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कहानी

गियान के जोत

पऊर साल मैं ह बालोद गे रहेंव। बालोद गेस त गंगा मइया के दरसन करना तो जरूरी हे। मैं ह ऊंहा दरसन करे बर आयेंव। मन खुस होगे एकदम खुल्ला जगह हे। बड़े जन अंगना देखके अइसे लगीस के थोरिक देर बइठ जाथंव। मैं ह अंगना के छांव म बइठ गेंव।
थोरिक देर म तीन-चार झन माई लोगन अइन अऊ दरसन करके मोर तीर म बइठगे। ऊंखर बातचीत ले अइसे लगीस के वोमन लइकामन ल पढ़ाथें। मैं ह पूछ परेंव कहां पढ़ाथव। थोरक सांवर असन माई लोगन कहिस, मैं ह इहें के आंगनबाडी म पढ़ाथंव, ये ह मोर सहायिका आय। ओखर बाजू म खड़े रहिस तेन ल बतइस के ये ह दूसर आंगनबाड़ी म पढ़ाथे। सब झन उठ के जाय ले लगीन त वो ह मोला पूछथे तहूं टीचर हस का दीदी, मैं कहेंव नहीं। मैं ह समाज सेवा करथंव, रयपुर म रहिथंव। वो ह कहिस तभे तो सोचत रहेंव हमर बालोद म नवा कस लागत हावय। मैं ह पूछेंव तोर काय नाव हें। तैं कतका पढ़े हस।
मोर नांव फगनी हे। तैं ह दीदी मोर अइसना नस ल धरेस त तोला काय बतावंव। दीदी मैं तोला अपन बारे म बताहूं, कोनजनी काबर तैं ह मोर बहिनिच्च असन लगत हावस। मैं ह तो अभी पराइवेट बीए प्रिवियस म हावंव। मोला बहुत अचरज लागीस के अतेक पढ़े लड़की आंगनबाड़ी म पढ़ावत हावय। चाहतीस त शिक्षाकर्मी म भरती हो सकत रहिस हे। फेर तो मोला ओखर चेहरा म हांसी के बीच म पीरा ह दिखाई दीस अपन संगवारी मन ल जावव कहिके भेज दिस ‘आ दीदी ये पेड़ के नीचे म बइठ’ दूनों झन बइठ के गोठियाए ल लगगेन। फगनी थोरक सांवर दूबर-पातर रहिस हे। ओखर दांत ह थोरिक बाहिर निकले रहिस हे। फगनी ह जब तक खड़े रहिस, मुचमुचातेच्च रहिस हे।
मुस्कात फगनी ह कहिस मै ह दीदी अपन पढ़ई ल बिहाव के बाद करे हंव। मोर बिहाव होईस त चौथी पढ़त रहेंव। मोर घर वाला माखन ह बारहवीं तक पढ़े रहिस हे, वो ह अस्पताल म काम करथे। बिहाव होईस त पढ़ई छूटगे मैं ह दू साल के बाद कहेंव महूं ह पांचवी के परीक्छा देवाहूं त माखन ह कहिस हां-हां परीक्छा दे दे। फेर तैं ह पढ़बे कइसे।
महूं सोचेंव बिहनिया ले जंगल डाहर जाके लकड़ी बीन के लानथंव। घर ल लीप, बहार के आगी बारथंव। रांध के सास- ससुर दू झन देवर अउ माखन ल खाना खवा के सब के कपड़ा- लत्ता ल कुंआ म धोए बर बइठथंव। दू बज जथे। खाना खा के फेर जंगल डाहर लकड़ी छेना लाने बर चल देथंव। नई जातेंव त कोनो अऊ बीन लेतीन। पांच बजे आके आगी बारथवं। फेर रंधई- खवई दिन ह बीत जाय। माखन के पईसा ह अतेक झन ल पूरय नहीं। खेती-खार रहिस नइए। बनिहार बूता सब करत रहिन हे। सास-ससुर अथक होगे। दूनों देवर पढ़त हांवय। मैं पड़ोस ले पांचवी के पुस्तक लान के रात कन पढ़ंव। रात ले कंडिल बरत देख के माखन ह उठ के अइस देखे बर। मोर पुस्तक मन ल देख के कहिथे, अरे पगली मोला कहिते मैं लान देतेंव। चल अभी सुत कहिके मोला सुता दीस। दूसर दिन सांझकन पांचवी के किताब कापी अउ पेंसिल ले के अइस। मोला पुस्तक दीस अऊ कहिस के मैं ह इस्कूल के हेड मास्टर तीर बात कर ले हावंव। तैं ह ये साल पांचवी के परीक्छा देवाबे।
