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गांव-गंवई के बरनन- मिश्र के कविता में – सरला शर्मा

Vidya Bhusan Mishraतेईस दिसंबर सन् उन्नीस सौ तीस म जाज्वल्यदेव के ऐतिहासिक नगरी जांजगीर के बाह्मनपारा म रहइया स्व. कन्हैयालाल मिश्र अऊ श्रीमती बहुरादेवी के घर अंजोर करइया बेटा जनमिस। महतारी-बाप के खुसी के ठिकाना नइ रहिस।
आघू चल के विद्याभूषण जी अपन नांव के मरजाद राखिस अऊ छत्तीसगढ़ के प्रसिध्द लोकप्रिय गीतकार बनिस जिनला आज हम विद्याभूषण मिश्र के नाव से चिन्हथन।
उन पहिली कविता 1946 मं बसन्त ऋतु पर लिखिन फेर कक्षा 11वीं म 1947 म सरस्वती वंदना लिखिन। अइसे लागथे वो दिन सरसती दाई संवागे आके उनकर मूंड़ म हाथ धरिन होही। तभे तो आज तलक मिश्र जी के मधुर गीत हमन पढ़थन, सुनथन।
हिन्दी के संगे संग छत्तीसगढ़ी गीत मन घलाय सुध-बुध भुलवार देहे म समरथ हावय।
‘करूणांजलि’ के भूमिका स्व. शेषनाथ शर्मा ‘शील’ लिखे रहिन त ‘सती सावित्री’ खण्ड काव्य के सस्वर पाठ सुनत हमन असन लइकन मन घलाय भाव विभोर हो जावन। एक बात कहे बिना नई रहे सकत हौं के मिश्र जी श्रेष्ठ कवि के संगे संग श्रेष्ठ कंठ घलाय आंय। मा सरसती उनकर कलम अऊ गला दूनों म बरोबर मिठास देहे हावय विभिन्न कवि सम्मेलन मन म मिश्र जी के सस्वर प्रस्तुत गीत-कविता मन श्रोता मन ल मंत्र मुग्ध कर देथे…।
‘गीत माला पहिर ले रे गोरी गंवई तोर जय होवै….।’ वो समै बढ़ लोकप्रिय होये रहिस त आकाशवाणी रायपुर के संगे संग जांजगीर, चांपा, कोरबा, भिलाई म सुने बर मिल जावत रहिस।
आकाशवाणी रायपुर ले मास गीत के रूप म जन-गण-मन में लहराए अऊ सुन्दर प्यारे गांव हमारे गीत मन ल स्थान मिले रहिस हावय।
जाज्वल्यदेव महोत्सव के मंच मं स्व. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल द्वारा श्री रामभक्त हनुमान के लोकार्पण होए रहिस। वो दिन के सुरता आथे जब मंच म प्रतिष्ठित साहित्यकार मन के संगेसंग सुनइया मनखे के किचिर-किचिर मिश्र जीके सधे स्वर के गूंज म सुन्न पर गेय रहिस। अइसे लागत रहिस जाना पेड़ के पाना मन घलो ताली बजावत हांवय।
‘किसी वियोगी की आंखों में अपने आंसू भर देने से मेरा सोया प्यार हृदय के वंशीवट में जग जाता है।’ ऊनकर छत्तीसगढ़ी कविता म गांव-गंवई के सांगोपांग बरनन बड़ निक लागथे, प्रकृति के सिंगार करत वो गीत मन ल कभू भुलाय नई जाय सकय। त हमर छत्तीसगढ़ के खेती किसानी ल घलाय बरोबर ठौर मिले हैं उनकर रचना म देखव तो…।
‘चला चली फांदी बियासी के नागर
कच्चा करौंदा के चटनी बने हे
सुग्घर सेंकाये अंगाकर….।’
कवि के हिरदे के भाव मन हसदो के धार कस झर-झर, कल-कल करत बोहावत हावय त प्रकृति के सुघराई कोती कवि के धियान पाठक मन ल बन पहार कोती लहुट के निहारे बर इसारा करत दिखथे।
‘मऊरे हे आमा अऊ बहुरे हे सुख ह
मोरे सुवा! खेत-खार सब महमहाय।
भुइयां के अंचरा म अन्न भरे हे रे
मोर सुवा! सरसों के देह पिंऊराय।’
सुवागीत। छत्तीसगढ़ी के माटी म जनमे छत्तीसगढ़िया नोनी-लइका मन के अंतस के सुख-दु:ख, मया-पीरा मं भींजे लोकगीत आय त मिश्र जी असन भावुक कवि के मन ल सुवागीत हर कइसे नई छूही। धरती मइया के अंचरा के मोती आनी-बानी के फसल हर आय व किसान के जिनगानी के अधार घलाय आय बरिस भर के कमाई जब खेत म लहलहाए त ओकर रखवारी करे बर किसान घर दुआर छोड़ के खेत म कुंदरा छाथे…।
‘घूमत हे रखवार खार मा रखवारी बर तोरे बमरी के रूख ठाढ़े हावै अपन हांथ ल जोरे। रात अंजोरी के अंचरा ले मोती ल टपकाय, अऊ कुंदरा के दिया झांक के चंदा ल तरसाय।’ दू सरीर एक परान कहिथे त कवि के कहना हे नहीं भाई अपन जोड़ी-जांवर बिन जिनगी के महाभारत लड़े नई जा सकै…
जनम अकारथ हो जाथे… एक नवा विचार के दरसन ये गीत म देखव… ‘तोर अंजोर म उमर सुन्दरी

