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गुड़ी के गोठ

गुने के गोठ : मोर पेड़ मोर पहिचान

वासु अउ धीरज ममा फूफू के भाई ऑंय। दूनो झन चार छ: महिना के छोटे बड़ेआय। दूनो तीसरी कक्छा मा पढ़थें। वासु शहर के अँगरेजी इस्कूल मा पढ़थे अउ धीरज गाँव के सरकारी स्कूल मा। धीरज के दाई ददा किसानी करथँय अउ वासु के दाई ददा नउकरिहा हावँय। गर्मी के छुट्टी माँ एसो वासु हा ममा गाँव गइस। आजी आजा खुश होगे। ममा मामी के घलाव मया दुलार पाय लगिस।फेर सबले बढ़िया ओला धीरज लगिस। लइका अपन खेलबर संगवारी खोजथे। ओला अपन जँहुरिया संगवारी मिलगे। दू दिन वासु के महतारी हा मइके मा रहिस फेर छोड़के अपन नउकरी मा आगे।

अब वासु धीरज के जोड़ी हा खेले कुदे लगिस। एक दिन खेलत खेलत दूनो झन तरिया ओ पार आमा बगइचा मा पहुँचगे। धीरज ओला तीन चार ठन आमा पेड़ अउ अमली, चिरइजाम, बीही के पेड़ ला देखावत कहिस – ये तीनों आमा पेड़ अउ अमली ला हमर बाबू के बबा हा जगाय रहिस। एला मंडल बगइचा कहिथे।चिरइजाम ला मोर बबा हा नान्हेपन मा लगाय रहिस ता ए पेड़ ला ओकरे नाम ले जाने जाथे।जब मोर बाबू नान्हे रहिस ता ओखर बबा हा एक दिन ओला बीही खायबर दिस। वो हा आधा ला खाइस अउ बाचे ला छानी उपर फेंक दिस। दिन बीतिस चउमासा आगे। कब के फेंकाय बीही हा हवा पानी पाके नानकून आठ दस पाना के पेड़ बनगे।

ओखर बबा हा सुरता करके ओला पेड़ ला धराके बगइचा मा गड़वा दिस।आज हमन हरियर पींयर बीही जेकर लाल लाल गुरतुर गुदा ला खाथन अउ बबा के सुरता करथन। दूनो झन ला इहाँ अपन धुन मा खेलत मँझनिया होगे। ओती वासु अउ धीरज ला खोजत ओकर बबा हाथ मा सुटी धरे पसीना पसीना होय आइस। दूनोंझन ला खिसयाइस अउ आमा के छइहाँ मा बइठ गे।कोन जनी कहाँ ले हावा चलिस कि काय होइस, दू ठन पक्का आमा उपर ले गिरिस।जानो मानो अपन बेटा ला भुखाय देख बाप हा कुछु खायबर देत हवय।बबा हा दूनोझन ला आमा ला बाँटिस अउ चलो घर कहिके हाँकिस। घर आवत तरिया मा नहाय बर रुकिन। धीरज हा वासु ला बताइस कि येला गौउँटिया तरिया कहे जाथे। हमर बबा के बबा के संगवारी गौउँटिया हा एला खनवाय रहिस कथे ।

नहा खोर के घर जाके भात खाके सूतीन। संझा वासु के आजा हा गाँव के गली डहर घुमायबर लेगिस।गली मा जावत बर , पीपर , हनुमान मूरती , शिव मंदिर अउ दूसर मंदिर के गोठ करत बताइस एला अमुख अमुक मन जगाय अउ बनाय रहिस हे। वासु के नानकुन बुद्धि ए नइ समझ पाइस कि जब ओ मनखे मन नइ हे तब ले ऊँखर नाम कइसे जानथे। पाछू घर आके अपन आजा आजी ला फेर आमा बगइचा के पेड़ जगाय के किस्सा ला पूछिस। ओखर आजा बताईस कि पेड़ हा हमर जिनगी बर कतका महत्तम होथे। नानकन ले पेड़ के लकड़ी के सहारा लेवत ,खटिया, पीढ़ा, टेबुल, कुर्सी, माची, झूलना, खिड़खी, कपाट, चूल्हा चौका बर सब इही पेड़ ले मिलथे। मरे के पाछू घलाव चिता जलाय बर लकड़ी लागथे।

वासु के नानकुन बुद्धि हा थाहा नइ पात रहय कि एक ठन पेड़ हमर कतका बुता आथे।वासु के मन मा एकेच बात बइठ गे कि मनखे के पहिचान पेड़ ले चलाव हो सकत हे। महिना भर के छुट्टी बिता के वासु अपन सहर मा आगे। दिन बीतिस इस्कूल खुलगे। असाढ़ महिना आगे। एक दिन इस्कूल ले आय पाछू संझा वासु नानकन आमा पेड़ ला धर के अपन घर के फुलवारी मा जगायबर खोचका खनत रहिस। ओखर महतारी हा ओला खिसयात पूछिस- तँय ये काय बूता करत हस वासु? अपन महतारी ला वासु हा कहिस- मँय अपन पहिचान अउ नाम बर आज पेड़ लगावत हँव। मोर पेड़ मोर पहिचान रही। अइसने काहत गाँव के जम्मो किस्सा ला बताईस।ओखर महतारी अड़बड़ खुश होइस अउ कहिस कि अपन प्रचार्य ले पूछ के एक ठन पेड़ इस्कूल मा घलाव लगाबे। पढ़ के निकले जब दस बीस बच्छर पाछू ओ रद्दा ले आवत जावत देखबे तब मन गदगदा जाथे।

आज पर्यावरण ला शुद्ध रखेबर पेड़ के जरुरत हे। हम सबला घलाव अपन कार्यालय, घर के तीर तखार जिहा खाली जगा भुइँया मिलय एक पेड़ अपन पहिचान अउ नाम राखे खातिर जगोना चाही।

हीरालाल गुरुजी “समय”
छुरा, जिला- गरियाबंद