।

-पुनूराम साहू ‘राज’
मगरलोड
जिला धमतरी (छग)