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कविता गीत

गोठ गुने के गोठियांथव

गोठ गुने के गोठियांथव थोरुक सुन लव संगवारी
न कउनो निंदा फजीहत न कउनो के चारी
निरबंसी के धन मत लेवव सतबंसीन के लाज
गरीब दूबर के आह लेवव झन कुल मे गिरथे गाज
सोरह आना सच जानव ये नोहय निचट लबारी
न कउनो निंदा फजीहत न………
माया पिरीत में सबला बान्धय पाबन जमो तिहार
नता गोता में भेद करांवय लंदर फंदर बेवहार
समुनहे गुरतुर पीठ पाछू में मारे जबर कटारी
न कउनो निंदा फजीहत न………
गरज परे के गुरान्वट अउ गिरे परे घरजाइन
दुखला दोहरा करथे जइसे बिदा बेरा सहनाई
कलकिथहा जिनगानी जानव जेखर दू ठन सुआंरी
न कउनो निंदा फजीहत न………
जात पात नई चिनहय जवानी नींद न चिनहय खाट
चोर चंदैनी ल नई भावय गरब न भावय बात
लोभ के आगू नानुक लागथे बड़का महल अटारी
न कउनो निंदा फजीहत न………
हाथी गेडा घोड़ा दाना चारा गाय गोरुला
मोर कहव झन बिना जोर के जर जमीन जोरू ला
रुंधना बंधना बिना सजोरहा अजरा होथे बारी
न कउनो निंदा फजीहत न………
पहुना एक दिन रहके लागे दू दिन पाही कहावे
तीन दिन जबरन बिलमे ले अपने मान घटावय
कैसे कतका कहाँ अउ कब तक बिलमय करव बिचारी
न कउनो निंदा फजीहत न………
बोये मा सोनवा नई जामय नई मोतियन के मौरय डार
बीते बेरा हा नई बहुरे न खोजे म मिलय उधार
जाये परही जमो ला एक दिन छांड के सबो ओसारी
न कउनो निंदा फजीहत न………
गुस्सा मे का कहय नहीं अउ भूख म का नई खावय
काज सरे ले छीन भर मे दाई ददा ल बिसरावय
बिन मतलब के नई झान्कय हितवा तक घलव दुवारी
न कउनो निंदा फजीहत न………
रचियता…….
सुकवि बुधराम यादव