अपन सोहाग सजाथे।
तोर खुसी के मेंहदी ओहर
अपने हाथ रचाथे।
जुग-जुग ले तैं मोर बने हस जांवर जोड़ी साथी।
तोर बिना मैं माटी…।’

हिन्दी कविता संकलन मन म ‘मन का वृंदावन जलता है।’ कवि के जीवन दर्शन के संगे संग प्रेम ल नवा परिभाषा देवइया कृति आय…। एमा कवि के गीत मन सुन्दर भाव-भाषा ले सजे हांवय त साहित्यकार के अंतरमन के गंभीर संवेदना मन ल गहना असन पहिर के साहित्य के अंगना म उतरे हांवय…।
मिश्र जी के गीत, कविता मन छन्द प्रधान, गेय श्रुतिमधुर भासा अऊ रस अलंकार के भण्डार आय। विद्याभूषण मिश्र हमर छत्तीसगढ़ भूषण आय ऐमा कोनो दू मत नइए… जुग जुग जियै कवि अऊ उनकर कविता।
ये उम्मर म देंह ढलान कती जाथे… जेहर प्रकृति के अमोध नियम आय। तभो मिश्र जी कविता सम्मेलन, गोष्ठी मन मं अभियो जाथें अऊ अपन मधुर कंठ से श्रोता मन ल मोहे सकथें एहर सरसती दाई के बड़ किरपा आय…।
राम अधीर जी संकल्प रथ पत्रिका के एक अंक जनवरी, फरवरी 2005 ल ललित गीत कवि पं. विद्याभूषण मिश्र एकाग्र छाप के साहित्य जगत ल दुर्लभ भेंट देहे हांवय…।
भगवान से बिनती हे कि विद्याभूषण मिश्र के गीत छत्तीसगढ़ म गूंजत रहय उनकर कविता माटी के सिंगार करत रहय…।

-सरला शर्मा
भिलाई

5 replies on “गांव-गंवई के बरनन- मिश्र के कविता में – सरला शर्मा”

सरला ! विद्या भूषण मिश्र जी के बारे म कतेक बढिया लिखे हावस रे । बहुत नामी गीतकार ए वोहर । शब्द – चित्र म माहिर हे । गॉव – गँवाई के वर्णन म वोकर कोई सानी नइए । तोला बहुत – बहुत बधाई ।

बहुत बढ़िया है दीदी

मिश्र जी के बारे में सुघ्घर जानकारी देव दीदी,धन्यवाद

gurturgoth suggher lekh lekhe hawas jekar bar dhanyawad aage au likhaw rahaw jema nai jankari pade la milhi .

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