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कविता

गॉंव कहॉं सोरियावत हे : अंखमुंदा भागत हें

कहे भुलाइन कनिहा कोहनी
घुठुवा मुरूवा* माड़ी !
पिसनही जतवा* ढेंकी* अऊ
मूसर धूसर कॉंड़ी*!
पर्रा* बिजना* टुकना टुकनी
पैली* काठा खाँड़ी !
सेर पसेरी नादी* ठेकवा*
दीया चुकलिया* चाँड़ी !
लीटर मीटर किलो म अब
जिनिस ह जमो नपावत हे!

बटलोही* बटुवा थरकुलिया*
कोपरा कोपरी हंडा!
किरगी-किरगा* पाला* पौली*
अउ दरबा* सत खडा!
बटकी मलिया* गहिरही* ओ
हाथी पाँव कटोरा!
फूल कांस थारी म परसय
जेवन बहू अंजोरा!
अब फकत फाइबर चीनी के
घर घर सेट सजावत हें!

नींद भर रतिहा ले जागंय
अउ का म बुता ओसरावंय!
चटनी बासी टठिया भर
बेरा ऊवत पोगरावंय*!
हंसिया कुदरी धरे हाथ
मुंड़ म डेकची भर पानी!
पाछू पाछू चलय मंडलिन
आगू चलय जहानी!
अब तो आठ बजे जागंय अउ
चाह म चोला जुड़ावत हे!

राखड़ यूरिया अउ पोटास
संग कइ किसम के खातू!
कीरा मारे बर बिरवा के
कइ ठन छींचय बरातू!
साग पान के सर सुवाद ह
बिलकुल जनव परागे!
रसायन खातू के मारे
भुइंया जनव खरागे*!
अब तइहा कस बासमती न
महाभोग महावत* हें!

बावा भलुवा चितवा तेंदुवा
सांभर अउ बन भैंसा!
रातदिना बिचरंय जंगल म
बिन डरभय दू पैसा!
नसलवादी अब इंकर बीच
डारत हावंय डेरा!
गरीब दुबर के घर उजार के

अपने करंय बसेरा!
तीर चलइया ल गोली बारूद
भाखा ओरखावत हें!

जबरन मारंय पीटंय लूटंय
जोरे जमो खजाना !
बेटा बेटी अगवा करके
सौंपंय फौजी बाना !
हमर घर भीतर घुसरके
हमरे मुड़ ल फाँकंय !
जेकर हाथ लगाम परोसी
कस दूरिहा ले झाकंय !
कांकेर बस्तर जगदलपुर का
सरगुजा दहलावत हें!

देश धरम बर जीवइया ल
खाँटी दुसमन जानय!
कानून कायदा राज काज
हरके -बरजे* नइ मानय!
बिना दोष के मारंय पीटंय
लूटंय सकल उजारंय!
संग देवइया मन के जानव
कारज जमो सुधारंय!
बिरथा मोह के मारे मुरूख
बस दुरमत* बगरावत हें!

कतको चतुरा मनुख हवंय
चाहे कतको धनवंता !
कतको धरमी-करमी चाहे
अउ कतको गुनवंता !
कतको रचना रचिन भले
अउ धरिन बड़े कइ बाना
इहें हवय निसतार जमो के
का कर सरग ठिकाना !
अखमुंदा भागत हें मनो
पन-पंछी अकुलावत हें !

गाँव रहे ले दुनिया रइही
पाँव रहे ले पनही
आँखी समुहें सबो सिराये
ले पाछू का बनही !
दया मया के ठाँव उजरही
घमहा मन के छइहाँ
निराधार के ढेखरा* कोलवा
लुलूवा मन के बइंहाँ !
नवा जमाना लगो लउहा*
जरई अपन जमावत हें ।