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गोठ बात

गुरू अउ सिस्य के संबंध

guru kulगुरू ह मुक्ति के दुवार होथे त सिस्य ह मुक्ति दुवार के तोरन – धजा, बंदनवार होथे। मुक्ति के दुवार ए सेती काबर के दुनिया के छल परपंच दुख संताप के बोहावत बैतरनी नदिया ल पार कराथे गुरू हॅं। गुरूच ह अग्यान के घपटे अंधियारी म जोगनी कस जुगुर – जागर सही फेर रस्ता देखावत गियान के जगमग- चकमक अंजोर तक ले जाथे। अतके भर नही गुरूच हॅं सिस्य ल वो परम आतमा के घलो बोध कराथे , जेन ए जगत बिधाता ए। एकरे सेती तो कहे गे हवय के ‘‘गुरू गोविन्द दोउ खड़े , काके लागुँ पाय , बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय’’। कहिथे मनखे के पहिली गुरू मॉं अउ पहिली पाठसाला ओकर खुद के घर होथे। एह कोनो हाना कहिनी के पंखा ले ओसाय -उड़वाय बदरा नोहय भल्कि सोला आना सही ए। मनखे भूइयॉं म अवतरे के बाद कोनो सबद के पहिली उच्चारन करथे त वो हॅ मॉं सबद हरे। नान्हेपन म मॉं के संग रहीके , मॉं के किरियाकलापे ल देखके मॉंएच के गोठ बात ल सुनके लइका धीरे धीरे नकल उतारत रेंगे बर ,बोले बर अउ जिनगी के सबले बड़े गाहना गियान -बेवहार ल सीखथे। मनखे भरके बात नोहय चिरई चिरगुन अउ जिनावरो के जिनगी ल कभू – कभू झॉंक परथन त देखे बर मिल जाथे के उकरो पहिली गुरू महतारीच हॅ होथे। सिस्य हॅ बंदनवार ए सेती के बिन मंड़वा बिहाव अउ बिन बाजा बराती कस किस्सा सरग दुवार हॅ बंदनवार धजा तोरन ले नइ सजिस त सरग के सोभा कइसे बाढ़ही। वइसन म काकर दुवार ? दाउ के , कोन खड़े हे ? त बॉस के फइरका कस गोठ नइ हो जाहय। जइसे मंडप के सजावट ल देखके बिहाव घरके अउ बाजा ल सुनके बराती के आंकलन अनमान करे जा सकथे तइसे सिस्य के योगयता ल देखके गुरूके महानता के थाह लग जाथे। असल गियानी अउ महान गुरूके गियान हॅं असली अउ योग्य सिस्य ल पाके सही सुग्घर सोभायमान मुकाम तक पहॅुचथे तभे गुरू सिस्य के नाम हॅं जग म उजागर होथे। मनखे जात के इतहास म सुग्घर- सोनहा, चिक्कन – चातर अपन जगहा बना लेथे। भविस बर रस्ता देखइया मील के पखरा सिध होथे। जइसन बिसवामित्र अउ राम , द्रोनाचार्य अउ अर्जुन मन के हावय। गुरू अउ सिस्य के संबंध महान होथे। गुरू सिस्य के बीच के बंधन ह सरीर अउ आतमा कस होथे। बिन आतमा बिन जीव केे सरीर ह मुरदा होथे। सरीर म जीवे के राहत जिनगानी हे , जिनगानी हे तभे संसार के मया – पिरीत ,सुख – दुख के आनंद अनभो हे। इही मया – पिरीत , सुख – दुखके आनंद -अनभो ह ए निसार संसार के सार हरे। कोनो भी मनखे के मान – सनमान अउ पहिचान ओकर गियान से होथे ओकर बेवहार से होथे। वो गियान – बेवहार के प्रक्छालन -संवारन अउ संचालन के तौर -तरीका , बिधि – बिधान गुरू हॅं अपन धियान से करथे। एकरे सेती तो गुरू के बंदन पूजन बर -गुर्रूब्रम्हा गुरूर्विश्णु ,गुरूर्देवो महेश्वरः गुरूः साक्षात परम ब्रम्ह तस्मै श्री गुरूवे नमः केहे गे हे। गुरू अउ सिस्य के ए बंधन ए परंपरा हॅ आदिकाल से चले आवत हे। गुरू सिस्य के ए परंपरा निरवाहन के रीत चलागन के कतको उदाहरन हमर बैदिक इतहास म सोन के आखर म अंकित सोभायमान हावय। इही कारन हमर भारत ह संसार के सिरमउर रही चुके हे। भारत ह बिस्वगुरू के fसंघासन म बिराजमान रही चुके हे। जेह हमार बर मारगदरसक हे। हमार बर गौरव अउ सनमान के बात हे। फेर आजकाल के पच्चिमी देसन अउ फिलमई फेसन के ऑंच म हमर ए धरोहर हॅं मुरझाय जात हे। जेकर हिवाय करना हमर संगे संग भविस के सहेजई – सुघरई बर बड़ जरूरी होगे हावय। आज के मनखे हॅ भोग – बिलास , जिनगी के भागदउड़ अउ बिदेसन – फेसन के बवंडर म अतेक चौंधियागे हवय के उन जेन गुरू, मात – पिता ल अपन हिरदे म बसा-सजाके पूजा करना चाही उही मनला जिनगी के एक कोन्टा म कोन्टिया के धर -बोज दे हवय। बड़े -बड़न के सेवई -पूजई , मान -बड़ई अउ उंकर महात्तम ल भुलावत जात हे। सेवई अउ पुजई बिन जर के मुरई, जभे मन करीस तभे उखरई होगे। अब के मनखे अतका सुवारथी अउ लालची होगे हवय के भगवान समान आदरनी- पूजनी , बड़े -बड़न , दाई -ददा अउ गुरू अइसन महान जीव ल घलो तिरसकार के नजर ले देखे बर धर लेहे। अपन ऑंखी म निज सुख अउ सुवारथ के अइसे पट्टी बॉंध डारे हवय के उनला भल -अनभल दिखत – सूझत नइहे। काहत लगय गुरू अउ सिस्य के संबंध तेन ह आज मुरचावत खियावत जात हे। अब तो अइसे होगे हवय के गुरू गुरे रहीगे चेला हॅं सक्कर होगे के हाना हॅ सर्वसिध बानी लहुटगे।गुरू ल काहत हे चेला , तेंहा कोन खेत ढेला अइसन बात अब डहर चलती देखे -सुने बर मिल जथे। एह मानुस जात अउ वर्तमान समे के हीन भावना ल परदरसित करथे। अइसन हीनभावना हॅ मानव सभयता अउ समाज के भविस बर बड़ अलहन -कलंक के बरोबर हे। मानव के सभयता ल बचाय खातिर अउ भारत ल फेर बिस्वगुरू के गद्दी म बिराजमान करके दुनियाभर म एकर नाम ल सुरूज कस चमकाय खातिर ए परंपरा ल जिया -सहेजके रखना बड़ जरूरी हे। एकर भार -भरोसा युवा पीढ़ी के मुड़ म आके बइठ गे हे। ए बोझहा ल आज के पीढ़ी ल संभाल के चलेच बर परही तभेच मानव जात के कलयान होही अउ दुनिया के मरजाद बाचही।

धर्मेन्‍द्र निर्मल
ग्राम पोस्ट कुरूद
भिलाईनगर जिला दुर्ग छ.ग.- 490024