मैं ह अब्बड़ मेहनत करेंव पांचवीं के परीक्छा देवायेंव। पहला नम्बर म पास हो गेंव। अब तो माखन ह खुस होगे। अब तो कहिस के आठवीं के परीक्छा घलो दे दे। प्रौढ़ शिक्षा केंद्र चलत रहिस हे। ऊहां पता करके आइस अउ मैं ह आठवीं के तइयारी करे ले लगगेंव। उही साल मोर बड़े बेटी घलो होगे। एक साल अइसने निकलगे। फेर अपन तइयारी म लग गेंव। हेडमास्टर ह मोर घर आ जाय अउ पूछय, कइसे फगनी कुछु पढ़थस के लइकाच्च म भुलाय हस। मैं ह कहेंव लेना अब मोर लइका एक साल के होगे हावय अब आठवीं के परीक्छा देहूं। एक साल तक रात के जाग-जाग के पढेंव, परीक्षा देवायेंव अउ दूसर श्रेणी म पास हो गेंव। घर म सब बहुत खुस होईन। मोर घर के तीर तार के मनखे मन अपन-अपन बेटी मन ल पढ़ाये ले लगगे हावंय।
उही समय आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बर फारम भर देंव। मोर घर के मन खुस होगे। फेर मोर चुनाव घलो होगे। अभी तक तो रोज बिहनियां नइते संझा लकड़ी बीन के लाना। खाना बना के सब ल खवाना, घर के सबो बुता ल करना चलतेच रहिस हे। फेर आंगनबाड़ी जाना चालू होईस त लकड़ी ल खरीदे ले लगगेन। एक साल के बाद मोर दूसर बेटी होगे। माखन कहिस, देख फगनी अब हमर परिवार पूरा होगे। लड़का-लड़की सब बरोबर होथे। अब तो तैं ह बहुत जानकार होगे हस। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मन तो सब ल तरह-तरह के जानकारी देथे। मैं ह हां कहिदेंव। छै महिना के बाद नसबंदी आपरेसन करवा लेंव। तीन दिन म घर के काम ल मां अऊ माखन निपटइन।
एक दिन आंगनबाड़ी जात रहेंव त हेडमास्टर ह अवाज दिस, ये फगनी सुन तो भुलागेस का। मैं ह लहुट के देखेंव मैं ह नई भुलावंव मास्टर जी, तोरे देखाय रद्दा म मैं ह इंहा तक पहुंचगेंव।
देख फगनी रद्दा के लम्बई ह अनन्त तक होथे। रद्दा कभू बंद नई होवय कोनो न कोनो मेर ले आगू बढ़तेच्च रहिथे। अभी आठवीं के बाद झन समझ के तोर पढ़ई खतम होगे। लइकासुध म घर परिवार ल सम्भालेस, पढ़ई करेस, अपन लइका ल पालेस न। अब तोर लइकामन बड़े होवत हावंय अब तैं ह दसवीं के परीक्छा देवा दे।
अतेक कठिन पढ़ई ल कर सकहूं मास्टरजी। मैं काबर हंव, तोर मदद ल करहूं बेटी। तैं ह फारम भर दे बाद म मैं ह देखहूं काहत मास्टर जी ह मोर मुड़ ऊपर हाथ रख दीस। मैं ह आंगनबाड़ी चल देंव। फेर दसवीं के बात ह गूंजत रहिस। घर आयेंव त माखन ल बतायेंव। माखन खुस होगे। दसवीं पढ़े के तइयारी चालू होगे। मोर सास-ससुर मन कुछु काहंय कोनो घर म आगी लगाय के बात करतीस त कहितीस आजकल पढ़ई के जमाना आय। बहू-बेटी मन ल पढ़ना जरूरी हे। कहिथे अब तो बेटी मन हवाई जहाज चलावत हांवय। हमर गांव के डॉक्टर घलो एक झन बेटी आय। मोर फगनी घलो डॉक्टर बनही। कहइया मन के मुंह जर जाय। अब तो मोर मदद करइया मोर बड़े-बेटी रहिस हे वहू ह आंगनबाड़ी जाय ले धर लीस।
