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गुड़ी के गोठ

गुड़ी के गोठ : आयोग ल अधिकार देवयं

छत्तीसगढ़ी भाखा-संस्कृति के हितु-पिरितु मन के मन म 14 अगस्त 2008 के छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के गठन के साथ जेन उमंग अउ उछाह जागे रिहीसे, वे ह वोकर दू बछर के पुरती बेरा म थोर-थोर लरघियाए ले धर ले हवय। अउ एकर असल कारन हे ‘मनसा भरम’ के टूटना।
राजभाषा आयोग म जे मन ल बइठारे गे हवय वो मन ल एकदम से हुदरना-कोचकना या निंदा-चारी करना अभी बने नोहय काबर ते कोनो भी आयोग के जेन बुता होथे वोकर मुताबिक वोकर काम ठउका चलत हे। आयोग के काम सरकार ल अपन विषय ले संबंधित सुझाव देना होथे, वोला वो ह बने करत हे। खुरसी म बइठते साथ जम्‍मो विभाग के कारज ल छत्तीसगढ़ी म करे खातिर सुझाव दिस, जनगणना म महतारी भाखा के कालम म छत्तीसगढ़ी लिखे के बात होइस, इहां के तीनों संभाग म छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन के जलसा करवाइस, सियनहा मन के सम्‍मान घलोक होइस। अभी सुनब म आए हवय के इहां के जम्‍मो जिला के साहित्यकार मन के लिखे रचना मनला किताब रूप म छपवाए के उदिम घलोक करही।
ए जम्‍मो ह बने अउ संहराए के लाइक बात आय। फेर हमन ह छत्तीसगढ़ी ल लेके जेन सपना देखे रेहेन तेन ह अतकेच म पूरा नइ होवय। हमर मन के मनसा रिहीसे के छत्तीसगढ़ी ह अब इहां रोजगार के माध्यम बनही, शिक्षा अउ संस्कार के माध्यम बनही, इहां के शासन-प्रशासन के कामकाज के माध्यम बनही। हमर मन के इही मनसा भरम ह टूट गे हवय, जेकर सेती लोगन ‘छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग’ म बइठे लोगन ऊपर अपन रिस के फटाका फोरथें।
असल म हमन जेन बड़का असन ‘मनसा’ बना डारे रेहे हावन, तेन ह सिरिफ एक ठन आयोग के गठन कर दिए भर ले पूरा नई होवय। एकर खातिर आयोग ले ऊपर के गुनताड़ा करे बर लागही। जेमा एला स्वतंत्र रूप ले अधिकार मिलय, बजट मिलय, अउ काम करे खातिर आदमी मिलय। वइसने जइसे कोनो भी विभाग के एक मंत्रालय ल मिलथे। अच्छा होतीस के छत्तीसगढ़ी भाखा, साहित्य, संस्कृति अउ जम्‍मो अस्मिता ल जोर सकेल के स्वतंत्र रूप ले एक मंत्रालय बनाए जातीस।
अभी तो हाल ये हे के एला संस्कृति विभाग के खांचा म बांध दिए गे हवय। संस्कृति विभाग ह अहसान करे बरोबर जतका पइसे दे दिही ततका अकन के पुतरी कूद-फांद लेही, तहां ले ठनठन गोपाल। संस्कृति विभाग के बजट ल फोरिया के देखे जाय के आज तक वो ह (राजभाषा आयोग के गठन के बाद) छत्तीसगढ़ी खातिर कतका खरचा करे हे, अउ आने मन खातिर कतका करे हे। मैं जिहां तक समझथौं के आने भाखा-संस्कृति खातिर जतका खरचा करे गे होही, वोकर एक चौथाई घलोक छत्तीसगढ़ी खातिर नइ करे होही। अइसे म छत्तीसगढ़ी भाखा, साहित्य, कला अउ संस्कृति के बढ़वार के कइसे कल्पना करे जा सकथे!
कहूं इहां के सरकार ह सिरतोन म छत्तीसगढ़ी खातिर ईमानदार हावय, वो एकर चारों खुंट बढ़वार चाहथे, त एकर खातिर एक स्वतंत्र मंत्रालय के स्थापना करय, वोला भरपूर अधिकार अउ बजट देवय।
सुशील भोले
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