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कविता

गुरूजी नमस्कार – कबिता

गुरूजी नमस्कार,
काहत हावे सरकार।
सिक्छक तो नई बना पायेन
फेर सिक्छा म कर्मी जोड़े के खातिर
मिहनत करेन अपार।
गुरू जी नमस्कार॥
बने नंबर घला दे देन
एक दू तीन सिक्छा कर्मी
अइसन हे कानून निकाल के
सिक्छित बेरोजगार मन ल,
करथन बंठाधार।
गुरू जी नमस्कार॥
ये गुरू के निन्दा हरे धन नोहे ग
गय गुरू, माता, पिता, भगवान के जमाना
अब तो गुरू जी मन ल,
रोजी मं रगड़त हन अपार।
गुरू जी नमस्कार॥
यह काय दयनीय दशा ये ग
जनगणना के दिन आगे
अब पेर-पेर के गुरूजी के तेल निकाल,
भइगे कतको कहि डार।
धियान नई देवव जी सरकार॥
गुरू जी नमस्कार॥
चम्पेश्वर गोस्वामी
भटगांव,
अभनपुर