अब दसवीं के पढ़ाई बर मास्टर जी ह पुस्तक लान दीस। रात के जाग-जाग के पढ़ेंव मोर परीक्छा समय म छोटे बेटी बीमार परगे। मोला पता घलो नई चलीस घर म सबझन ओला सम्हाल लीन। दसवीं के रिजल्ट अइस, मैं ह दूसरा दर्जा म पास होगेंव। सांझ के रिजल्छ देखिस त माखन ह मिठई धर के अइस। उही बेरा म मास्टर जी घलो आगे। घर म अउ बहुत झन आगें हमर अंगना ह भरगे। समझन मुंह मीठा करीन अउ ओतके बेर माखन ह कहिदीस अब फगनी बारहवीं करही, मास्टरजी हां कहि दीस। मोर सास ह कहिथे हहो नोनी भइगे पढ़ते जा अउ डॉक्टर बन जा। सबझन हांसत अपन-अपन घर चल दिन। अब तो बारहवीं के तइयारी करेंव अउ बारहवीं घलो पास हो गेंव। अब मोर छोटे बेटी आंगनबाड़ी जावत रहिस हे। मोर बेटी मन घलो होसियार हांवय दीदी।
मैं ह कहेंव कॉलेज के पढ़ई ल कइसे करेस। माखन ह तो बारहवीं तक पढ़े हावय, अब तैं ह तो आगू बढ़त हावस।
फगनी कहिथे हां दीदी तैं सही कहेस। माखन ल तो नसा होगे हावय मोला पढ़ाय के। जइसने एक परीक्छा पास करथंव वइसने दूसरा के तइयारी करे बर कहिथे। दुरुग के कॉलेज ले मैं ह पहिला साल पास करेंव अभी दूसर साल के परीक्छा देय हावंव।
अब तैं बीए करके काय करबे। मैं ह सिक्छाकर्मी बन जाहंव। फेर माखन असन मनखे नई देखेंव हमेसा मोला आगूच्च बढ़ाए के सोचथे। जेन भी आथे तेन ल बताथे मोर फगनी ह कॉलेज पढ़त हे। मोर सास कहिथे मोर बहू डॉक्टर बनही। इंखर सबके मया आय जेन मैं ह इंहा तक पहुंचगेंव। मैं ह कहेंव हां फगनी ये तो सही आय फेर तोर मेहनत अउ लगन घलो आय, जेखर ले तैं ह इहां तक पहुंचे हस। अउ एक बात बतावंव दीदी मोला बने कार्यकर्ता के पुरस्कार घलो मिले रहिस हे। रयपुर के पुलिस ग्राउंड म मुख्यमंत्री ह मोर सम्मान करे रहिस हे। मैं कहेंव अच्छा ये तो बहुत अच्छा बात हे। अच्छा फगनी तोर से मिलके मोला बहुत अच्छा लगीस अतेक कठिनाई म तोर लगन अउ माखन के विस्वास ले तैं ह अतेक ऊंचाई तक चढ़गे हस। माखन के साथ तो हावय। जीवन साथी जब बने होथे तब ऊंचाई के पता नई चलय, मनखे अपन मंजिल तक पहुंच जथे पता घलो नई चलय। कभू-कभू सोच ले जादा ऊपर पहुंच जथे। अच्छा फगनी मोला रयपुर जाना हे मैं चलत हावंव। फगनी के आंखी ले आंसू निकलगे हां दीदी, तोर संग बइठ के अइसे लगीस जइसे कोनो मोला आगू के रद्दा देखा दीस। फगनी के संग बइठे-बइठे एक रिस्ता बनगे फगनी मोर पांव परिस अऊ चल दीस। मैं ओला जावत देखत रहेंव अउ विचार अइस फगनी ह अइसना जोत गियान के जलाय हावय जेखर अंजोर म अनगिनत मनखे ओखर पाछू जात हावंय।

अपूर्व वर्मा