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कविता

गांव ल झन भुलाबे अउ किसान

गांव ल झन भुलाबे

शहर में जाके शहरिया बाबू
गांव ल झन भुलाबे |
नानपन के संगी साथी ल
सुरता करके आबे ||
गांव के धुर्रा माटी म खेलके
बाढ़हे हे तोर तन ह
आमा बगीचा अऊ केरा बारी म
लगे राहे तोर मन ह
आवाथे तीहार बार ह
सुरता करके आबे
शहर में जाके ……………..
सुरता कर लेबे पीपर चंउरा ल
अऊ गुल्ली डंडा के खेल ल
गांठ बांध ले बबा के बात ल
अऊ मीत मितान के मेल ल
हिरदय में अपन राखे रहिबे
मया ल झन बिसराबे
शहर में जाके………………………….
दया मया ल राखे रहिबे
नता रिशता ल झन भुलाबे
सुघ्घर सबके मान गउन करबे
अपन फरज निभाबे
आँसू बोहावत देखत रहिथे
दाई के सुरता करके आबे
शहर में जाके………………………….
छुटगे होही अंगाकर रोटी ह
अब तो तंदुरी ल खावत होबे
इडली डोसा खा खाके
अब्बड़ मजा पावत होबे
कतको खाले आनी बानी के फेर
तावा रोटी के सवाद कहां पाबे
शहर में जाके शहरिया बाबू
गांव ल झन भुलाबे |

किसान

सुक्खा धरती ल हरियर करथे
देश के बढ़ाथे मान
माटी म सोना उपजाथे
मोर भारत के किसान
सबला आस रहिथे किसान से
इही हमर अन्नदाता ए
सबके पालन पोसन करथे
भारत के निरमाता ए
धरती ल सिंगार करके
बढ़ाथे एकर मान
माटी म सोना उपजाथे
मोर भारत के किसान
अपन खून पसीना से
धरती ल संवारथे
बढ़िया फसल उगाथे अऊ
सबला एहा उबारथे
नइ करे भेदभाव काकरो बर
सबला अपन मानथे
दुनिया के सेवा करथे अऊ
स्वर्ग ल धरती में लानथे
जय हो जय हो मोर धरती मइया
सबके एहा मितान
माटी म सोना उपजाथे
मोर भारत के किसान

Mahendra Dewangan
रचनाकार
महेन्द्र देवांगन “माटी”
पंडरिया (कवर्धा)
मो.-8602407353
Email-mahendradewanganmati@gmail.com

4 replies on “गांव ल झन भुलाबे अउ किसान”

आपमन के दुनो रचना अड़बड़ सुग्घर हे “माटी” जी…..आपमन ल अइसन सुग्घर रचना लिखे बर बधाई हो…

आपमन के दुनो रचना अड़बड़ सुग्घर हे “माटी” जी….आपमन ल अइसन सुग्घर रचना लिखे बर बधाई हो

रचना ल पसंद करेव एकर बर आप ला धन्यवाद सुनील शर्मा जी |
जय जोहार |

गांव ल झन भुलाबे।
बहुत सुन्दर रचना हे माटी जी अऊ संदेश तको हे आपके कविता म।
किसान वाला रचना घलो बढिया हे। मे आपके सभी रचना ल पढथव।
आप ल बहुत बहुत बधाई गुरूजी।

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