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गोठ बात

घाम तो घाम मनखे होवई ह बियापत हे

ददा ह मोर, चौरा म बईठ के हमर खेती के कमईया गाँवे के भैय्या पुनऊ करा काहत रहय, पुनऊ ऐसो के घाम ह बाबु बड़ जियानत हे ग, कोनो मेर जाय बर सोचे ले पड़थे I त अतका सुन के पुनऊ ह तिलमिला गे, हमन कईसे करत होबो हमू मन तो मनखे यन कका, तुमन घरे म खुसरे रहिथव तभो ले अईसना गोठीयावत हौव, फेर एको अक्षर नई पढ़े राहय पुनऊ ह तभो ले अतेक गियान भरे हे ओकर मती म कि पढ़ईया लिखईया मन फेल हे ओकर आगू म I फेर बोलिस, दाऊ ये बता ऐसो तेहा कतेक अकन रूख लगाय हस, कटवाय बर तो सबो खेत के रूख ल कटवा डरेच अऊ मिही परबुधिया तोर बुध ल मान के काटे हौव, खेत में बईठ के दाऊ गिरी भर मारेच, पुनऊ येला काट दे, वोला काट दे, फेर ये नई केहेच काटे हस रूख ओकर जगा एका ठन लगा कईके, तभो ले मेंहा बतावत हौव काटे बर रूख जरूर काटत हौव फेर ओकर जगा एक ठन पऊधा लगावत हौव I अऊ बोलथस दाऊ, घाम बियापत हे कईके, मेंहा पढ़े लिखे नईअव फेर मोला अईसने लागथे, पहिली खेत खार म रूख राई के जमवाड़ा रहय,जेती जान तेती हरीयरे हरीयर राहय, तेकरे सेती घाम ह कम जनावय I अभि के समे म खेत खार चिक्कन, परिया भुईयां चिक्कन, कोनो करा रूख राई नईये सब रूख कटईया गरकट्टा बन गेहे I तेकरे सेती घाम ह बड़ जियानत हे कका, मोर ईहा बाबु ह बोलथे बने केहे रे पुनऊ हमन पढ़ लिख के अंधरा होगे हन, फेर पुनऊ बोलिस अंधरा नहीं दाऊ कनघटोर बन के बईठे हौव, अपन बाटा के काम ल घलो नई कर सकव, सब फोकट में मिलजय कहिथव, थूके थूक म बरा ल चुरोय बर धर लेहौव, गाँव के सियान बने हौव फेर सियानी रद्दा ल सब भुला गेव, गाँव के धरसा घेरा गे, मईदान के मुरमी बेचागे,दईहान घेरागे, कतको डबरी बऊली पटागे, तरिया म कचरा पटागे पंचईत म बईठ के गोठीयाथव भर फेर एको ठन काम ह सिध नई परय, नरवा म पहिली दाहरा में पानी गर्मी के दिन म भराय रहय तेनो सुखागे,अरकट्टा रद्दा ह छेकागे त मरे बिहान कईसे नई होही कका I पहिली सुख म दुख म सब जुरिया जन गाँव में कोनो अनहोनी होवय त, मनखे मन झूम जय, अभि के समे म गिलौली करे बर पड़थे चल तो ददा चल ग भईया कईके, अब तो मनखे ल मनखे ऊपर बिसवासे नईये I एक दूसर के लिगरी लाई में बुड़े हन, ककरो बनऊका ल देखे नई सकन, अब दुरिहा कहा जाबे कका तुहरे परवार ल देखले, भाई भाई म नई बनय सबो भाई छतरंग, पहिली सुमत राहय त तुहर परवार के, मनखे मन गुनगाय, आज भाई ह भाई बर कसाई होगे I त गाँव बसेरु मनखे के मया ह दुरिहा के गोठ ये, पहिली कतेक मीठ लागय गुड़ी म सियान मन के गोठ ह अब तो सियानों देखेबर नई मिलय, गुड़ी म देखबे लपरहा टूरा मन लपर लपर मारत कोनो बीड़ी पियत हे त कोनो मंजन घिसत हे, कोनो बड़े छोटे के लिहाज नई करय अभि के लईका मन, त ये सब ल देखके जियान तो परही कका I पुनऊ बोलतेच हे हमन काहत हन गाँव के बिकास होवत हे, फेर मोला बता कका काय बिकास होवत हे, मोला अईसने लागथे येहा बिकास नोहय कका बिनाशे ये, खेत बेचावत हे खार बेचावत हे, तरिया,बऊली,ढोड़गा बेचावत हे का परिया का भर्री, रिहीस हे थोड़किन ईमान तेनो बेचावत हे, मनखे मनखे ल बेचत हे, काही नई बाचत ये जेला देखत हे उही ल बेचत हे, अतेक कचरा होगे हे कका गाँव में घुरवा कम पड़त हे, अब तो अईसे लगथे कका घाम तो दुरिहा के बात ये मोला तो मनखे होवई ह बड़ बियापत हे, बने काहत हस पुनऊ तेहा तो आँखी ल मोर खोल देच हमन खुदे मनखे ह मनखे के बईरी बन गेयन त घाम तो बियापबे करही I

विजेंद्र वर्मा अनजान
नगरगाँव (रायपुर)